गेम चेंजर साबित हो सकती है देश की कौशल जनगणना

आंध्र प्रदेश में होने वाली कौशल जनगणना अनूठी पहल है। इसे केंद्र द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर कराया जाए तो यह गणना प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल में एक गेम चेंजर की भूमिका निभा सकती है। हालांकि इससे मिले आंकड़े कौशल, प्रशिक्षण, विकास और रोजगार की कई विसंगतियों के ओर भी इशारा करेंगे।  
आंध्र सरकार कौशल जनगणना शुरू करेगी। यह देश में अपने तरह की पहली और अनूठी कवायद होगी। इस जनगणना के गहरे आर्थिक, सामाजिक निहितार्थ हैं, तो राजनीतिक भी। इसे विपक्षी दलों की जातिगत जनगणना की ज्वलंत होती मांग को कमज़ोर करने की सियासी कोशिश कहा जा रहा है परन्तु वास्तव में यह एक गम्भीर और सुविचारित प्रयास है और सच बात तो यह है कि यह मोदी के तीसरे कार्यकाल में एक गेम चेंजर साबित होने वाला है। बेशक कौशल जनगणना एक दूरगामी और सकारात्मक विचार है, जिसके बहुतेरे लाभ साफ दिखते हैं। यदि इसके तथ्यपरक निष्कर्षों पर आंध्र सरकार ने ईमानदारी से अमल किया तो यह वाकई राज्य की तस्वीर बदल देगी। कौशल जनगणना की मूल अवधारणा को देखते हुए यह विचार उचित ही है। केंद्र सरकार को इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।
देशव्यापी जनगणना में वैसे भी देर हो चुकी इसलिए इस लम्बित जनगणना को शीघ्र करवाना लाज़िमी है। अधिकांश को विश्वास है कि वह इसी कार्यकाल के उत्तरार्ध में और अधिक संभव है कि अगले वर्ष की शुरुआत में हो। जातिगत जनगणना के लिये सरकार पर बहुत दबाव है। उच्चतम न्यायालय द्वार आरक्षण में क्रीमी लेयर को लेकर ‘कोटे के भीतर कोटा’ का जो फैसला दिया गया है, उसके चलते जातिगत जनगणना करवाना ज़रूरी है। सरकार सैद्धांतिक तौर पर इसके लिये राज़ी नहीं, लेकिन लगता है कि वह अब इसके लिये मन बना रही है, सरकार जातिगत जनगणना के लिये राज़ी होती है तो इस जनगणना को थोड़ा और विस्तार देकर कौशल जनगणना भी राष्ट्रीय स्तर पर करवा लेना उचित रहेगा। भविष्य की मांग कौशल जनगणना को जितनी जल्दी और जितना व्यापक स्तर पर कराया जाए, श्रेयस्कर है। केंद्र सरकार इसके बारे में सहमति की घोषणा कर दे तो उसे राजनीतिक लाभ मिलेगा ही और यह राष्ट्रहित में भी है। आने वाले चंद महीनों में चार राज्यों के चुनाव हैं, युवा मतदाताओं को लुभाने और रोज़गार के बारे में बात करने का यह बढ़िया अवसर देगा। 
जो लोग जातिगत जनगणना के बरक्स कौशल जनगणना को एक सियासी दांव बता रहे हैं, वे वास्तविकता और तार्किकता से परे हैं। जातिगत जनगणना और कौशल जनगणना दोनों के उद्देश्य अलग-अलग है, दोनों की महत्ता भिन्न है। दोनों ही सैद्धांतिक रूप में एक श्रेष्ठ विचार हैं जिनके व्यापक सामाजिक, आर्थिक, व्यावहारिक उपयोग हैं। बेहतर यही होगा कि एक समग्र जनगणना में जातिगत जनगणना और कौशल जनगणना दोनों को शामिल किया जाए। यदि सरकार को विशुद्ध सियासी दांव खेलना हो तो वह जातिगत जनगणना को पीछे छोड़ने के लिए कौशल जनगणना करवाने की बात कर सकती है, परन्तु यह वैकल्पिक या एक दूसरे की कीमत पर नहीं होनी चाहिये। कालांतर में केंद्र सरकार के लिये कौशल जनगणना का काम किंचित आसान भी होगा। आंध्र प्रदेश का एक आज़माया मॉडल उसके सामने होगा और देशव्यापी जनगणना के साथ इसे करवाने से अलग से कोई व्यय भी नहीं होगा। कौशल जनगणना के लाभ सैद्धांतिक तौर पर वाकई प्रभावी हैं, व्यवहारिकता के धरातल पर उनका परीक्षण भी हो जायेगा। यह तभी होगा जब कौशल विकास जनगणना के आंकडों से निष्कर्षित नतीजे आम होंगे तथा उस पर राज्य सरकार अपनी और केंद्र की सहायता से कोई नीति बनाकर उसे सफलता पूर्वक लागू करेगी। 
कौशल जनगणना, देश या क्षेत्र की जनसंख्या के कौशल स्तर और क्षमताओं का व्यापक मूल्यांकन है, ऐसे में इसको दो आयुवर्गों में बांटकर करना बिल्कुल सही है। किशोर से युवा तथा युवा से पचास पार तक की आयुवर्ग के लोगों की जुटाई जानकारी किसी राज्य, क्षेत्र के लोगों के कौशल के बारे में विस्तृत और बारीक अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करेगी। कौशल जनगणना के दौरान लोगों की शिक्षा, उनका कौशल तथा संबंधित क्षेत्र, कार्य अनुभव, प्रशिक्षण, कौशल प्रवीणता का स्तर तथा प्रकार जैसे तकनीकी, डिजिटल, अभियांत्रिकी,कला कौशल वगैरह तो दर्ज किया ही जायेगा इससे लगायत अन्य जानकारियां भी जुटाई जायेंगी। यह कुल मिलाकर हर एक कामकाजी अथवा भविष्य में कामकाज से जुड़ने जा रहे नागरिक का ऐसा प्रोफाइल तैयार करेगा जो उसके स्किल एवं कामकाजी उपयोगिता के बारे में सांगोपांग सूचना देगा। इससे हमारे मौजूदा कार्यबल की खूबियों खामियों का आकलन तो होगा ही आगे आने वाले कार्यबल की दक्षता और क्षेत्र विविधता तथा संख्या के बारे में भी अंदाज़ा लग सकेगा। यह जनगणना न सिर्फ  सरकार को बल्कि नियोक्ताओं और दूसरे हितधारकों को सटीक आंकड़े मुहैया करायेगा, जिससे वे कार्यबल के विकास और संसाधन आवंटन के बारे में सटीक निर्णय ले सकेंगे। इससे यह साफ हो सकेगा कि किस उद्योग में किस तरह के कौशल की कितनी कमी है। पता लगने से सरकार उसके प्रशिक्षण के लिये उसी स्तर पर इंतज़ाम करेगी। 
कुल मिलाकर लाख टके का सवाल यह कि कौशल जनगणना के आंकड़े उपलब्ध हो जाने से भी क्या होगा? केंद्र और राज्यों के पास सरकारी नौकरियां कितनी हैं? अगर यह पता चले कि अमुक क्षेत्र का कौशल रखने वाले युवा सबसे ज्यादा बेरोज़गार हैं तो उन्हें खपाने के लिये क्या सरकार किसी निजी कम्पनी को उससे संबंधित उद्यम स्थापित कर उन्हें समायोजित करने को कहेगी, खुद कोई उद्यम आरंभ कर युवाओं को खपाएगी अथवा उन्हें कोई और रास्ता दिखाएगी? क्या सरकार विभिन्न प्रकार के कौशल वाले लोगों को स्वरोजगार के लिये कर्ज सरकारी धन,संसाधन मुहैया करा सकेगी? नौकरी सृजित करने का काम सरकारें कम ही कर रही हैं। निजी क्षेत्रों के भरोसे यह कठिन है फिर आगे की क्या रणनीति है, इसका कोई जवाब उसके पास नहीं है। आंकड़ों में कुशल होना एक बात है और वास्तविक कौशल अलग। देश में 5,000 नर्सिंग प्रशिक्षण संस्थान हैं, 90 फीसदी निजी, 80 प्रतिशत बिना भवन और संसाधनों के। इनसे निकले डिप्लोमाधारी नर्स अस्पतालों में मरीज़ों की मौत की वजह बन रहे हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा स्किल आबादी वाला देश फिनलैंड, नॉर्वे और स्विट्ज़रलैंड वगैरह हैं, जहां प्राथमिक शालाओं की व्यवस्था शानदार है और युवाओं की साक्षरता और प्रशिक्षण व्यवस्था अत्यंत तकनीकि और संसाधन से युक्त। स्किल सेंसस कराना ठीक, पर इन जमीनी तथ्यों पर भी निगाह होनी चाहिये, जांचना चाहिये कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना इतनी बुरी तरह फ्लॉप क्यों रही? -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर