इस नवरात्रि पर अपने संकल्पों को पूरा करें 

हमारा मन संकल्पों एवं विकल्पों से भरा हुआ है। ताकत आपके इरादे में है और प्रत्येक कार्य दृढ़ इरादे से ही होता है। हाथ उठने से पहले ही मन में एक संकल्प उठता है। कमज़ोर मन का संकल्प अप्रभावी होता है, परन्तु आध्यात्मिक अभ्यास तथा ज्ञान के द्वारा अपने मन को मज़बूत करने से हमारा संकल्प मज़बूत होता है।
नवरात्रि के पहले तीन दिन तमो गुण, अगले तीन दिन रजो गुण तथा अंतिम तीन दिन सत्व गुण के लिए माने जाते हैं। हमारी चेतना तमो तथा रजो गुण में से गुज़रती है और पिछले तीन दिनों में सत्व गुण में खिल जाती है। इस ज्ञान के निष्कर्ष को दसवें दिन विजयदशमी के रूप में मनाकर सम्मानित किया जाता है।
संकल्प का एक अर्त है अपनी चेतना को ब्रह्मांड में, अनंत में ले जाना तथा मन को वर्तमान में लाना। संकल्प में आप एक इच्छा करें और फिर इसे छोड़ दें और बिना किसी मोह के उस दिशा में कार्य करते रहें। जैसे ही आप ऐसा करते हैं, आपका संकल्प सच होना शुरू हो जाएगा। मान लो कि आप बैंग्लुरु से मुम्बई जाना चाहते हैं। आप टिकट खरीदते हैं और लगभग दो घंटे का सफर करते हैं और मुम्बई पहुंच जाते हैं, परन्तु आप दो घंटे के समय में यदि यह उच्चारण करते रहेंगे कि ‘मैंने मुम्बई जाना है या मैं मुम्बई जा रहा हूं।’ यदि आप ऐसा करते रहे तो आप पागलखाने भी जा सकते हैं। कई बार इच्छा एक बीमारी का रूप ले लेती है और आपके लक्ष्य में बाधा बन जाती है। इच्छा के साथ आपको यह विश्वास भी होना चाहिए कि जो कुछ मेरे लिए अच्छा है, वह मुझे मिलेगा, चाहे कुछ समय के लिए यह प्रतीत होता है कि ये वह नहीं है जो आपके लिए सबसे अच्छा है, लम्बे समय में आपके लिए सबसे अच्छा आपके साथ घटित होगा। 
यहां अपनाई जाने वाली मुख्य बातें हैं—साधना (आध्यात्मिक अभ्यास तथा स्व-यत्न), जागरूकता तथा इच्छाओं का त्याग।
आम तौर पर जब लोग अपनी आंखें करके अपने भीतर चले जाते हैं तो उनके मन में ऐसे विचार आते हैं, ‘यह सही नहीं है, यह सही नहीं है।’ वे प्रत्येक वस्तु में नुक्स ढूंढते हैं। वे न तो सिमरन कर सकते हैं और न ही शांत हो सकते हैं। गतिविधियों में व्यस्त हुए लोग इसके बिल्कुल विपरीत करते हैं। कार्य करते समय सोचते हैं कि ‘सब कुछ ठीक है’।
हमें इन दोनों दृष्टिकोण की ओर ध्यान देना चाहिए। जब आपने अपने भीतर जाना है तो संन्यास का रवैया होना चाहिए—यह जैसे है, ठीक है। जब आपने बाहर आकर कार्य करना होता है, तो आपको यह पता होना चाहिए कि हमने कौन-सी वस्तुओं को ठीक करना है। ऐसा करने से आप छोटी-छोटी बातों में भी सम्पूर्णता देखते हैं। जहां भी आप कोई अपूर्णता देखते हैं, देखें कि आप इसे कैसे ठीक कर सकते हैं। ये दोनों तरीके आपको ध्यान में गहरा जाने में मदद करेंगे। मैडिटेशन का मूल सिद्धांत है—मैं कुछ नहीं चाहता, मैं कुछ नहीं कर रहा और मैं कुछ भी नहीं हूं।
नवरात्रि के नौ दिन ब्रह्मता से आंतरिक संबंध के दिन हैं। इन नौ दिनों में, आओ हम अपनी सभी छोटी-छोटी इच्छाओं, ज़रूरतों, छोटी-छोटी समस्याओं के एक तरफ रख दें, जो हमें परेशान करती हैं और सब उस माता, देवी को, उस परम ब्रह्म को कहें, ‘मैं आपकी हूं, जो भी आप मेरे लिए चाहते हैं, यह पूरा हो सकता है।’ इस दृढ़ विश्वास से जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते जाएं, अपनी साधना करें। आपको किसी चीज़ की कमी नहीं होगी। आपको जो भी चाहिए, वह आपके पास प्राकृतिक रूप में आएगा।
इस विश्वास के साथ आगे बढ़ें कि हमारा ध्यान रखा जा रहा है और जारी रहेगा। नवरात्रि एक ऐसा समय है जब प्रत्येक किस्म की ज़रूरतें, शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक परमात्मा द्वारा पूरी होती हैं। साथ ही, उनकी मदद करें जिन्हें आपकी मदद की ज़रूरत है। ये नौ रातें बहुत ही शुभ तथा आत्मा को उत्साह देने वाली हैं। इन दिनों में अपने साथ रहें, ब्रह्म ज्ञान में जीएं।