पेपर लीक विरोधी कानून की सार्थकता

केन्द्र सरकार की ओर से देश की उच्च प्रतिष्ठा वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में कथित कदाचार और नकल जैसी बुराई को रोकने के लिए बेशक एक नये एवं कठोर केन्द्रीय कानून की धाराओं को लागू करने की घोषणा की गई है, किन्तु नीट, यू.जी.सी. और नेट जैसी परीक्षाओं में हाल ही में हुई अनियमितताओं की गूंज उतनी तेज़ी से बढ़ती जा रही है, जितना उसे दबाने का प्रयास किया जा रहा है। इस केन्द्रीय कदाचार-रोधी कानून के तहत नकल, पेपर लीक तथा किसी भी प्रकार की अनियमितता के लिए दोषी पाये जाने वाले लोगों को एक करोड़ रुपये तक के जुर्माने और अपराध की गम्भीरता के दृष्टिगत दस वर्ष तक की कैद का दण्ड दिये जाने का प्रावधान है। इस लोक परीक्षा विधेयक को बाकायदा तौर पर राष्ट्रप्रति की मंजूरी तो बेशक चार मास पूर्व ही मिल गई थी, किन्तु इसे लागू करने के लिए सम्भवत: ऐसे ही किसी विवादास्पद मामले की प्रतीक्षा की जा रही थी। अब जब नीट पेपर लीकेज विवाद का पानी सर के ऊपर से गुज़रते प्रतीत होने लगा, तो इसे लागू भी कर दिया गया है। इस नये कानून के तहत पहला मामला भी केन्द्रीय जांच ब्यूरो की पहल पर इसी नीट-लीकेज घोटाले को लेकर दर्ज दिया गया है। इससे पूर्व नीट-घोटाले से सम्बद्ध मामले के बिखराव के बीच यह विवाद केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया गया था। इस मामले को दर्ज किये जाने के अतिरिक्त बेहद विवादास्पद हुई राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एन.टी.ए.) को लेकर परामर्श देने हेतु केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित की गई समिति भी इस प्रकरण में कारगर उपाय साबित हो सकती है।
नि:संदेह विगत पांच मई को देश की प्रतिष्ठाजनक प्रतियोगी परीक्षा नीट का पेपर लोक हो जाने संबंधी जो घोटाला हुआ, उसकी गूंज-प्रतिगूंज निरन्तर कर्ण-भेदी सिद्ध होने लगी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस प्रकार के अनेक छोटे-बड़े छिद्रों को अब तक भरे न जाने के कारण इसके पीछे सक्रिय हुआ माफिया आज इतना अधिक शक्तिशाली हो चुका है कि उसकी इस मौजूदा कार्रवई ने देश के सम्पूर्ण शिक्षा ढांचे में तहलका मचा कर रख दिया है। इस माफिया के कारण ही देश के शिक्षा धरातल पर इतने कैक्टस उग आए हैं कि उनके विषाक्त दंशों की पीड़ा को न झेलते हुए अक्सर देश के युवा आत्महत्या जैसा अतिशय पग उठाने तक चले जाते हैं। लाखों-करोड़ों रुपये के लेन-देन के कारण उच्च धरातल की शिक्षा वैसे भी देश के आमजन-परिवार की पहुंच से दूर होती जा रही है। इसी कारण देश का युवा वर्ग निरन्तर तनाव भोगने को भी विवश हो रहा है।
ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा लोक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) विधेयक को लागू करना देश के विद्यार्थी वर्ग की उम्मीदों की तस्वीर में चटख रंग उपजाते प्रतीत होता है, किन्तु इस विधेयक को लागू किये जाने का समय और स्थितियां संदेहों के बादलों को भी घना करती है। देश की 18वीं लोकसभा का पहला अधिवेशन 23 जून को शुरू हुआ है, किन्तु इसके दो दिन पूर्व 21 जून को इस कानून को लागू किये जाने से ऐसा भी प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार को पता था कि इस इतने गम्भीर मामले को लेकर विपक्ष सदन में आक्रामक रवैया धारण कर सकता है। विपक्षी दल कांग्रेस ने इस कानून को लागू करने के समय पर उंगली उठा कर बेशक अपनी मंशा भी सिद्ध कर दी है। सरकार द्वारा नीट-पी.जी. की भावी परीक्षाओं को स्थगित किया जाना भी, उसकी मंशा के आटे में नमक अधिक हो जाने को ही दर्शाता है। 
हम समझते हैं कि नि:संदेह स्थितियां अभी उस मोड़ तक नहीं पहुंची हैं जहां से लौटा नहीं जा सके। इतने उच्च धरातल पर आयोजित होने वाली परीक्षाओं जिनमें देश के कोने-कोने से लाखों परीक्षार्थी शामिल होते हैं, के आयोजन हेतु तंत्र को नितांत त्रुटि-रहित और पूर्णतया अभेद्य बनाये जाने की प्रबल आवश्यकता है। प्रश्न-पत्रों के तैयार होने से लेकर उनके परीक्षा-केन्द्रों तक पहुंचने की प्रक्रिया लौह-कवच के भीतर सम्पन्न होनी चाहिए। परीक्षा केन्द्रों के पूर्व-निर्धारित होने, और कि इनके संदिग्ध और संदेहास्पद राज्य-क्षेत्रों से परे होने की प्रक्रिया पर भी सरकार का पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। सवाल आखिर देश की सम्पूर्ण युवा प्रतिभा के बौद्धिक चयन और राष्ट्रीय अस्मिता का भी है। प्रश्न-पत्रों की लीकेज और धन-बल के बूते खरीद कर हासिल की गई शिक्षा देश के भविष्य के फलक पर कैसा रंग भर सकेगी, इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन नहीं है। तथापि, हम समझते हैं कि मनुष्य हमेशा तूफान के बाद और अधिक सावधान होकर सम्भलता रहा है। नीट पेपर लीकेज मामला भी एक त़ूफान जैसा ही था। बेशक इससे चहुं ओर टूट-फूट हुई है, लेकिन देश को इसे एक बार फिर समेट-लपेट कर आगे बढ़ना है। नये कानून की धाराएं नि:संदेह अनेक त्रुटियों और छिद्रों को भरने में सक्षम हो सकेंगी। प्रारम्भिक ना-नुकर के बाद केन्द्र सरकार अब जिस प्रकार से मुस्तैद और सक्रिय हुई है, उससे एक नई आस बंधती भी है। हम समझते हैं कि विपक्ष को भी अपनी भूमिका के अनुसार इस मामले पर सरकार को बेशक चेताना तो चाहिए, किन्तु भविष्य में एक साफ-सुथरा तंत्र विकसित करने हेतु उसे सहयोगी की भूमिका भी निभानी चाहिए। आखिर यह राष्ट्र-हित का साझा मामला है।