पड़ोसी देशों में बढ़ता असन्तोष

बांग्लादेश के हालात हमारे सामने हैं। वहां भारी अफरा-तफरी का माहौल है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। सड़कों पर अराजकता का माहौल है। सैंकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। पूरी दुनिया से कोई सार्थक पहलकदमी नहीं हुई। भारत खुद को नये हालात से निपटने की तैयारी में है, क्योंकि सबसे अधिक प्रभावित हम ही होने वाले हैं। नक्शा उठाकर देखें तो केवल बांग्लादेश से हम कुछ निश्चिंत थे। बाकी के पड़ोसी देश तो पहले ही विकट परिस्थितियों से जूझ रहे हैं।
बांग्लादेश की संसद भंग हो चुकी है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया को रिहा कर दिया गया है। हिन्दुओं पर अत्याचारों में इज़ाफा हुआ है। चीन के अतिरिक्त पड़ोसी देशों में केवल बांग्लादेश ही था जो अपने आर्थिक विकास में गतिशीलता बनाये हुए था, लेकिन क्या आर्थिक विकास किसी भी देश की शांति की गारंटी भी होती है? 
नए शासन से हम न तो आर्थिक विकास की गारंटी पा सकते हैं न ही शांति की बहाली की। बांग्लादेश शेख हसीना के शासनकाल में किसी भी लालच से दूर, चीन या पाकिस्तान के बहकावे से भी परे अपना रास्ता बना रहा था। ज़ाहिर है कि चीन और पाकिस्तान हमारे मित्र नहीं हैं। नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका चीनी प्रभाव को किसी भी तरह नकार नहीं पा रहे। केवल बांग्लादेश ही अप्रभावित रहा। पड़ोस में अ़फगानिस्तान है, वहां कट्टरपंथी तालिबानी सरकार शासन चला रही है। फिर पाकिस्तान है, वह परमाणु हथियारों से लैस परम्परापंथी अ़फगानिस्तान से ज्यादा अलग नहीं है। राजनीतिक अस्थिरता, आतंकवाद को बढ़ावा देना, मानवतावादी पुकार को अनसुना करना उसकी फितरत है।
 एक भी वजीर-ए-आज़म अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। वहां तो सेना का वर्चस्व हमेशा बना रहा और भारत के साथ दुश्मनी का व्यवहार भी। 
दक्षिण में आपको श्रीलंका और मालदीव नज़र आएंगे। श्रीलंका दो साल पहले ही 2022 में दिवालिया हो गया था। वहां भी आज के बांग्लादेश जैसी घटनाएं घटित हुईं। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया था और राज्य के प्रमुख लोगों को भागना पड़ा था। मालदीव पहले भारत का सहयोगी देश था। लेकिन जब से नए राष्ट्रपति आए हैं, तेवर बदले हुए हैं। वह इंडिया आऊट का नारा लगाने लगे हैं। नेपाल की बात करें तो वहां प्रधानमंत्री लगातार बदलते रहते हैं। लोग वहां कब फिर से राजशाही को बहाल करवा दें, कुछ कहा नहीं जा सकता। उत्तर दिशा में आगे देखें तो चीन ही मिलेगा। वह विस्तारवादी नीति का हमदम है। भारत के भू-खंडों पर मालिकाना हक जाहिर करता रहता है। सैन्य संगठन का रौब दिखाता है। भारत छोटे पड़ोसी देशों में वर्चस्व बनाए रखना चाहता है। भूटान की घरेलू राजनीति स्थिर तो है लेकिन वह भी चीन के साथ बार्डर समझौता करना चाहता है। बांग्लादेश में गृहयुद्ध चल रहा है। शेख हसीना के विदा होने के बाद वहां से कोई अच्छी उम्मीद नज़र नहीं आ रही। हालात बद से बदतर होते चले गये हैं। एस. जयशंकर ने सदन को बताया है कि हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार काफी चिन्ता का विषय हैं। क्योंकि नई दिल्ली इस दौर के प्रति फिक्रमंद है। इसलिए हर समय सतर्क रहने की ज़रूरत बनी रहेगी। आप बांग्लादेश की सीमा को देखें तो हिंसा की घटनाओं का तूफान चल रहा है। 
फिर भी भारतीय सीमा बल को सतर्क कर दिया गया है। पाकिस्तान और चीन के साथ भी कुछ नया नहीं है। भारत की शांति के लिए हमेशा ़खतरा ही ़खतरा है। हमारे जवान ज्यादा सतर्क रहेंगे। हमें अधिक सैन्य बल जुटाना पड़ सकता है। रक्षा खर्च बढ़ाना पड़ सकता है। बाकी खर्च घटाने पड़ सकते हैं।