जगह देखकर गिरे जनाब
ज़िंदगी में गिरना उठना तो लगा ही रहता है। लेकिन कुछ लोग गिरते हैं तो चाहते हैं कि उनके साथ-साथ कुछ और लोग भी गिरे। उन्हें अकेले गिरने से मोक्ष नहीं प्राप्त होता है इसलिए ऐसे लोग अपने साथ-साथ अपने से जुड़े समूह को भी साथ डुबाना चाहते हैं। ऐसा लोगों को लगता है लेकिन अकेले गिरने से इंसान को बेज्जती महसूस होती है और समूह में गिरने से आनंद अनुभव होता है।
गिरने के बारे में लेखक नरेश सक्सेना कहते हैं ...‘चीजों के गिरने के नियम होते हैं मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसके गिरने का कोई नियम नहीं होता है’। शायद यह उन्होंने बहुत ही पहले सोच विचार कर इंसान के लिए कहा।
लेकिन समय आगे बढ़ चुका है तो मनुष्य का गिरना भी बहुत आगे बढ़ चुका है। अब वह गिरता नहीं है गिरता ही चला जाता है। और कभी-कभी तो अपने पूरे समूह के साथ गिरकर इतना चालाक बनता है कि पूरे आत्मविश्वास से उसको अपनी उपलब्धि बताने का ढोंग करता है। और उसकी आत्मा तनिक भी उससे विवाद नहीं करती है। क्योंकि आजकल लोगों के पास आत्मा नाम की चीज़ नहीं बची है।
गिरने का भी अपना ही एक नियम कायदा और अलग संसार है। यदि बीच बाजार में कोई सुंदर कमनीय काया वाली महिला गिर जाए तो उसको उठाने में पुरुष वर्ग गिरने पड़ने में जरा भी देर नहीं लगाता। बल्कि उसका बस चले तो वह उसके लिए भी मारामारी कर ले कि ‘मैं उठाऊ मैं उठाऊ’ वह उस कमनीय काया को उठाने में भी गिरने का साहस दिखा सकता है। लेकिन मैं तो यह कहूंगी यह पुरुष वर्ग के हृदय की विशालता एवं उदारता का प्रतीक है। कि वह स्वार्थ भाव से ही सही उठाने के कृत्य को करता है। वरना इस मतलबी जमाने में कौन किसकी मदद करता है। बस यह पुरुष के हृदय की करुणा का ही प्रमाण है अत: पुरुषों को पत्थर दिल कहना अब स्त्रियों को बंद कर देना चाहिए।
इस मामले में महिलाओं को मैं निष्ठुर एवं पत्थर दिल कहना चाहूंगी। उनके सामने अगर कोई युवा पुरुष गिर जाए तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि वह उस पर खिलखिला कर हंस देती हैं। और द्रोपती के जैसे कटु वचन वाचन करने लगती है ‘अंधा है क्या’ अब बताइए भला किसी के दुख दर्द पर हंसने वाले और इतने कटु शब्द बोलने वाले को निष्ठुर और पत्थर दिल ना कहा जाए तो क्या कहा जाए। हां यदि कोई बुजुर्ग असहाय प्राणी गिर जाए तो थोड़ी बहुत ममता जाग जाती है और वह उसकी मदद कर देती हैं। महिलाएं इस मामले में बेहद निष्ठुर होती हैं जरा भी दया नहीं दिखाती है।
अगर उनके पास गिरे हुए को उठाने का जरा भी हृदय होता। तो उनके लिए पुरुष न जाने कितना गिर जाता। लेकिन पुरुष जानते हैं महिलाएं निष्ठुर होती हैं इसीलिए बेचारे अपना गिरना टालते रहते हैं।
अत: आप यह सुनिश्चित कर लें कि जब आपको गिरना हो तो जगह देखकर गिरे। यदि आप महिला हो तो महिलाओं के आसपास न गिरे वरना आपको भी उसी ट्रामा का सामना करना पड़ सकता है जो आप पुरुषों के लिए इस्तेमाल करती हैं। और यदि गिरना ज़रूरी है तो पुरुषों के सामने गिरे। कम से कम उठाने के लिए तो कोई होगा। और यदि आप पुरुष है तो आप यह सुनिश्चित कर ले की गिरने के बाद तुरंत आपको खुद से खड़ा होना है। वरना आपको बिना मदिरापान किए भी पियक्कड़ होने का प्रमाण पत्र दे देंगे। और वह भी आपके मुंह पर दिया जाएगा। अत: आप गिरते रहिए लेकिन जगह पर गिरने का ध्यान रखिए क्योंकि गिरने से ज्यादा कहां गिर रहे है इसका महत्व है।