राज्य के साझे मामलों के लिए पंजाबी सांसद हों एकजुट

इस कद्र हम को डराना नहीं अच्छा ‘अतहर’,
क्या पता हम को किसी चीज़ का फिर डर ही न हो।
मिज़र्ा अतहर ज़िया का यह शे’अर डराने की इन्तहा के प्रभाव की तर्जुमानी करता है कि जब डराने की सीमा पार हो जाती है तो डर ही खत्म हो जाता है। ़खैर, आज हम इस बार 18वीं लोकसभा के पहले अधिवेशन में जो कुछ घटित हुआ है, उसके प्रभाव की बात करना चाहते हैं। वास्तविकता यह है कि इस बार लोकसभा में यह बात बहुत ज़ोर-शोर से उठी है कि ‘डरो मत, डराओ मत।’ विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता शिवजी महाराज या महादेव की तस्वीर लोकसभा में दिखाई और कहा कि यह तस्वीर शिवजी की अभय (निडरता) की मुद्रा की तस्वीर है। वह तस्वीर में विशाल सर्प को डर का प्रतीक कहते हैं तथा शिवजी के बाएं हाथ त्रिशूल को भी अहिंसा का प्रतीक बताते हैं। राहुल ने श्री गुरु नानक देव जी की तस्वीर, दुआ हेतु उठे मुस्लिम हाथों की तस्वीर तथा ईसाइयत की तस्वीर दिखाने के साथ-साथ महात्मा बुद्ध तथा जैन धर्म की बात भी की और कहा कि प्रत्येक धर्म यही सिखाता है कि ‘डरो मत, डराओ मत।’ राहुल गांधी ने कहा कि श्री गुरु नानक देव जी ने कई देशों तथा भिन्न-भिन्न धार्मिक स्थानों को दौरा किया। वह कहीं भी डरे नहीं और कहीं भी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया। हम यहां न तो धर्म की विविधता पर बहस कर रहे हैं और न ही राजनीतिक क्षेत्र में हार-जीत पर बहस कर रहे हैं। हमें इस बात का निर्णय करने की भी ज़रूरत नहीं कि किसका भाषण अधिक ज़ोरदार था, और राहुल गांधी या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में से कौन अपनी बात कहने के अधिक समर्थ दिखाई दिये थे, परन्तु हमें एक बात की खुशी अवश्य है कि इस बार लोकसभा में एक भारतीय धर्म दर्शन की बात चली है कि ‘डरो न, डराओ न।’ 
स्लोक महला नौवां के स्लोकों में नौवें गुरु साहिब श्री गुरु तेग बहादुर जी तो न डरने से भी पहले न डराने की बात करते हैं :
भै काहू कउ देतु नहि नहि भै मानत आन,
कहु नानक सुनि रे मना ज्ञानी ताहि बखानि।
(अंग 1427)
यह एक कदम और भी आगे है कि जो मनुष्य किसी को डराए न और किसी का डर माने भी न, नानक कह रहे हैं कि हे मन, उसे ही आत्मिक सूझ वाला समझ। 
हम समझते हैं कि न डरने तथा न डराने की बात के प्रचार की भारत तथा दुनिया के लोगों को बहुत सख्त ज़रूरत है। सिर्फ राजनीति में ही नहीं, अपितु जीवन के हर शोभे में। जब हम भारतीय दर्शन की यह बात अपना लेंगे तथा हमारी यह धारणा बन जाएगी कि न तो किसी पर ज़ुल्म करना है और न ही किसी भी हालत में ज़ुल्म सहना है, तो सचमुच ही उस दिन यह दुनिया स्वर्ग बन जाएगी, क्योंकि जब हम इस सिद्धांत को अपना लेंगे तो जब्र एवं ज़ुल्म का खात्मा हो जाएगा। असमानता की जड़ ही उखड़ जाएगी। वैसे यह डरना तथा डराना ही दुनिया के देशों में युद्धों का कारण बन रहा है। 
ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।
(मेराज फैजाबादी)
पंजाबी सांसद एकजुट नहीं हो रहे
हमने बार-बार लिखा है कि राजनीतिक पार्टियां अपने स्थान पर हैं। अलग-अलग पार्टियों के सांसद जम कर एक-दूसरे की पार्टी के विरोध करें, परन्तु पंजाब के सांसदों को विनती है कि वे कम से कम पंजाब की साझी मांगों जिनमें पंजाब के पानी की मालिकी का फैसला तथा उसकी कीमत या रायलिटी लेने का मामला, पंजाब में खत्म हो भू-जल, पाकिस्तान के साथ मुम्बई तथा गुजरात की बंदरगाहों से होते व्यापार के मुकाबले कहीं सस्ते रास्ते हुसैनीवाला तथा बाघा -अटारी सीमाओं के रास्ते व्यापार खोलना, जो सिर्फ पाकिस्तान के लिए ही नहीं, अपितु अफगानिस्तान, ईरान तथा यूरोपीय देशों के लिए भी लाभदायक हो सकता है। फसलों का कानूनी न्यूनतम समर्थन मूल्य जो पंजाब को धान तथा गेहूं के फसली चक्कर से निकाल सकता है, मज़दूरों को 40-42 दिन के मगनरेगा के अन्तर्गत काम के बदले न्यूनतम 100 दिन के काम की गारंटी, चंडीगढ़ पंजाब के हवाले करना आदि के अतिरिक्त अन्य भी कई साझी मांगें शामिल हैं, के लिए एक बैठक करके एक सांझी रणनीति बनानी चाहिए। वैसे ‘आप’ के राज्यसभा सदस्यों की कारगुज़ारी तो पंजाब के प्रति पहले ही काफी निराशाजनक है, क्योंकि उनका चुनाव कैसे हुआ, बारे पहले ही बहुत चर्चा सुनाई दे रही है, परन्तु कम से कम लोकसभा के 13 सांसद तो लोगों के चुने हुए सदस्य हैं। वे तो पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर पंजाब की मांगों के लिए बोल ही सकते हैं, परन्तु इस संबंध में कोई पहल नहीं हो रही। 
खुशी की बात है कि इस बार पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिन्दर सिंह राजा वड़िंग तथा अकाली दल की बीबा हरसिमरत कौर ने पंजाब की मांगें लोकसभा में उठाई हैं। ‘आप’ के मीत हेयर ने भी थोड़ी-बहुत बात की है, परन्तु अफसोस, राष्ट्रपति के भाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब की मांगों पर पूरी तरह खामोशी ही अपनाए रखी है। यह बात और भी सिद्ध करती है कि पंजाब के सांसदों को पंजाब की मांगें उठाने के लिए आपस में मिल कर ही साझी रणनीति बनाने की ज़रूरत ही नहीं, अपितु उन्हें समूचे विपक्ष तथा सत्तापक्ष के सांसदों तक भी साझे रूप में पहुंच करके पंजाब की मांगों के हक बजानब होने की बात पहुंचानी चाहिए और न्याय के नाम पर साथ देने की मांग करनी चाहिए, ताकि उनकी बात दृष्टिविगत न की जा सके। 
अ़फसोस उम्र कट गई रंज-ओ-मलाल में,
देखा न ़ख्वाब में भी जो कुछ था ़ख्याल में। 
दल-बदली के रिकार्ड  
अब जालन्धर वैस्ट विधनसभा क्षेत्र का उप-चुनाव हो रहा है। यह चुनाव दल-बदली के पक्ष से ही हो रहा है। इस प्रकार प्रतीत होता है कि जालन्धर जैसे दल-बदली के सभी रिकार्ड तोड़ रहा है, परन्तु जो कुछ पहले पूर्व सांसद सुशील कुमार रिंकू ने किया और अब अकाली दल की उम्मीदवार बीबी सुरजीत कौर ने किया है, वह तो कमाल ही है। जो कुछ नेता कर रहे हैं, वह अपना जगह, परन्तु इस दल-बदली ने लगभग सभी पार्टियों के प्रमुखों तथा पार्टियों के सिद्धांतों का पूरा आवरण पूरी तरह उतार कर रख दिया है, क्योंकि वास्तव में दल-बदली करने वाले नेता दल-बदल तभी करते हैं जब उन्हें दल-बदली करवाने वाली ‘दूध-धुली’ पार्टी के ‘दूध-धुले’ नेता डर या लालच दिखा कर दल-बदली के लिए उकसाते हैं। 
इस समय जालन्धर वैस्ट के भाजपा नेता शीतल अंगुराल जो पहले भाजपा में थे, परन्तु 2022 में वह ‘आप’ में शामिल होकर विधायक बन गए थे। सुशील कुमार रिंकू पहले कांग्रेस में थे, रातों-रात ‘आप’ में शामिल हुए एवं सांसद बन गए परन्तु इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार थे। जालन्धर पश्चिमी से अब ‘आप’ उम्मीदवार महेन्द्र भगत भी भाजपा में थे। वह पूर्व भाजपा मंत्री भगत चूनी लाल के बेटे हैं। अकाली उम्मीदवार बीबी सुरजीत कौर बारे चर्चा है कि पहले वह अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल गुट की तरफ आकर बसपा के पक्ष में बैठने के लिए तैयार हो गई थीं किन्तु फिर वह ब़ागी अकालियों की तरफ हो गईं, क्योंकि अकाली दल उससे पीछे हट गया था, परन्तु अंत में वह ‘आप’ में शामिल हो गईं, परन्तु शाम तक फिर घर वापिसी हो गई और वह इस समय अकाली दल की ब़ागी गुट के उम्मीदवार हैं। 2023 में पूर्व विधायक सुरेन्द्र चौधरी ‘आप’ में चले गए, परन्तु बाद में घर वापिसी हो गई। महिन्द्र सिंह के.पी. जो पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे, टिकट न ंिमलने पर दल-बदली कर गए। एक पूर्व विधायक जगबीर सिंह बराड़ शायद 4 या 5 बार पार्टियां बदल गए। अन्य भी कई हैं और दूसरी कतार के नेताओं का ता ज़िक्र करना ही सम्भव नहीं। वैसे यह दल-बदल की बीमारी पूरे भारत में है, परन्तु पंजाब इस बार इसकी सबसे अधिक लपेट में है। वैसे खुशी की बात यह है कि लोकसभा चुनावों में पंजाब में दल-बदलुओं की बड़ी संख्या को लोगों ने हरा दिया था। अब जालन्धर पश्चिमी के उप-चुनाव में क्या होता है, देखने वाली बात होगी? इस अवसर पर प्रसिद्ध शायर मिज़र्ा ‘़गालिब’ का एक शे’अर बहुत याद आ रहा है :
काअबा किस मुंह से जाओगे ‘़गालिब’,
शर्म तुम को मगर नहीं आती।

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