सिंह साहिबान द्वारा लिए गए फैसले का प्रभाव 

श्री अकाल तख्त साहिब से 2 दिसम्बर, 2024 को जो घटनाक्रम सिंह साहिबान के फैसले के समय घटित होते दिखाई दिया, वह सचमुच ही एक अलौकिक दृश्य था। यह फैसला किसी को पसंद हो या नापंसद, यह एक अलग बात है, परन्तु इस फैसले ने तथा इस फैसले के समय बने माहौल ने विश्व को एक अलग, विलक्षण एवं सकारात्मक संदेश अवश्य दिया है। इस घटनाक्रम ने सिख कौम की एक कौम के रूप में अलग पहचान को विश्व भर में और मज़बूती से स्थापित ही नहीं किया, अपितु विश्व को अमन-शांति तथा जवाबदेही की एक राह भी दिखाई है कि कैसे बड़े से बड़े व्यक्ति को गुरु तथा संगत (लोक अदालत) के सम्मुख अपनी गलतियों या गुनाहों का इकबाल करवा के उस व्यक्ति की मानसिकता तक को बदलने की कोशिश की जा सकती है। यह आशा की जा सकती है कि श्री अकाल तख्त साहिब के फैसले के अनुसार सज़ा भुगतने के बाद सुखबीर सिंह बादल तथा शेष सभी तन्खाह भुगत रहे सिख एक नये निर्मल मनुष्य के रूप में सामने आएंगे, परन्तु इस फैसले का प्रभाव सिर्फ सिख कौम पर नहीं पड़ेगा, अपितु इस घटनाक्रम ने विश्व को एक नई सोच तथा नए दृष्टिकोण का संदेश भी दिया है कि विश्व के बड़े-बड़े मामले द्वेष, ईर्ष्या या नफरत से हल नहीं हुए, अपितु उनके लिए भी लोक अदालत में मानवता के दोषियों को खड़ा करने की ज़रूरत है तथा एक नई व्यवस्था ही दुनिया में चल रहे युद्धों एवं तीसरे विश्व युद्ध के खतरे को टाल सकती है। हम समझते हैं कि विश्व नेताओं को श्री अकाल तख्त साहिब पर हुए घटनाक्रम से दिशा ग्रहण करते हुए यू.एन.ओ. को अधिक ताकतें देने का फैसला करना चाहिए और उसे भी लोक अदालत में बदलने बारे सोचना चाहिए। 
हां, यह फैसला सिख कौम की अवसान की ओर जा रही राजनीतिक ताकत को इकट्ठा करने में तो सहायक होगी ही, यह सिख कौम की धार्मिक, सामाजिक हालत तथा भविष्य को सुधारने की ओर भी एक बड़ा कदम साबित होगा। 
श्री अकाल तख्त साहिब पर घटित हुआ घटनाक्रम एक अनोखा दृश्य था और यह विश्व भर में चर्चा का विषय बन रहा है। इसका ज़िक्र राष्ट्रीय मीडिया से अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की ओर बढ़ रहा था, परन्तु अफसोस कि इस बीच जो कृत्य कल श्री दरबार साहिब परिसर में हुआ, उसने श्री अकाल तख्त साहिब एवं सिख कौम के इस विलक्षण सामर्थ्य तथा उभार की चर्चा को पीछे धकेल दिया है और भाईचारे-विरोधी जंग की चर्चा को आगे बढ़ा दिया है। चाहे यह पक्का है कि इस गोली की चर्चा जल्द समाप्त हो जाएगी और अकाल तख्त से गए संदेश का विश्व भर में प्रसार होने से नहीं रुक सकेगा। यहां याद रखने योग्य है कि दरबार साहिब परिसर में घटित हुईं ऐसी घटनाएं सरकार तथा सरकारी एजेंसियों को खुल खेलने का अवसर प्रदान करती हैं। उल्लेखनीय है कि 25 अप्रैल, 1983 को श्री दरबार साहिब से बाहर आ रहे डी.आई.जी. ए. एस. अटवाल की हत्या सरकार के लिए आप्रेशन ब्लू स्टार की ओर बढ़ने का एक बड़ा कारण बना था जबकि 8 मई, 1988 को डी.आई. जी. सरबदीप सिंह विर्क पर दरबार साहिब परिसर में हुआ हमला आप्रेशन ब्लैक थंडर का बहाना बना था। 
पाठकों की जानकारी के लिए बताना ज़रूरी है कि मुसलमानों के धर्म अस्थानों मक्का-मदीना के आसपास कई किलोमीटर के क्षेत्र को ‘हरमैन’ या ‘हरम-ए-पाक’ कहा जाता है। जब कोई इस क्षेत्र में दाखिल हो जाता है तो कट्टर से कट्टर दुश्मन भी उस पर हमला नहीं करता। उसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती है। इस क्षेत्र में आपसी दुश्मन मुस्लिम गुट लड़ाई नहीं करते। यहां तक कि इस क्षेत्र में पेड़ तक काटने गुनाह माना जाता है, परन्तु हम दरबार साहिब से कई किलोमीटर दूर के क्षेत्र की बात तो छोड़ें, उसके परिसर को भी सुरक्षित क्षेत्र के रूप में सम्मान नहीं देते। शायर-ए-मुशरिक डा. अल्लामा इकबाल की एक लम्बी नज़्म ‘जवाब-ए-शिकवा’ की चार पंक्तियों का ज़िक्र करना आवश्यक प्रतीत होती है :
मंफअत एक है इस कौम का नुकसान भी एक,
एक ही सब का नबी, दीन भी, ईमान भी एक।
हरम-ए-पाक भी, अल्लाह भी, कुर्रान भी एक,
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक। 
(मंफअत = फायदा)
जत्थेदार साहिबान का स्टैंड प्रशंसनीय 
़खैर, इस बात पर संतोष है कि जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह तथा जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने बड़े स्पष्ट शब्दों में श्री दरबार साहिब परिसर में सुखबीर सिंह बादल पर हुए हमले पर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह का यह कहना कि वह सुखबीर सिंह बादल पर हमला नहीं, यह हमला श्री अकाल तख्त साहिब जी द्वारा लगाई गई सेवा निभा रहे ‘सेवादार’ पर  हुआ है। यह कहना अपने आप में बहुत बड़े अर्थ रखता है जबकि श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व कार्यकारी जत्थेदार तथा तख्त श्री दमदमा साहिब के मौजूदा जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का यह कहना कि बहुत-सी एजेंसियां हैं, जिन्हें फैसले के अच्छे-बुरे होने से कुछ मतलब नहीं है। उन्हें दर्द (पीड़ा) हमारे संकल्प से है, जो गुरु हरगोबिन्द साहिब ने हमें बख्शा है। उन्होंने कहा कि यह संकल्प हमेशा कायम रहेगा। तख्त पर जो फैसले गुरु के भय में होते हैं, वे टिक जाते हैं और जो फैसले गुरु के भय के बिना होते हैं, वे फैसले करने वाले तथा फैसले भी गिर जाते हैं। इस टिप्पणी से जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह शायद अप्रत्यक्ष रूप में उन पर कुछ गुटों द्वारा केन्द्र या भाजपा के सम्पर्क में होने के लगाए गये आरोपों का स्पष्ट जवाब देने में भी सफल रहे प्रतीत होते हैं। इन बयानों तथा सिंह साहिबान के फैसले ने एक आशा जीवित रखी है कि सिख कौम अभी जीवित है और गुरु-आशय  से लबरेज़ भी है। 
इस बयान के बाद इस गोलीकांड की जांच किसी भी सरकारी एजेंसी द्वारा नहीं अपितु हाईकोर्ट के किसी मौजूदा जज की देखरेख में कम से कम आई.जी. स्तर के तीन अधिकारियों की सिट द्वारा की जानी चाहिए। इस जांच से ही सच्चाई सामने आ सकती है।
इस अवसर पर सिख कौम को इबरत का एक शे’अर समर्पित किये बिना नहीं रहा जा सकता :
सुना है डूब गई है बे-हिसी के दरिया में,
हो कौम जिसको यहां का अमीर होना था।
किसान नेताओं के लिए सोचने की बात
हम किसान नेताओं की नीयत पर संदेह नहीं कर रहे और यह समझते हैं कि वे लम्बे समय से जो संघर्ष कर रहे हैं, वह किसानों की मांगों मनवाने के लिए ही कर रहे हैं, परन्तु कई बार संघर्ष के कदमों का वक्त गलत होना एक आत्मघाती कदम भी सिद्ध हो जाता है। किसानों की लड़ाई केन्द्र सरकार के साथ है। यह ठीक है कि इस समय धान की फसल सम्भालने के बाद किसानों के लिए मोर्चा तीव्र करने के लिहाज़ से सही समय है। वे अपनी ताकत का प्रदर्शन करने में सफल हो सकेंगे, परन्तु सोचने की बात है कि इस समय दिल्ली कूच तथा दिल्ली में डेरे लगाने का कदम उस सरकार तथा पार्टी के हित में तो नहीं जाएगा, जिसके साथ किसानों की लड़ाई है। उल्लेखनीय है कि भाजपा ने स्पष्ट रूप में हरियाणा विधानसभा के चुनाव जाट (अर्थात किसान) बनाम अन्य वर्ग का अभियान चला कर जीते हैं। अब जब फरवरी, 2025 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं और दिल्ली में किसान वोट शायद 5 प्रतिशत भी नहीं हैं, तो बिल्कुल उससे पहले किसानों का दिल्ली में डेरे लगाना भाजपा को दिल्ली में भी हरियाणा दोहराने का अवसर देने का कारण तो नहीं।
सिर्फ एक कदम उठा था ़गलत राह-ए-शौक में,
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही। 
(अब्दुल हमीद अदम) 

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