नयी लोकसभा में दिखा पहले की तरह ही टकराव का माहौल

18वीं लोकसभा में सकारात्मक कामकाज की संभावना है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने कहा कि वे आम सहमति चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सहमति की मांग की और विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा कि वे समस्याएं पैदा कर रहे हैं। मोदी ने कहा कि अपने तीसरे कार्यकाल में उनकी सरकार विपक्ष के साथ परामर्श करके संसद में काम करने का लक्ष्य रखेगी। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी सदन में ‘लोगों की आवाज़’ का प्रतिनिधित्व करने में विपक्ष की भूमिका के महत्व पर जोर दिया। लेकिन सत्र की शुरुआत में वे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमत नहीं हो सके। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने हाल ही में एक अंग्रेजी दैनिक में संपादकीय में लिखा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘आम सहमति का उपदेश दे रहे हैं, और टकराव को भड़का रहे हैं।’ सोनिया गांधी ने चुनावी नतीजों को स्वीकार न करने और आम सहमति के बजाय टकराव को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की। उन्होंने 18वीं लोकसभा के पहले कुछ दिनों पर निराशा व्यक्त की और कहा कि प्रधानमंत्री के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। 18वीं लोकसभा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जो एक दशक में पहली बार है जब मोदी संसद का नेतृत्व कम प्रभावशाली स्थिति से कर रहे हैं। सत्ता की गतिशीलता में इस बदलाव के लिए उन्हें अपने गठबंधन सहयोगियों से अच्छे संबंध रखने होंगे और अधिक मुखर विपक्ष से मुकाबला करना होगा। मोदी सरकार अब दो प्रमुख सहयोगियों जेडी(यू) और टीडीपी के महत्वपूर्ण समर्थन पर निर्भर है। इसका मतलब है कि एनडीए के सहयोगी सरकार की योजनाओं और कार्यों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं, जो 2019 और 2014 के चुनावों के बाद संसद सत्रों में भाजपा को मिले पर्याप्त बहुमत से अलग है। विभिन्न संसदीय समितियों में विपक्ष की बढ़ती उपस्थिति से अधिक सहभागिता उत्पन्न होने की संभावना है।
वर्तमान लोकसभा का पहला सत्र एक मज़बूत विपक्ष के अपने अधिकारों का दावा करने के साथ शुरू हुआ। सत्र शुरू होने से पहले बीजद सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने पर विवाद हुआ। कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक के सदस्यों का मानना था कि आठ बार चुने गए कांग्रेस सांसद कोडुक्कुनिल सुरेश को यह पद दिया जाना चाहिए था। हालांकि, भाजपा ने तर्क दिया कि उन्होंने नियमों का पालन किया। महताब लगातार सात बार सदन के लिए चुने गये, जबकि सुरेश दो बार चुनाव हार गये। यह नियुक्ति महत्वपूर्ण है क्योंकि लोकसभा के प्रमुख के रूप में भारतीय संसदीय प्रणाली में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो व्यवस्था बनाये रखने, बहस आयोजित करने और सदन के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होता है। 
दूसरे राहुल गांधी ने कहा कि वह एनडीए उम्मीदवार ओम बिरला का समर्थन करेंगे, लेकिन केवल तभी जब उपसभापति का पद, जो आमतौर पर विपक्ष को दिया जाता है, सुनिश्चित किया जाये। उस समय भाजपा की सहयोगी एआईएडीएमके के थम्बीदुरई ने 2014 से 2019 तक उपसभापति के रूप में कार्य किया, लेकिन 2019 से 2024 तक यह पद रिक्त रहा। अनुच्छेद 93 में कहा गया है कि दो लोकसभा सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुना जायेगा। ओम बिरला को 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में फिर से चुना गया है, जिससे सदन में निरंतरता और स्थिरता आयी है।  बधाई दिए जाने के बाद, नवनिर्वाचित अध्यक्ष ने एक कागज निकाला और दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाये गये आपातकाल के खिलाफ एक प्रस्ताव पढ़ा। इस आश्चर्यजनक कदम ने कई लोगों को चौंका दिया और कांग्रेस के साथ तनाव पैदा कर दिया, क्योंकि 1975 में इसी तारीख को आपातकाल की घोषणा की गयी थी। इसके कारण विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अध्यक्ष के पास एक समूह का नेतृत्व किया और कुर्सी से राजनीतिक बयान पर अपनी आपत्ति व्यक्त की। 
चौथा, कुछ विपक्षी दलों ने सोचा कि संसद के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति के उद्घाटन भाषण में देश की सबसे गंभीर समस्याओं की अनदेखी की गयी। साथ ही विपक्ष ने सेंगोल को हटाने की मांग की, जिसे प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव से पहले बहुत धूमधाम से स्थापित किया था।पांचवें, राहुल और अन्य विपक्षी सांसदों ने पहले नीट प्रश्न-पत्र लीक होने पर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, अध्यक्ष ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा पहले होनी चाहिए, जो एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पहले सप्ताह के टकराव से पता चलता है कि संख्या में कमी के बावजूद, भाजपा के अपने काम करने के तरीकों को बदलने की संभावना नहीं है। एक पुनर्जीवित विपक्ष भी आक्रामक होगा। (संवाद)