इसरो का बेहद चुनौतीपूर्ण मिशन होगा चंद्रयान-4

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी कि ‘इसरो’ एक बार फिर से दुनिया को चौंकाने की तैयारी में है। जी हां, अपनी अद्वितीय विज्ञान व तकनीकी प्रौद्योगिकी के जरिए ‘इसरो’ वर्ष 2040 तक भारतीयों को चांद पर भेजने में जुटा हुआ है। ‘इसरो’ चंद्रयान-4 मिशन पर कार्य कर रहा है। गौरतलब है कि 14 जुलाई, 2023 को चंद्रयान-3 ने श्रीहरिकोटा में अवस्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से उड़ान भरी थी और अंतरिक्ष यान ने 5 अगस्त, 2023 को चंद्र कक्षा में निर्बाध रूप से प्रवेश किया। ऐतिहासिक क्षण तब सामने आया जब लैंडर ने 23 अगस्त, 2023 को चंद्र दक्षिणी ध्रूव के निकट एक सफल लैंडिंग की। चंद्रयान-3 की उपलब्धि न केवल हमारे देश भारत के अंतरिक्ष मिशनों में मील का पत्थर साबित हुई, बल्कि इस उपलब्धि ने दुनिया भर में इसरो की वैज्ञानिक क्षमता और तकनीकी कौशल को ऊंचाइयों पर स्थापित कर हम सभी को गौरवान्वित भी किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट का नाम ‘शिव शक्ति’ रखा था, जो अब इसरो के आगामी चंद्र मिशनों का एक महत्वपूर्ण बिंदु बनने जा रहा है। 
अब मीडिया के हवाले से यह खबरें आ रहीं हैं कि भारत 2028 तक अपने चौथे मून मिशन को लॉन्च कर सकता है। बताया जा रहा है कि इस मिशन को दो हिस्सों में लॉन्च किया जाएगा, क्योंकि इसरो के पास अभी जितने भी ताकतवर रॉकेट हैं, उनमें से किसी में भी चंद्रयान-4 को एक साथ नहीं ले जाया जा सकता है। इसके पीछे कारण चंद्रयान-4 का बहुत भारी होना बताया जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन एस. सोमनाथ ने भारत के महत्वाकांक्षी मून मिशन चंद्रयान-4 के बारे में हाल ही में बताया है कि चंद्रयान-4 को चांद से मिट्टी के नमूने वापस लाने के लिए बनाया गया है। बताता चलूं कि हाल ही में हमारा पड़ोसी चीन चांद से नमूनों को धरती पर लाने का कारनामा कर चुका है।‘इसरो’ और ‘जेक्सा’ द्वारा किया जाने वाला यह प्रयास दुनिया में पहली बार होगा क्योंकि इससे पहले किसी भी अंतरिक्ष यान को अलग-अलग हिस्सों में लॉन्च किया जा रहा है और फिर उन हिस्सों को अंतरिक्ष में जोड़ा जा रहा है। बताया जा रहा है कि इसे एक बार में नहीं, बल्कि दो अलग-अलग रॉकेट लॉन्च करके अंतरिक्ष की कक्षा में भेजा जाएगा। फिर अंतरिक्ष में ही इन दोनों भागों को जोड़कर चंद्रयान-4 को कंप्लीट किया जाएगा और उसके बाद ही इसे चांद की ओर भेजा जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो चंद्रयान-4 चांद से सैंपल लेकर वापस धरती पर लौटेगा। यह एक बार में लॉन्च नहीं किया जाएगा। यह अंतरिक्ष यान के दो हिस्सों को दो लॉन्चिंग के जरिए चांद की कक्षा में भेजा जाएगा। मतलब यह कि चंद्रमा पर लैंडिंग से पहले अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में ही जोड़ा जाएगा। 
उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष में ही यान के अलग-अलग हिस्सों को जोड़ने की क्षमता को ‘डॉकिंग’ नाम से जाना जाता है। इसरो ‘डॉकिंग’ क्षमता विकसित करने में लगा है। यह क्त्रमश: पृथ्वी व चांद दोनों की कक्षाओं में काम करेगी। बताया जा रहा है कि स्पेडेक्स (अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग) मिशन इसी क्षमता को दिखाने का उनका पहला मौका होगा। स्पेडेक्स मिशन का मकसद डॉकिंग क्षमता को प्रदर्शित करना है, जो संभवतया इस साल के अंत में किए जाने की संभावनाएं हैं। इतना ही नहीं, देश के अपने अंतरिक्ष स्टेशन को बनाने में भी इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। देश के अपने अंतरिक्ष स्टेशन का नाम भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) होगा। मीडिया के हवाले से जानकारी मिली है कि चंद्रयान-4 मिशन के लिए विस्तृत अध्ययन, आंतरिक समीक्षा और लागत का आंकलन पूरा हो चुका है और इसे जल्द ही स्वीकृति के लिए सरकार के पास भेजा जाएगा। यह उन चार प्रोजेक्ट प्रपोजल्स में से एक है जिनके लिए अंतरिक्ष विभाग अपनी विजन 2047 के तहत स्वीकृति लेना चाहता है। इस विजन के तहत भारत का लक्ष्य 2035 तक अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाना और 2040 तक चंद्रमा पर मानव को भेजना है। अभी तक इसरो के पास सिर्फ एलवीएम-3 रॉकेट ही है, तो बीएएस का पहला भाग इसी रॉकेट से लॉन्च किया जा सकता है।
हमने 2028 तक बीएसए (भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन) का पहला लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है। उल्लेखनीय है कि इसरो का मिशन चंद्रयान-4 बेहद जटिल और महत्वपूर्ण मिशन है। इस मिशन की सबसे खास बात यह है कि लैंडर ‘इसरो’ तैयार कर रहा है और ‘रोवर’ मॉड्यूल जापान बना रहा है। यह मिशन इसरो और जापान की जेएएक्सए (जेक्सा) द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि चंद्रयान-4 की लैंडिंग साइट शिव-शक्ति पॉइंट पर होगी। यह वही स्थान है, जहां चंद्रयान-3 की लैंडिंग हुई थी। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रयान-3 ने लैंडिंग के बाद चांद पर कई महत्वपूर्ण स्थानों की खोज की थी, जिससे नए मिशन में काफी मदद मिलेगी। इतना ही नहीं, ‘इसरो’ एनजीएलवी या ‘सूर्य’ नामक एक नया रॉकेट बना रहा है। यह अभी डिजाइन के अधीन है और बताया जा रहा है कि इसमें एलओएक्स (लिक्विड ऑक्सीजन) और मीथेन पर आधारित एक नया इंजन होगा। साथ ही, इसमें निचले चरणों के लिए लिक्विड ऑक्सीजन और मीथेन इंजन होगा, जबकि ऊपरी हिस्से में क्रायोजेनिक इंजन होगा। भारत का यह मेगा-रॉकेट सूर्य मौजूदा रॉकेटों से कहीं ज्यादा बड़ा होगा। लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) पेलोड क्षमता 40 टन से ज्यादा होगी। यह मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों के लिए बहुत ज़रूरी है। बहरहाल, कहना ़गलत नहीं होगा कि चंद्रयान-4 मिशन इसरो और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण तो होगा ही, साथ ही साथ यह हर भारतीय के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत भी होगा।