विकराल रूप ले रहा वायु प्रदूषण

भारत में वायु प्रदूषण की समस्या लगातार विकराल रूप ले रही है। वायु गुणवत्ता मानकों को सख्त करने और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास बढ़ाने की ज़रूरत है। यह बात हमें अच्छी तरह समझनी होगी। वायु प्रदूषण को नियंत्रण करना ही होगा, अन्यथा इसके बहुत दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
निरन्तर बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बना हुआ है। वायु प्रदूषण हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य और समाज पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। वातावरण में विभिन्न प्रकार विषाणु, धूल, धुएं और अन्य वायु मंडलीय ठोस, द्रवीय एवं गैसीय पदार्थों के कारण प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण, वाहनों की रेलमपेल और ऊर्जा उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले जीवाशम ईंधन जैसे विभिन्न कारणों को वायु प्रदूषण के मुख्य कारकों में गिना जाता है। यह प्रदूषण न केवल हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है, बल्कि इस कारण प्राकृतिक वातावरण पर भी अनेक दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। हवाओं में ज़हर घुल गया है। ऐसे में सबसे बड़ी चिंता यह है कि अब कहां जाकर सांस ली जाए।
भारत में वायु प्रदूषण की समस्या लगातार विकराल रूप ले रही है। यह प्रदूषण कितना जानलेवा और खतरनाक साबित हो रहा है कि इसका अनुमान एक ताज़ा अध्ययन रिपोर्ट से सहज ही लग जाता है। ’द लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि देश के 10 शहरों अहमदाबाद, बेंगलुरु, चन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुम्बई, पुणे, शिमला और वाराणसी में होने वाली हर 100 मौतों में से 7 मौतों के लिए वायु प्रदूषण ज़िम्मेदार है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के 10 शहरों में हर साल लगभग 33 हज़ार मौतें वायु प्रदूषण के कारण हो रही हैं।
रिपोर्ट से पता चलता है कि मुम्बई, बंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई में कई मौतें हुई हैं, लेकिन दिल्ली में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। रिपोर्ट में दिए आंकड़ों से दिल दहल जाता है क्योंकि इसके अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण से हर साल 12 हज़ार लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं, जो देश में कुल मौतों का 11.5 प्रतिशत है। मौतों के मामले में दिल्ली के बाद वाराणसी का नम्बर आता है, जहां दिल्ली के बाद वायु प्रदूषण के कारण हर साल 830 लोगों को जान गंवानी पड़ी है, जो कुल मौतों का 10.2 प्रतिशत है। अन्य शहरों में बेंगलुरु में 2100, चेन्नई में 2900, कोलकाता में 4700 और मुम्बई में करीब 5100 लोग हर साल वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवा देते हैं।
बढ़ता प्रदूषण पहाड़ी राज्यों को भी तेज़ी से अपनी चपेट में ले रहा है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में सबसे कम वायु प्रदूषण पाया गया है, लेकिन वहां भी वायु प्रदूषण का स्तर एक जोखिम बना हुआ है। शिमला में हर साल 59 मौतें होती हैं, जो कुल मौतों का 3.7 प्रतिशत है।
रिपोर्ट में पीएम 2.5 को मौतों की वजह बताया गया है, यह एक प्रकार का वायु प्रदूषक है जिसमें 2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटे कण होते हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि सांस के साथ गहराई तक फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और वायु प्रदूषण तथा इसके नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों के प्रमुख कारण माने जाते हैं। ऐसे प्रदूषण के स्रोतों में वाहनों से निकलने वाला धुआं और औद्योगिक उत्सर्जन शामिल हैं। यह चिंता का विषय है कि भारतीय शहरों में रोज पीएम 2.5 प्रदूषण के सम्पर्क में आने से मौत का खतरा बढ़ जाता है और स्थानीय प्रदूषण इसका कारण हो सकता है। अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि दो दिनों (अल्पकालिक जोखिम) में मापे गए औसत पीएम 2.5 प्रदूषण में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से दैनिक मृत्यु दर में 1.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है।
हमारे आसपास विशाल कारखानों, छोटी-बड़ी फैक्टरियों, वाहनों, ईन्ट भट्टों आदि के कारण वायु प्रदूषण निरन्तर बढ़ता जा रहा है। कोई गांव और शहर इससे अछूता नहीं रहा है। ज़्यादातर लोग तो वायु प्रदूषण के खतरों से अनजान हैं, लेकिन जो इस बारे में जानते हैं और इसके दुष्परिणामों को महसूस करते हैं, वे भी आम तौर पर इन्हें अनदेखा कर देते हैं। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को महसूस तो किया जाता है, लेकिन इससे निपटने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जाता। ऐसे में प्रदूषण से बीमार हुए लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो पहले लम्बे समय तक बीमारी झेलते हैं और फिर दुनिया को अलविदा कह जाते हैं।
यह कोई पहली रिपोर्ट नहीं है, जो बढ़ते प्रदूषण के प्रति चिंता जताती है। समय-समय पर ऐसी रिपोर्टें आती रहती हैं, जिनमें बढ़ते प्रदूषण, उसके कारणों और नियंत्रण के लिए ज़रूरी उपायों पर प्रकाश डाला जाता है, लेकिन उन्हें पढ़ कर भुला दिया जाता है। यह लापरवाही हमें बहुत भारी पड़ने वाली है। (युवराज)