लोकसभा में हंगामा : कांग्रेस पर अराजकता फैलाने का आरोप

लोकसभा में मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के दौरान विपक्ष ने जमकर बवाल काटा। मोदी ने जैसे ही राष्ट्रपति के भाषण पर लोकसभा में लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देना शुरू किया, वैसे ही विपक्षी दल हंगामा करने लगा। लोकतांत्रिक परम्पराएं ध्वस्त हो गई। विपक्षी दल ने अपनी सोची समझी योजना के तहत मोदी के भाषण में खलल डाला। जबकि सदन में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित सभी नेताओं का भाषण शांति से सुना गया। मगर जैसे ही प्रधानमंत्री ने अपना भाषण शुरू किया की सदन में विपक्ष ने हंगामा बरपा दिया। हालांकि मोदी ने अपना भाषण बिना शोर शराबे से प्रभावित हुए जारी रखा और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देते हुए विपक्ष पर जोरदार हमला किया। मोदी ने कांग्रेस पर अराजकता फैलाने का आरोप लगाया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्षी दल की अलोकतांत्रिक हरकत की निंदा की।
1967 से पूर्व देश में सत्ता और विपक्ष में आलोचना के बावजूद आपसी संबंध बहुत मधुर थे। उस दौरान सत्ता पक्ष बहुत मज़बूत था और विपक्ष बिखरे हुए। इसके बाद भी विपक्ष बहुत प्रभावी था। लोहिया से लेकर मधु लिमये, ए.के. गोपालन, हिरेन मुखर्जी, कृपलानी, राजाजी, नम्बूदरीपाद भूपेश गुप्ता, अटल बिहारी वाजपेयी, बलराज मधोक, लालकृष्ण आडवाणी, मीनू मसानी, नाथपई, पीलू मोदी, जॉर्ज फर्नांडीज, एन.जी. रंगा, ज्योतिर्मय बसु सरीखे विरोध पक्ष के नेताओं से सत्ता पक्ष थर्राता था। लोहिया प. नेहरू के सबसे बड़े आलोचक थे मगर दोनों के मित्रवत संबंधों पर कभी कोई आंच नहीं आयी। दो पूर्व प्रधानमंत्रियों वाजपेयी और नरसिम्हा राव के संबंध जग जाहिर है। 1967 के बाद पक्ष और विपक्ष की कटुता बड़ी विशेषकर इंदिरा गांधी के सत्ता संभालने के बाद।  जिसकी परिणीति आपातकाल में बदली। तबसे दोनों पक्षों में आपसी सौहार्द लगभग समाप्त सा हो गया।  
2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पक्ष और विपक्ष में जो कटुता देखने को मिली वह लोकतंत्र के हित में नहीं कही जा सकती। इससे हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली का हृस हुआ है। आज सत्ता और विपक्ष के आपसी संबंध इतने खराब हो गए है की आपसी बात तो दूर एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते। दुआ सलाम और अभिवादन भी नहीं करते। औपचारिक बोलचाल भी नहीं होती। लोकतंत्र में सत्ता के साथ विपक्ष का सशक्त होना भी ज़रुरी है मगर इसका यह मतलब नहीं है की कटुता और  द्वेष इतना बढ़ जाये की गाली गलौज की सीमा भी लांघी जाये। हमारे देश में राजनीतिक माहौल इतना कटुतापूर्ण हो गया है कि लोकतांत्रिक राजनीति के इतिहास में कहीं नहीं हुआ होगा। सोशल मीडिया, टेलीविजन, फेसबुक और ट्विटर जैसे संचार साधनों के बढ़ते दायरे ने आग में घी का काम किया है। भारत के लोकतंत्र के लिए इससे बुरा और क्या हो सकता है। लोकतंत्र की सफलता पक्ष और विपक्ष की मज़बूती में है। लोकतंत्र तभी सुदृढ़ होगा जब राष्ट्रीय हितों के मामलों में दोनों की एक राय हो। देश सबसे बड़ा है। मगर ऐसा नहीं हो रहा है जो दुखद है। अब समय का तकाजा है सभी राजनीतिक पार्टियों में जो कुछ गंभीर और समझदार नेता बचे हैं वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सभ्यता और मर्यादा बनाए रखने के लिए कोशिशें शुरू करें। आज़ादी के बाद देश में लोकतांत्रिक प्रणाली को चुना गया। लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में बहुमतवाला दल शासन संभालता है, अन्य दलों के सदस्य सत्तारूढ़ दल के कार्यकलापों की आलोचना करते हैं। सरकार बनने के बाद जो दल शेष बचते हैं, उनमें सबसे अधिक सदस्यों वाले दल को विरोधी दल कहा जाता है। भारतीय राजनीति में विपक्ष का अर्थ, जो सत्ता में नहीं है, से है। विपक्ष के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। स्वस्थ विपक्ष का कार्य सरकार की सकारात्मक तरीके से आलोचना करना होना चाहिए। स्वस्थ विपक्ष के रूप में विपक्ष को जनता के हित से जुड़े मुद्दों पर सरकार की आलोचना व बहस करना चाहिए। आज़ादी के बाद जो संघर्ष तत्कालीन विपक्षी दलों ने शुरू किया था वह सत्ता की नहीं बल्कि विचारों की प्रत्यक्ष लड़ाई थी। उनके विचारों में राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के तत्व मौजूद थे। आज स्थिति बिल्कुल उलट है। वर्तमान के विपक्षी दलों में न तो विचारों के साथ चलने को लेकर कोई उत्साह है, न प्रतिबद्धता। लोकतंत्र में दो सबसे बड़ी पार्टियां ऐसी कटु भाषा का प्रयोग एक-दूसरे के लिए नहीं करतीं जैसे हमारे यहां होता है। यही कारण है की मोदी को दोबारा सत्ता हासिल करने में कोई भी नहीं रोक पाया।
मंगलवार को लोकसभा में जो दृश्य देखने को मिला वह निश्चित ही हमारी स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्पराओं के खिलाफ है। पक्ष और विपक्ष को चाहिए सदन को सुचारु रूप से चलाएं और जनधन की हानि से बचे। आज जो हंगामा विपक्ष ने किया वह किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता।