साइबर अपराध संबंधी लापरवाह हैं देश की एजेंसियां

हालांकि विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि देश में साइबर अपराध द्वारा विगत सिर्फ चार माह में ही 400 करोड़ रुये की ठगी हो चुकी है, परन्तु हम समझते हैं कि यह आंकड़ा वास्तव में इससे भी कहीं बड़ा है। बहुत बार ठगा गया व्यक्ति बोलता ही नहीं और सच यह है कि कहीं सुनवाई भी नहीं होती। जिस  घटिया तरीके से भारतीय पुलिस तथा एजेंसियां साइबर अपराध से निपटती हैं, वह बहुत ही शर्मनाक एवं विफल तरीका है। 
ठग बहुत ही आधुनिक ढंग इस्तेमाल करते हैं। आई.वी.आर. (कम्प्यूटर की आवाज़ से जवाब देने वाले साफ्ट वेयर उनके पास हैं), जिस कारण आम व्यक्ति को यह पूरा घटनाक्रम ठगी नहीं अपितु वास्तविक प्रतीत होता है। ये लोग कॉल सुनने वाले को इतना डरा देते हैं कि उसे अपना तथा अपने परिवार का भविष्य खतरे में प्रतीत होता है। ज़िन्दगी जेल में व्यतीत होती दिखाई देती है। डरा हुआ व्यक्ति ठगों के इशारे पर हर काम करता जाता है। 
उदाहरण हमारे सामने हैं। लखनऊ पी.जी.आई. की डाक्टर रुचिका टंडन को मनी लांडिं्रग में उसका आधार कार्ड इस्तेमाल करने के झूठे डर में एक अगस्त से 8 अगस्त, 24 तक घर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रहने के लिए मजबूर करके उससे 2.81 करोड़ रुपये ठग लिए गए। नोएडा के एक मेजर जनरल को उसके पार्सल में अवैध वस्तुएं होने का डर दिखा कर दो करोड़ रुपये ठगे गए और डर के कारण वह भी 5 दिन घर में ‘डिजिटल कैद’ में रहा। 
मैं स्वयं गवाह हूं कि पुलिस कुछ नहीं करती। साइबर ठगों की शिकायत तक करना संभव नहीं लगता। मेरे साथ ऐसा तीन बार से ज़्यादा हुआ है कि आई.वी.आर. के माध्यम से कॉल आती है। कहा जाता है कि मैंने एक पार्सल करवाया है जिसमें जाली पासपोर्ट हैं और ड्रग्स हैं। मैंने कहा कि मैंने कोई पार्सल नहीं करवाया तो आगे से कहा जाता है कि कस्टम विभाग से बोल रहे हैं। इसके साथ आपका आधार कार्ड लगा है। अब आप हमारे बड़े अधिकारी से बात कर लें, और वहीं से कॉल कथित बड़े अधिकारी को ट्रांस्फर कर दी जाती है और वह आपको इतना भयभीत करने की कोशिश करता है कि आप अपना होश खो बैठते हैं, परन्तु मैं नहीं डरा। जब मैं सख्ती से पेश आया तो कथित बड़ा अधिकारी अंग्रेज़ी से हिन्दी छोड़ कर उर्दू मिक्स पंजाबी में गाली-गलौच पर उतर आया। उसकी भाषा साफ एहसास करवाती थी कि वह संभावित रूप में कोई पाकिस्तानी होगा। एक बार तो इस संबंधी मैंने खन्ना के एस.एस.पी. को फोन पर मौखिक शिकायत की। उन्होंने बताया कि कॉल करने वाला नम्बर उत्तर प्रदेश का है, परन्तु उन्होंने भी कोई कार्रवाई नहीं की। इस बीच मैंने साइबर अपराध के केन्द्रीय नम्बर पर लगभग 50 बार कॉल करने की कोशिश की, परन्तु एक बार भी बात नहीं हुई। चंडीगढ़ साइबर अपराध के लैंडलाइन नम्बर पर कई बार फोन किया, परन्तु किसी ने नहीं उठाया। यहां तक कि साइबर अपराध के पंजाब के सबसे बड़े अधिकारी को उनके मोबाइल पर 4-5 बार कॉल की। उन्होंने भी फोन नहीं उठाया। आज भी यह लेख लिखने से पहले सिर्फ देखने लिए 1930 नम्बर पर 3 बार कॉल की, परन्तु बात नहीं हुई। फिर चंडीगढ़ के साइबर अपराध नम्बर पर कॉल की, तो भी किसी ने फोन नहीं उठाया। सो, मेरी भारत तथा पंजाब सरकार दोनों से विनती है कि इस मामले में बरती जा रही लापरवाही संबंधी पुलिस अधिकारियों को रोका जाए और लोगों को बर्बाद होने से बचाया जाए। 
तनमनजीत सिंह की नई ज़िम्मेदारी
ब्रिटेन के पहले पगड़ी तथा केशधारी सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी को ब्रिटेन के आल पार्टी सांसदों पर आधारित दक्षिण-पूर्वी समूह का चेयरमैन बनाया गया है। यह सिर्फ ढेसी के लिए ही गर्व की बात नहीं अपितु समूची सिख कौम, पंजाबियों तथा भारतीयों के लिए भी गर्व की बात है। ढेसी अब भारत तथा इस क्षेत्र के अन्य देशों के प्रति ब्रिटेन की नीतियों को नया रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। बेशक वह ब्रिटेन के प्रतिनिधि हैं और उनका कार्य ब्रिटेन के हित देखना है, परन्तु भारतीय मूल के होने के कारण उनसे भारत पक्षीय दमदर्दी वाले रवैये की भी उम्मीद की जा सकती है। हालांकि जब वह विपक्ष के सांसद थे, तो उनके भारत आने तथा उनके साथ हवाई अड्डे पर किया गया व्यवहार सम्मानजनक नहीं था, परन्तु फिर भी हम समझते हैं कि ढेसी उस बात को भुला कर भारत के साथ संबंधों को और मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाएंगे। भारत उनके माथ्यम से ब्रिटेन के सिखों में फैली नाराज़गी को भी दूर कर सकता है। इसलिए भारत को ब्रिटिश नागरिक जगतार सिंह जौहल की नज़रबंदी बारे भी पुन: विचार करना चाहिए। खैर, तनमनजीत सिंह ढेसी इस मंच के माध्यम से भारत के साथ आर्थिक संबंधों, आतंकवाद पर अंकुश तथा साइबर सुरक्षा जैसे मामलों पर सहयोग बढ़ाने के नीतिगत फैसलों के लिए विशेषज्ञों, कूटनीतिज्ञों तथा ब्रिटेन के सांसदों के भारतीय दृष्टिकोण अच्छी तरह स्वयं समझ कर समझाने के समर्थ हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि भारत की ‘नेबर फर्स्ट पालिसी’ (पड़ोसी पहले नीति) बुरी तरह विफल हो चुकी है। इस समय हमारे लगभग सभी पड़ोसी देश चीन की इस क्षेत्र में भारत को घेरने के लिए अपनाई ‘स्ंिटग आफ पर्ल्स’ नीति में फंस चुके हैं। भारत के पास एक भी पड़ोसी विश्वसनीय मित्र की हैसियत में नहीं रहा। बांग्लादेश अमरीका के निकट है और शेष सभी चीन के निकट हैं। इस हालत में एक भारतीय मूल के सरदार ढेसी का इस समिति का प्रमुख बनना भारत के हित में है, क्योंकि ब्रिटेन की प्राथमिकता चीन नहीं हो सकता। भू-राजनीतिक हालात में वह इन देशों को चीन के शिकंजे में से निकालने में भारत का सहायक हो सकता है। इसलिए आवश्यक है कि भारत भी जियो-पालिटिक्स (विश्व राजनीति) को देखते हुए एक भारतीय मूल के व्यक्ति को महत्व दे। 
खैर, ढेसी इससे पहले ब्रिटेन के रक्षा समिति के भी चेयरमैन चुने गए थे। वह पहले गैर-गोरा व्यक्ति हैं जो इस महत्वपूर्ण पद के लिए चुने गए। यह समिति ब्रिटेन के रक्षा खर्च, प्रशासन तथा नीति की जांच करने के लिए ज़िम्मेदार है। हम आशा करते हैं कि ढेसी अभी और बड़े पदों पर पहुंचेंगे। वह अभी सिर्फ 46 वर्ष के ही हैं। वह लगभग 8 भाषाएं जानते हैं। वह ब्रिटेन के शैडो रेल मंत्री तथा वित्त सचिव भी रह चुके हैं। हम तनमनजीत सिंह ढेसी को बधाई देते हुए अल्लामा इकबाल का एक शे’अर समर्पित करते हैं : 
तू शाहीन है, परवाज़ है काम तेरा,
तेरे सामने आसमां और भी हैं। 
हरियाणा के सिख तथा चुनाव
वक्त-ए-माज़ी की वक्त-ए-हाल
 पे तरजीह नहीं होती,
वक्त पड़ा हो तो दुश्मन भी 
दोस्त बनाने पड़ते हैं। 
(माज़ी : बीता हुआ कल)   
वास्तव में 1984 का श्री दरबार साहिब पर हमला तथा दिल्ली और अन्य राज्यों में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ सिखों का कत्लेआम, देशभर में सिख सोच को कांग्रेस विरोधी बना दिया गया था। चाहे अकाली दल की भाजपा के साथ निकटता राजनीतिक लाभ के लिए अधिक थी, परन्तु आम सिख सोच भी भाजपा की ओर झुकी थी। परन्तु विगत 10 वर्षों के शासन में चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में सिखों को खुश करने के लिए उनके हित में कुछ अच्छे काम भी हुए, परन्तु भाजपा का लगातार चलता बहुसंख्यकवाद का रवैया अल्पसंख्यकों को उससे दूर ही करता जा रहा है। फिर भाजपा यदि कोई काम सिखों के पक्ष में करती भी है तो उसके कुछ नेता ऐसे बयान ज़रूर दे देते हैं जो सिखों को भाजपा से और दूर करते हैं। भाजपा नेताओं के बयान सिख सोच को चिन्ता में डालते हैं कि कहीं यह बहुसंख्यकवाद सिख धर्म को भी धीरे-धीरे बुद्ध तथा जैन धर्म की भांति हिन्दू धर्म में ही न समा ले। हिन्दू राष्ट्र का नारा, एक देश-एक कानून जैसे नारे सिखों को भाजपा से सचेत रहने के लिए प्रेरित करते हैं। इस बार चाहे अकाली दल ने हरियाणा में इनैलो की ही मदद की है, परन्तु इन रिपोर्टें यही हैं कि हरियाणा में रहते लगभग 20 लाख सिखों की बहुसंख्या इस बार कांग्रेस की ओर लौटी है। इसके कारणों में भाजपा द्वारा किसानों के साथ किया गया व्यवहार, सिख बंदियों के प्रति दुश्मनों वाला रवैया आदि मुख्य कारणों के रूप में दिखाई देता है। हैरानी की बात है कि सिख बंदियों को भाजपा के शासन में एक बार भी पैरोल या फरलो मिलना कठिन है, परन्तु हत्या तथा दुष्कर्म के केसों में सज़ा प्राप्त डेरा प्रमुख को प्रत्येक चुनाव के अवसर पर पैरोल या फरलो मिल जाती है। सिर्फ 4 वर्षों में वह 15 बार लगभग 260 दिनों के लिए बाहर आया है। यह स्थिति सिखों में भाजपा के प्रति अविश्वास पैदा करती है जबकि इस बीच राहुल गांधी का बार-बार श्री दरबार साहिब आकर सेवा करना या नतमस्तक होना तथा अल्पसंख्यकों के पक्ष में बोलना अपने स्थान पर महत्व रखता है। 
फिर हरियाणा के प्रमुख सिखों ने इस बार एकजुट होकर अपना एक घोषणा-पत्र भी जारी किया था कि जो पार्टी उनकी मांगों से सहमत होगी, सिख उसी के साथ जाएंगे। भाजपा ने उस पर ध्यान नहीं दिया जबकि कांग्रेस ने सरकार की नामज़द की गई गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को तोड़ कर चुनाव करवाने, हरियाणा में गुरु गोबिन्द सिंह यूनिवर्सिटी बनाने, दिल्ली पैट्रन पर पंजाबी अकादमी बनाने तथा हरिणाणा अल्पसंख्यक आयोग बनाने के वायदे किए हैं। फिर कांग्रेस ने इस बार 5 या 6 सिखों को विधानसभा की टिकटें भी दी हैं, जिनमें कई जीतने की या मुकाबले की स्थिति में हैं और भाजपा ने सिर्फ एक सिख को टिकट दी है। वह भी भाजपा की एक कमज़ोर मानी जाती सीट है। 
गर्दिश-ए-आयाम से चलती है नब्ज़-ए-कायनात,
वक्त का पहिया रुका तो ज़िन्दगी रुक जाएगी।
(लत़ीफ शाह शाहिद) 
(गर्दिश-ए-आयाम : काल चक्कर, नब्ज़-ए-कायनात : ब्रह्मांड की हरकत)  
-मो. 92168-60000