हाथरस की त्रासदी

उत्तर प्रदेश के ज़िला हाथरस के एक इलाके सिकंदरा राऊ में एक धार्मिक स्थल के बाहर मची भगदड़ की घटना सचमुच बेहद हृदय-विदारक है। भगदड़ के दौरान भीड़ के पांवों के तले कुचले जाने और दम घुटने से 122 से अधिक लोग मारे गये हैं, और अनेक अन्य घायल हुए हैं। घायलों में से अनेक की दशा बेहद गम्भीर होने के कारण मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है। ऐसी घटना कोई एकाकी नहीं है, किन्तु त्रासद यह है कि राजनीतिक दल, सत्ता-व्यवस्था और प्रशासनिक तंत्र में से कोई भी ऐसी घटनाओं को लेकर ग़फलत की नींद से जागता नहीं है। अपने पड़ोस में हिमाचल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी ऐसी घटनाएं अतीत में हो चुकी हैं। इस घटना के समय सम्बद्ध धार्मिक आयोजन के दौरान लगभग 70-80 हज़ार से अधिक लोग उपस्थित थे। घटना के लिए कथित रूप से उत्तरदायी रहे कारणों में अन्ध-विश्वास भी एक बड़े कारण के रूप में विद्यमान रहा। बताया जाता है कि कथित बाबा सूरजपाल उर्फ साकार विश्व-हरि के प्रस्थान-समय की चरण-रज लेने के लिए भीड़ का एक बड़ा रेला एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में ऐसा फिसला कि सैकड़ों लोग अन्य हज़ारों लोगों की भीड़ के पांवों के तले आकर कुचले गये।  इस घटना की गम्भीरता का पता इस एक तथ्य से भी चल जाता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं लोकसभा के चल रहे अधिवेशन के दौरान सदस्यों को इसकी जानकारी दी। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी स्वयं घटना वाले शहर हाथरस पहुंचे हैं, और प्रदेश सरकार की ओर से हताहतों के पारिवारिक जनों के लिए सहायता राशि की घोषणा भी की गई है। नि:संदेह इस घटना की जांच हेतु एक समिति भी बिठा दी जाएगी, किन्तु बड़ी आशंका है, कि उसकी रिपोर्ट पूर्व की अब तक की अनेकानेक जांच समितियों की रिपोर्टों की भांति ही मुंह दिखाई करके पुन: फाइलों में खो जाएगी। ऐसी घटनाएं अक्सर थोड़े-बहुत अन्तराल के बाद देश के किसी न किसी भाग में होती रहती हैं। सम्बद्ध राज्यों की सरकारों के प्रशासन में थोड़ी देर के लिए हलचल मचती है, किन्तु स्थिति फिर वहीं टिकती है, जहां से वह चली होती है। मौजूदा त्रासदी के समय भी आयोजन स्थल पर व्यापक रूप से अव्यवस्था थी। अन्ध-विश्वास पूरी तरह से हावी था, और कथित बाबा की चरण-धूल लेने और उनको दूर से दण्डवत करने वालों की पूरी भीड़ थी, लेकिन गर्मी और उमस के कारण आगे बढ़ती भीड़ के समक्ष एक बार जो भी नीचे गिरा, वो कुचला गया, मारा गया। तथापि, लोगों की आस्था का आलम देखिये, कि एक साधारण सिपाही से जोड़-तोड़ कर बाबा बने सूरज पाल के पास एकड़ों में भूमि है, और आस-पास के कई राज्यों में उसके अनुयायी हैं। घायलों की सुधि लेने और प्राथमिक उपचार की कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। प्रशासन और पुलिस तंत्र पूर्व की ही भांति बड़ी देर तक आंखों पर पट्टी और कानों में तेल डाले पड़ा रहा।हम समझते हैं कि नि:संदेह ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ति के साथ प्रशासनिक सतर्कता की बहुत ज़रूरत है। कथित बाबाओं के ऐसे डेरे राजनीतिक दलों के लिए वोटों की उपजाऊ भूमि भी होते हैं। इसीलिए सत्ता और प्रशासन के सूत्र अक्सर इनके आयोजनों से आंखें बंद किये रहते हैं, और आधे-अधूरे साजो-सामान के कारण भीड़-तंत्र इन पर हावी हो जाता है। ऐसी स्थिति में इस प्रकार की घटनाओं का हो जाना प्राय: आम बात जैसा हो जाता है। हम यह भी समझते हैं कि यह घटना मात्र एक त्रासदी नहीं, यह एक बड़ा गम्भीर अपराध है, किन्तु इसे रोका जा सकता था। भविष्य में इस प्रकार के आयोजनों से पूर्व व्यवस्था संबंधी छोटी-छोटी बातों का प्रबन्ध किये जाने से इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सकता है।