चिन्ताजनक स्थिति

चाहे पंजाब सरकार की ओर से एक अक्तूबर से धान की खरीद शुरू करने की घोषणा की गई थी, परन्तु सरकार की व्यवस्था के दृष्टिगत कुछ भी निश्चित नहीं प्रतीत होता। विज्ञापनों द्वारा यह दावा किया गया था कि 1817 मंडियों या खरीद केन्द्रों में समुचित खरीद के लिए पुख्ता प्रबन्ध किए गए हैं परन्तु इसके बावजूद सरकार ने जहां खरीद एजेन्सियां नियुक्त करने संबंधी असमंजस डाले रखा, वहीं ज्यादातर स्थानों पर बारदाना तक भी नहीं पहुंचा था। केन्द्र से इस संबंध में सम्पर्क बनाये रखने तथा खरीद एजेंसियों को पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त करने में लगातार अपनाई गई ढील ने ही यह अहसास करवा दिया था कि इस बार धान की खरीद में व्यापक स्तर पर जटिलताएं पैदा होंगी। इसका एक बड़ा कारण पंजाब में गोदामों का पहले ही भरा होना था।
केन्द्र की ओर से लम्बी अवधि से स्टोरों में पड़ा अनाज अब तक उठवाया नहीं गया। मंडियों में आने वाले धान की ़फसल का रख-रखाव कैसे होगा, इस संबंध में कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ था। इस बार धान लगभग 32 लाख एकड़ में लगाया गया था। सरकार ने इसमें से 185 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद करनी थी। गोदामों में स्थान बनाने के लिए कई मास पहले से यत्न किये जाने ज़रूर थे परन्तु प्रदेश सरकार ने केन्द्र को पत्र लिख कर ही काम चलाने का यत्न किया। इससे संबंधित मंत्री या मुख्यमंत्री ने स्वयं सम्पर्क करके इस गम्भीर समस्या के हल हेतु कोई ठोस कदम नहीं उठाया परन्तु इस संबंध में अन्य मुहाज़ों पर भी सरकार बुरी तरह पिछड़ती प्रतीत होती है। इस ़फसल की सार-सम्भाल के लिए शैलरों मालिकों, आढ़तियों एवं भारी संख्या में मज़दूरों की ज़रूरत होती है परन्तु इन सभी वर्गों का सरकार से राबता नहीं बना। आढ़ती संगठनों ने इस काम में शामिल होने से इन्कार कर दिया। संबंधित श्रमिक अपनी मांगों पर अडिग रहे तथा शैलर वाले सरकार को अपनी समस्याएं दूर करने के लिए गुहार लगाते रहे परन्तु समय-समय पर इन वर्गों के साथ की गई बैठकें  बेनतीजा ही रहीं।
शैलर मालिक यह शिकायत कर रहे हैं कि 26 सितम्बर को मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में उन्हें यह विश्वास दिलाया गया था कि पहले से भरे गोदामों संबंधी केन्द्र से सम्पर्क बना कर इन्हें शीघ्र-अतिशीघ्र  खाली करवाने का काम शुरू किया जाएगा परन्तु इस संबंध में कुछ भी नहीं किया गया। पहले ही लम्बी अवधि से ़फसल गोदामों में भरी रहने के कारण उन्हें भारी आर्थिक हानि सहन करनी पड़ी है, क्योंकि पिछले दो वर्ष से यह स्थिति वैसे की वैसी ही बनी हुई है। ज्यादातर शैलर वालों ने गोदाम किराये पर लिए थे, जिन्हें ये गोदाम लम्बी अवधि तक खाली न होने के कारण हानि हुई है। मौसम के कारण पहले  से पड़े धान की गुणवत्ता भी कम हो गई है। शैलर वालों की सरकार की ओर पहले ही कई तरह की अदायगियां शेष हैं। इसलिए वे इन अदायगियों के बाद तथा गोदामों के खाली होने के उपरांत ही नई फसल के रख-रखाव एवं छंटाई संबंधी प्रबन्ध कर सकेंगे। आढ़ती संगठन पहले की ही भांति 2.5 प्रतिशत आढ़त की मांग कर रहे है जबकि केन्द्र सरकार की ओर से पिछले वर्षों से आढ़त 46 रुपए प्रति क्ंिवटल ही निर्धारित कर दी गई है। इसके साथ ही वे केन्द्रीय खरीद एजेंसी की ओर से पहले ही रोके हुए मज़दूरी के पैसों की भी मांग कर रहे हैं।
मज़दूरों ने भी मंडी में आने वाली ़फसल को अपनी मांगों को लेकर उठाने से इन्कार किया हुआ है। चाहे विगत दिवस इन सभी की मंत्रियों एवं अधिकारियों के साथ बैठकें ज़रूर होती रही हैं परन्तु उनका कोई परिणाम नहीं निकला, जबकि मुख्यमंत्री ये दावे कर रहे हैं कि धान की खरीद में किसानों को कोई मुश्किल नहीं आने दी जाएगी तथा उन्हें मौके पर ही अदायगी भी की जाएगी। इन कारणों के दृष्टिगत एक अक्तूबर से मंडियों में खरीद का काम अच्छी तरह से शुरू नहीं हो सका। जो किसान ़फसल मंडियों में लाते भी हैं, उसका भी कोई प्रबन्ध नहीं हो रहा। इसने हालात बेहद चिन्ताजनक बना दिये हैं। किसान वर्ग बड़ी मुश्किल में फंसा हुआ महसूस कर रहा है। इस संबंध में भी अनिश्चितता बनी हुई है कि समूचे रूप में ये सभी मसले कब हल होंगे।
यह तो सुनिश्चित ही प्रतीत होने लगा है कि एक निश्चित समय में पहले भरे भंडारण को खाली किया जाना किसी तरह भी सम्भव नहीं है। केन्द्र की ओर से भी इस संबंधी लगातार ढिलमुल नीति ही अपनाई जा रही है, जो प्रदेश के लिए भारी आर्थिक नुक्सान का कारण बन सकती है। यदि शीघ्र सक्रिय होकर पंजाब सरकार इस समस्या के प्रति केन्द्र सरकार के साथ सम्पर्क करके कोई सुखद हल निकलवा पाने में असमर्थ रही तो इस संबंध में स्थिति और भी गम्भीर हो जाएगी, जो पहले ही घाटे में चल रहे प्रदेश के लिए और भी बड़ी समस्याएं खड़ी करेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द