किसान एवं आढ़तियों का रिश्ता कायम रखने की ज़रूरत
पिछले 20 वर्षों में यह पहली बार है कि धान की सरकारी खरीद में किसानों को सख्त कठिनाइनों का सामना करना पड़ा है। चाहे पिछले सप्ताह से इसमें कुछ सुधार आया है और किसान का धान सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदना शुरू हुआ है। विगत कई वर्षों से किसानों को राशि की अदायगी नकद की बजाय चैकों के माध्यम से किए जाने संबंधी चर्चा चलने के बाद दो-तीन वर्ष से ही फूड कार्पोरेशन आफ इंडिया से किसानों के खातों में चैकों के माध्यम से धान की राशि की अदायगी की जाने लगी है, चाहे आढ़तियों द्वारा इसका कड़ा विरोध किया जाता रहा है। इसके साथ ही किसानों को अपने धान की कीमत पारदर्शिता से सही मिलने लगी है। आढ़तियों ने किसानों को कज़र् के रूप में समय पर उधार देने में संकोच करना शुरू कर दिया है।
किसान अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए चाहे वे घरेलू हों या कृषि संबंधी, आम आढ़तियों तथा बड़े ज़िमीदारों (जो अब आढ़त का काम करने लग पड़े हैं) से कज़र् लेते रहे हैं। यह प्रथा पुराने समय से चलती आ रही है। गत शताब्ती के 5वें दशक के शुरू में जब भारत सरकार ने ग्रामीण कज़र्ों संबंधी सर्वेक्षण करवाया था, उस सर्वेक्षण (रूरल क्रैडिट सर्वे) के आधार पर दी गई रिपोर्ट में सिर्फ 3 प्रतिशत कज़र् किसान बैंकों तथा मान्यता प्राप्त एजेंसियों से लेते थे। किसानों को कज़र् देने में आढ़तियों तथा साहूकारों की मुख्य भूमिका थी। आज़ादी के बाद बैंकों एवं सहकारी सभाओं का दायरा गांवों में विशाल होता गया और धीरे-धीरे आढ़तियों तथा साहूकारों की बजाय किसानों ने बैंकों, सहकारी सभाओं तथा अन्य मान्यता प्राप्त एजेंसियों से कज़र् लेना शुरू कर दिया। राष्ट्रीयकरण होने के बाद व्यापारिक बैंकों ने भी किसानों को कृषि ऋण देने शुरू कर दिए थे। चाहे सिंडीकेट बैंक तथा स्टेट बैंक आफ पटियाला राष्ट्रीयकरण होने से पहले ही ऐसे कज़र् चुनिंदा किसानों को देने लग पड़े थे। गत समय में आढ़ती तथा किसानों का बड़ा गहरा एवं अटूट रिश्ता रहा है। ज़रूरत पड़ने पर हमेशा ही आढ़ती किसानों के काम आते थे। छोटे तथा सीमांत किसान हमेशा ही अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए आढ़तियों तथा बड़े ज़िम्मीदारों पर निर्भर हैं। आजकल भी इस श्रेणी के किसान आढ़तियों तथा ज़िमींदारों को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि बैंकों की कागज़ी कार्रवाई पूरा करना उनके लिए कठिन होता है।
किसान नेताओं द्वारा यह आरोप लगाए जाते रहे हैं कि आढ़ती ऊंची ब्याज दरों पर कज़र् देते हैं। किताबों में तथा संबंधित कागज़ात लिखने के समय पारदर्शिता नहीं होती और किसानों की फसल की बिक्री में भी कई किस्म की अनियमितताएं की जाती हैं। आढ़तियों द्वारा यह कहा जाता है कि किसान उनका कज़र् सही ढंग से समय पर वापिस नहीं करते। पिछले वर्षों में किसानों तथा आढ़तियों का आपस में गहरा रिश्ता एवं प्यार रहा है, जिसमें दोनों पक्षों के नेताओं के मुदालखत से दरारें आनी शुरू हो गई थीं। आढ़तियों की अभी भी एक बड़ी राशि किसानों के ज़िम्मे खड़ी बताई जाती है क्योंकि वे किसानों को और कज़र् नहीं देते, इसलिए किसान अपना कज़र् लौटाने में ढील कर रहे हैं। ग्रेनडीलर्स एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख एवं पटियाला मंडी के लीडिंग आढ़ती हरबंस लाल कहते हैं कि आजकल कोई भी आढ़ती 12-18 प्रतिशत वार्षिक से अधिक ब्याज किसानों के कज़र् पर नहीं लगा रहा। उनके साथ पूरा लेन-देन लिखित में होता है। किसान अपने अधिकारों की हिफाजत के लिए पूरे जागरूक हैं और आढ़ती भी सच्चे-सुच्चे किसानों को पूरी सुविधाएं देकर उनकी सभी ज़रूरतें पूरी करते हैं। आढ़तियों द्वारा किसानों को धान की अदायगी उनके खातों में चैकों के माध्यम से डालने का विरोध तथा किसानों द्वारा आढ़तियों का उनके साथ पारदर्शिता वाले ढंग न इस्तेमाल करना, दोनों पक्षों में दूरी का कारण बनता गया और वर्षों पुराने रिश्ते में दरारें आ गईं।
अब किसानों द्वारा जो धान की खरीद संबंधी आढ़तियों तथा मिलरों को सहयोग दिया गया है और उनके साथ एकजुटता दिखाई गई है, उससे आढ़तियों तथा किसानों का रिश्ता पुन: कायम हुआ दिखाई देता है। पंजाब फैडरेशन आफ आढ़ती एसोसिएशन के उपाध्यक्ष तथा पटियाला आढ़ती एसोसिएशन के चेयरमैन देवी दयाल कहते हैं कि आढ़ती का किसान के बिना गुज़ारा नहीं और किसानों को प्रत्येक समय आढ़ती की सहायता की ज़रूरत है। इसलिए यह रिश्ता जो पुन: मज़बूत हुआ है, एक खुशगवार कदम है।