सोशल मीडिया को तनाव का कारण न बनने दिया जाए

आपसी संबंधों में दरार का नया कारण सोशल मीडिया का नया चलन बनता जा रहा है। सोशल मीडिया पर कुछ समय से फ्लैगिंग का नया रुझान चल पड़ा है। पहली बात तो यह कि लोगों का सोशल मीडिया की ओर रुझान तेज़ी से बढ़ा है और कोढ़ में खाज यह कि सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया का दौर भी तेज़ी से चल पड़ा है। मज़े की बात यह कि सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया नहीं आना भी तनाव का कारण बन रहा है। इन दिनों फ्लैगिंग का नया दौर चल पड़ा है, परन्तु इसमें भी अधिक तो यह कि बेज फ्लैगिंग का नया रुझान साथी को अधिक प्रताड़ित करने लगा है। प्रताड़ना का मतलब तनाव का प्रमुख कारण होने से हैं। 
देखा जाए तो सोशल मीडिया पर पिछले साल सवा साल से चल रहे रुझान से आपसी संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। नए रुझान को भले ही सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता गंभीरता से नहीं ले रहे हों, परन्तु जिस किसी पर नए रुझान के अनुसार फ्लैगिंग के माध्यम से जो कमेंट्स किये जा रहे हैं, उसका असर अंदर तक पहुंच रहा है। दरअसल पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में इशारों-इशारों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का नया चलन तेज़ी से चला है। एक और जहां इमोजी का प्रयोग आम है तो फ्लैगिंग का नया चलन उससे भी अधिक गंभीर है। सोशल मीडिया पर इन दिनों बेज फ्लैग का चलन कुछ ज्यादा ही चला है। बेज फ्लैग का सीधा-सीधा मतलब यह निकाला जा रहा है कि इस तरह का व्यवहार जो न तो अच्छा है और न ही बुरा, लेकिन इस तरह की प्रतिक्रिया संबंधित व्यक्ति को सोचने को मजबूर कर देती है। खास तौर से इसका चलन आपसी रिश्तों को लेकर किया जा रहा है और इससे संबंधित व्यक्ति में एक तरह की हीन भावना आती है और उसका दुष्परिणाम हम सब जानते ही हैं। इससे पहले साथियों को रेड फ्लैग और ग्रीन फ्लैग का लेबल दिया जाता रहा है। हालांकि यह भी नकारात्मक ही है। रेड फ्लैग जहां समस्या से ग्रसित व्यवहार को दर्शाता है तो ग्रीन फ्लैग को अच्छे व्यवहार के रूप में देखा जाता रहा है यानी कि आप अपने साथी को लेबल दे रहे हैं और वह लेबल ही साथी के आपके प्रति और आपके साथी के प्रति व्यवहार को दर्शाता है।
दरअसल बेज फ्लैग जैसे रिमार्क से रिश्तों में कटुता आती ही आती है। शिकागो की चिकित्सक मिशेल हर्जों तो चेतावनी देते हुए कहती हैं कि ऐसे लेबलिंग से रिश्तों में खटास आना तय ही हैं। बेज फ्लैग जैसे लेबल जहां कोई समस्या नहीं हैं वहां भी संभावित समस्या पैदा कर देते हैं। हालांकि यह नए नए रूझान सोशल मीडिया पर अपने फालोअर्स बढ़ाने और इंफ्लूएसर मार्केटिंग के लिए किये जाते हैं, परन्तु इनका असर काफी गहरा देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर साइबर बूलिंग आम होती जा रही है। साइबर बूलिंग में डराने-धमकाने के संदेशों के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से टार्चर किया जाता है। संबंधित व्यक्ति अपने आत्म सम्मान पर ठेस समझता है और इसके कारण अत्यधिक संवेदनशील व्यक्ति तो तनाव में चला जाता है। इससे उसकी दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित होने लगती है। देखा जाए तो सोशल मीडिया आपसी जुड़ाव का माध्यम होना चाहिए, परन्तु जिस तरह का रूझान चल रहा है, वह जुड़ाव के स्थान पर विलगाव का अधिक कारण बन रहा है। जाने-अनजाने में सामने वाले को गहरी ठेस लगती है।
भले ही हमारी प्रतिक्रिया मज़ाक में हो रही हो, परन्तु सोशल मीडिया पर हमारी प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रियाओं का सिलसिला किस दिशा और हद तक चल निकले, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए सामने वाले की भावनाओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिए अन्यथा और कुछ नहीं तो संबंधों में अलगाव तो तय ही है। ऐसे में सोशल मीडिया को हमें सकारात्मक दिशा में ले जाना होगा। अनपेक्षित प्रतिक्रियाओं से बचना होगा। सोशल मीडिया दरअसल समय काटने या दूसरे को परेशान करने का माध्यम नहीं है और न ही होना चाहिए, बल्कि होना तो यह चाहिए कि सोशल मीडिया को सकारात्मकता का विस्तार और प्ररित करने का माध्यम बनना चाहिए ताकि सामाजिक सरोकारों को मज़बूती प्रदान की जा सके। इस भाग-दौड़, ईर्ष्या व प्रतिस्पर्धा की ज़िंदगी में लोगों को निराशा व तनाव से बाहर लाया जा सके। हमारी प्रतिक्रिया किसी को प्रेरित करने का माध्यम बने तभी प्रतिक्रिया की सार्थकता है। ऐसे में सोशल मीडिया में नित नए प्रयोग करते समय कुछ अधिक ही गंभीर होना होगा। खास तौर से समाज, विज्ञानियों और मनोविश्लेषकों को गंभीरता से ध्यान देना ही होगा।  
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