पाकिस्तान के नापाक मन्सूबों को कुचलना होगा 

जम्मू-कश्मीर में सख्ती के बाद आतंकवादियों में जम्मू क्षेत्र को अपना नया निशाना बना लिया है। वहां के जम्मू क्षेत्र को शांतिपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता है, लेकिन पिछले कुछ समय में आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ कई हमलों से यह क्षेत्र सहम गया है। ये हमले सीमावर्ती ज़िले पुंछ, राजौरी, डोडा और रियासी में हुए। पिछले कुछ समय से जम्मू क्षेत्र में ऐसे हमले बढ़ते चले जा रहे हैं। जून से लेकर अब तक यहां पर कम से कम 8 ऐसे हमले हुए जिसमें सुरक्षाबलों और आतंकवादियों का सामना हुआ। पिछले कुछ महीनों से आतंकियों की सक्रियता के पीछे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर गहमागहमी शुरू होना माना जा रहा है। आतंकी हमलों और मुठभेड़ के बढ़ते मामलों से यह साफ संकेत मिल रहा है कि पाकिस्तान विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए आतंकियों की घुसपैठ भी हो चुकी है और वे मौका मिलते ही वारदात को अंजाम देने में लगे हैं। पाकिस्तान जब आमने-सामने की लड़ाई में हमेशा भारत से हारता रहा तो उसने आतंकवाद रूपी युद्ध या फ्रॉक्सी वार शुरू किया। इन आतंकियों को भारत के खिलाफ दुष्प्रचार कर बरगलाया जाता है तथा पैसे और हथियार देकर आतंकवादी हमला करने भेजा जाता हैं। पाकिस्तानी आर्मी और खुफिया एजेंसी आईएसआई इन्हें प्रशिक्षण देती है और लांचिग पैड से इन्हें सीमा पार कराया जाता है। ये आतंकी गुप्त सुरंगों, नालों या जंगल के रास्ते से होकर जम्मू-कश्मीर में दाखिल होते हैं। 
भारत ने बालाकोट में बड़े आतंकी प्रशिक्षण शिविर को सर्जिकल स्ट्राइक कर नष्ट किया था। केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने और आल इंडिया हुर्रियत कांफ्रैंस के नेताओं को हवाला के जरिए मिलने वाली फंडिंग को रोक दिए जाने के बाद से कश्मीर घाटी में आतंकवाद पर काफी हद तक लगाम लगी थी। जो नेता आतंक को बढ़ावा देकर आए दिन कश्मीर में हड़ताल और सुरक्षा बलों पर पथराव कराते थे उन्हें जेल भेजा गया। जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद ऐसे शरारती तत्वों के हौंसले पस्त हो गए थे। पाकिस्तान ने भी भारत में ऐसी सख्त सरकार देखी जो आतंकियों को घर में घुसकर मारने की इच्छाशक्ति और क्षमता रखती थी। अन्यथा एक ऐसा भी समय था जब श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराना टेढ़ी खीर था। यह सारा माहौल बदला और अलगाववादी तत्वों की शरारत पर अंकुश लगा। इतने पर भी बौखलाए हुए आतंकवादी अपनी चुनी हुई जगह व समय पर अचानक हमले को अंजाम देते हैं। 
सुरक्षाबलों की सख्ती के चलते कश्मीर तो फिर भी शांत है, लेकिन जम्मू दहशतगर्दों का नया केंद्र बनता दिख रहा है। वे नागरिकों, तीर्थयात्रियों समेत सेना पर भी घात लगाकर हमले कर रहे हैं। ताजा हमला कठुआ में हुआ। जम्मू के कठुआ ज़िले मे बीती 8 जुलाई को सेना की गाड़ी पर हुए आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए। घात लगाकर किए गए अटैक के बाद से सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ चल रही है। तीन दिनों के भीतर यह सेना पर दूसरा हमला है। 
कठुआ वही इलाका है, जो कश्मीर के सबसे अस्थिर दौर में आतंकियों की पनाहगाह बना हुआ था, लेकिन ऐसा क्या हुआ है, जो आतंकी एक बार फिर जम्मू की तरफ मुड़ रहे हैं। जम्मू, खासकर कठुआ आतंक का नया केंद्र है, जो 90 के दशक में भी आतंकियों का ठिकाना हुआ करता था। अब एक बार फिर ऐसा दिख रहा है कि आतंकियों ने कठुआ को अपना ठिकाना बना लिया है। दरअसल इस ज़िले की बनावट ऐसी है कि यहां छिपना-छिपाना आसान है। जंगलों से सटे क्षेत्र में हमले के बाद आतंकी गायब हो सकते हैं, जैसा ताजा केस में दिख रहा है। लेकिन एक बड़ी वजह और भी है, जो है इसकी जिओग्राफी। ज़िले के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा सटती है, तो दूसरी तरफ हिमाचल और पंजाब हैं। कठुआ, उधमपुर, सांबा और डोडा ज़िलों से भी लगा हुआ है। 
नब्बे के दशक में कठुआ सुरक्षा बलों का बेस भी हुआ करता था ताकि आतंक पर रोक लगाई जा सके। साफ दिख रहा है कि कश्मीर में तो शांति है, लेकिन आतंकवादी जम्मू को घेर रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह ये है कि धारा 370 हटने के बाद से घाटी में सुरक्षाबल भारी संख्या में बना हुआ है। वहां सेंध लगाना बेहद मुश्किल है। शायद इसी वजह से पाकिस्तान स्थित आतंकी जम्मू को निशाना बनाने की कोशिश में हैं। साल 2023 में भी ऐसी कोशिश हुई थी, जब जम्मू में 43 टैरर अटैक दर्ज किए गए। वहीं बरसात में मामला और संवेदनशील हो जाता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तेज़ बारिश के दौरान मॉनिटरिंग सिस्टम पर असर होता है, जैसे फेंसिंग और इंफ्रारेड लाइट्स कमजोर या खराब हो जाती हैं। इसका फायदा आतंकी उठाते हैं और सीमा पार से आकर आतंक मचा जाते हैं।
गत माह रियासी में तीर्थयात्रियों से भरी बस पर आतंकी हमले ने भी यह साबित किया कि आतंकी क्षेत्र में खौफ पैदा करना चाहते हैं। वे सेना के शिविरों पर भी हमले कर रहे हैं। जम्मू में अचानक हिंसा बढ़ने के पीछे एक वजह सीमा पार आतंकियों की रहस्यमयी हत्याओं को भी माना जा रहा है। बता दें कि सीक्रेट किलर्स ने कुछ समय में आईएसआई के आमिर हमजा की गोली मारकर हत्या कर दी। हमजा फरवरी, 2018 को जम्मू के सुंजवान कैंप पर हुए हमले का मास्टरमाइंड था। मुख्य आतंकी की मौत के बाद से पाकिस्तान काफी बौखलाया हुआ था। सुरक्षाबल वैसे तो काफी चौकन्ना हैं। लेकिन जम्मू की यही जिओग्राफी परेशान करने लगी है। यही कारण है कि सिक्योरिटी फोर्स घने जंगलों जहां कोई आता-जाता नहीं, वहां भी चेकपॉइंट्स बना रही है। 
घाटी में कई आतंकी गुट एक्टिव हो चुके हैं, जिनके आगे-पीछे कोई नहीं दिखता। यानी वे हाल ही में बने और खुद को इंडिपेंडेंट बताते हैं। द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ), जम्मू-कश्मीर गजवनी फोर्स, कश्मीर टाइगर्स और पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट इन्हीं में से हैं। टीआरएफ का अस्तित्व धारा 370 हटाने टीआरएफ, जम्मू-कश्मीर गजवनी फोर्स, कश्मीर टाइगर्स और पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट इन्हीं में से हैं। टीआरएप का अस्तित्व धारा 370 हटाने बाद संगठन कई दूसरे बड़े आतंकी गुटों के साथ मिला हुआ दिखा। वैसे ये जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी है, यानी उसे कवर करने का काम करता है। 
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या दशकों पुरानी है। इसके पीछे स्पष्ट रूप से पाकिस्तान है। पाकिस्तान में चुनाव के बाद बनी नई सरकार ने भारत के साथ संबंध सुधारने की इच्छा तो जताई है, लेकिन कश्मीर मुद्दे पर अपना पुराना राग नहीं छोड़ा है। इसलिए यह आशा करना व्यर्थ है कि पाकिस्तान का रवैया बदलेगा। इसलिए भारत को सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ रोकने के साथ देश के भीतर सक्रिय आतंकियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई करने पर ही ध्यान देना होगा। साथ ही पाकिस्तान को विश्व मंच पर लगातार बेनकाब करते रहना होगा। भारत सरकार इस दिशा में सक्रिय भी है, लेकिन आतंकियों को मिलने वाला स्थानीय सहयोग आतंकवाद के उन्मूलन में बड़ी बाधा है। इसलिए आतंकियों और उनकी मदद करने वाले स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ सख्ती के साथ जम्मू-कश्मीर की जनता को देश की मुख्यधारा से जोडने के प्रयास तेज़ करने होंगे।