तीसरे चरण के बाद

जम्मू-कश्मीर में हुये चुनावों को कई पक्षों से ऐतिहासिक कहा जा सकता है। पिछले 35 वर्ष से इस क्षेत्र में ज़बरदस्त हिंसक घटनाएं घटित होती रही हैं। व्यापक स्तर पर खून-खराबा होता रहा है। कश्मीर घाटी से भारी संख्या में लोगों को विस्थापित होकर जम्मू तथा देश के अन्य भिन्न-भिन्न स्थानों में शरणार्थी बन कर रहना पड़ रहा है। यह सब कुछ पाकिस्तान के इशारे पर होता रहा है तथा आज भी ऐसा दौर जारी है। कश्मीर के मामले पर ही भारत एवं पाकिस्तान के बीच युद्ध भी होते रहे हैं, जिनमें हज़ारों  लोगों का खून बहा है। भारत ने लगातार यहां के हालात को सम्भालने का यत्न किया परन्तु वह बड़ी सीमा तक विफल ही रहा था। पिछले दशकों में यहां हुए चुनावों के बाद भिन्न-भिन्न पार्टियों की सरकारें बनती रही हैं परन्तु अक्सर वह विफल ही होती रही थीं। इसलिए यहां लम्बी अवधि तक राज्यपाल शासन ही चलते रहे। दूसरा कारण यह कि इस बार चुनाव नये बने हालात में हुए हैं।
पांच वर्ष पहले 5 अगस्त, 2019 में केन्द्र सरकार की ओर से इस राज्य को विशेष अधिकार देने वाली धारा 370 को खत्म करने की घोषणा की गई थी। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर प्रदेश को दो भागों में विभाजित करके इन्हें केन्द्र शासित क्षेत्र भी घोषित कर दिया गया था। इस समय में सरकार ने इस राज्य के हालात को प्रत्येक पक्ष से बेहतर बनाने का यत्न किया, जिसके प्रत्यक्ष परिणाम भी सामने आये हैं। अब इन हालात में करवाये गये पहले लोकसभा चुनाव और अब विधानसभा चुनावों ने यह ज़रूर दर्शा दिया है कि यह क्षेत्र प्रत्येक पक्ष से बेहतरी की ओर जाता दिखाई दे रहा है। पिछले कई वर्षों से यह सुन्दर धरती पर्यटकों के आगमन से भरी रही है। चाहे पाकिस्तान की नीति तो पहले वाली ही रही है परन्तु यहां हिंसा की घटनाएं बड़ी सीमा तक कम हुई हैं। ऐसे माहौल में हुये विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में आम लोगों का मतदान करना भी भारी उत्साह एवं अच्छी सम्भावनाएं पैदा करता है। मतदाताओं की प्रतिशतता को देख कर और भी उत्साह पैदा होता है। हालात के दृष्टिगत भारतीय चुनाव आयोग की ओर से यहां विधानसभा की 90 सीटों पर तीन चरणों में चुनाव करवाये गये हैं। 18 सितम्बर को 24 सीटों के लिए मतदान हुआ, दूसरे चरण के तहत 25 सितम्बर को 25 सीटों पर चुनाव हुए तथा एक अक्तूबर को तीसरे चरण के तहत 40 सीटों पर मतदाए हुआ। इन तीनों चरणों में मतदाताओं की प्रतिशतता बड़ा विश्वास पैदा करने वाली रही है। पहले चरण में 61 प्रतिशत से अधिक, दूसरे चरण में लगभग 57 प्रतिशत तथा एक अक्तूबर के तीसरे एवं अंतिम चरण के चुनावों में 68 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है।
इन चुनावों में इसे पुन: राज्य का दर्जा देना, धारा 370 को खत्म करना, पाकिस्तान के साथ पुन: बातचीत शुरू करना और बेरोज़गारी आदि प्रमुख मुद्दे बने रहे हैं। इस संबंध में चुनावी रैलियों में भारतीय जनता पार्टी का व्यवहार बिल्कुल स्पष्ट रहा है। इसके नेताओं ने धारा 370 को बहाल करने की मांग रद्द की है तथा इसके साथ उस समय तक पाकिस्तान के साथ बातचीत न करने के बयान दिये हैं, जब तक वह जम्मू-कश्मीर में अपनी हिंसक गतिविधियों से बाज़ नहीं आता। दूसरी ओर कांग्रेस इसे राज्य का दर्जा दिलाने तथा इसके विकास कार्यों को तेज़ करने की बात करती रही है। इसके साथ ही उसकी सहयोगी नैशनल कान्फ्रैंस एवं मुफ़्ती महबूबा के नेतृत्व वाली पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) यहां धारा 370 को पुन: लागू करने एवं पाकिस्तान के साथ बातचीत करने का समर्थन करती रही है, परन्तु इसके साथ ही गर्म एवं ब़ागी विचारों वाली पार्टियां अवामी इत्तेहाद पार्टी तथा जमात-ए-इस्लामी कश्मीर भी किसी न किसी रूप में इन चुनावों में उतरी रही हैं। इसके अतिरिक्त पीपुल्स कान्फ्रैंस, अपनी पार्टी एवं  डैमोक्रेटिक प्रोग्रैसिव आज़ाद पार्टी भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने वालों की पंक्ति में खड़ी दिखाई देती हैं। अब जब हरियाणा तथा जम्मू-कश्मीर में हो रहे इन चुनावों के परिणाम 8 अक्तूबर को सामने आएंगे तो उस समय भी जम्मू-कश्मीर में बनने वाली सरकार को देश भर में बड़ी गम्भीरता एवं दिलचस्पी के साथ देखा जाएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द