आखिर कौन है गेटवे बोट हादसे का असल ज़िम्मेदार ?
गत 18 दिसम्बर को की दोपहर बाद 3 बजकर 55 मिनट पर मुम्बई के गेटवे ऑफ इंडिया से करीब 10 किलोमीटर दूर समुद्र के भीतर स्थित बुचर द्वीप के निकट नीलकमल नामक एक यात्री बोट से, बेहद तीव्र गति से समुद्र में मंडरा रही नौसेना की स्पीड बोट टकरा गई। इस टकराव से भयावह हादसा हो गया। गौरतलब है कि मुम्बई के गेटवे ऑफ इंडिया से हर दिन करीब 12 से 14 किलोमीटर दूर स्थित एलिफेंटा केव के लिए मौसम, पर्यटकों की संख्या और दूसरे कारकों के अनुसार नावें या फेरीज जाती हैं। करीब एक घंटे में ये नावें गेटवे ऑफ इंडिया से एलिफेंटा केव की दूरी तय करती हैं। इसलिए 18 दिसंम्बर को नीलकमल नामक जो बोट एलिफेंटा केव के लिए रवाना हुई। जिस नीलकमल बोट में 110 यात्री सवार थे, उसकी क्षमता सिर्फ 80 लोगों की थी। साथ ही समुद्री नावों के लिए अनिवार्य नियम है कि हर यात्री बोट में सवार होते ही लाइफ जैकेट पहनेगा, लेकिन पता चला है कि नाव में पर्याप्त लाइफ जैकेट थी ही नहीं थीं और जितनी थी भी, उन्हें किसी भी यात्री ने नहीं पहन रखा था, जिससे पता चलता है कि लोग भी अपनी ज़िंदगी को लेकर कितने लापरवाह है।
इस दुर्घटना में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक तीन नौसेना के जवानों सहित 13 लोगों की मौत हो चुकी थी, 101 लोगों को बचा लिया गया था, लेकिन उनमें से कईयों की हालत अब भी गंभीर थी। हालांकि अंतिम रूप से इस घटना का निश्चित कारण तो व्यापक जांच के बाद ही सामने आयेगा, लेकिन दुर्घटना से जीवित बचे यात्रियों और उनके द्वारा बनाये गये कुछ मोबाइल वीडियो से इस दुर्घटना से जिन प्रारंभिक कारणों का पता चलता है, वह यही है कि यह दुर्घटना जिस नौसेना की स्पीड बोट से टकराकर हुई, वह यात्रियों से भरी नौका के इर्दगिर्द बहुत ही तेज रफ्तार से चक्कर लगा रही थी। कुछ यात्री तो उक्त नौसेना की नौका को कैमरे में कैद करने के लिए नौका की छत पर खड़े होकर इसकी वीडियो बना रहे थे।
हालांकि घटना के बाद मुम्बई पुलिस ने नीलकमल नाव पलटने के संबंध में नौसेना के स्पीड बोट चालक और अन्य ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ गेटवे ऑफ इंडिया के निकट कोलाबा पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कर ली है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराओं 106 (ए) 125 (ए) (बी), 282, 324 (3) (5) के तहत एफआईआर दर्ज की गयी है। यह एफआईआर नीलकमल नौका में सवार जीवित बचे यात्री 22 वर्षीय नाथाराम चौधरी, जो मुम्बई के साकीनाका इलाके के रहने वाला है, की शिकायत पर दर्ज की गई है। शिकायत के मुताबिक नौसेना की स्पीड बोट यात्री बोट के इर्दगिर्द बहुत तेज चक्कर लगा रही थी, जब इस बात पर कुछ पत्रकारों ने नौसेना के अधिकारियों से स्पष्टीकरण चाहा तो नौसेना के अधिकारियों ने कहा कि यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि नौसेना की स्पीड बोट की उस समय रफ्तार क्या थी, जब यह यात्री नौका से टकरायी। लेकिन उनके मुताबिक नौसेना की स्पीड बोट की रफ्तार 140 किलोमीटर प्रतिघंटे तक जा सकती है। नौसेना के अधिकारियों के मुताबिक जब भी किसी क्राफ्ट पर कोई बड़ा कम्पोनेट जैसे कि इंजन आदि को लगाया जाता है तो नौसेना ओईएम के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर इसका टैस्ट करती है ताकि ऐन मौके पर कोई समस्या उभरकर सामने न आए। नौसेना के मुताबिक अगर किसी कम्पोनेट के निर्माता दावा करते हैं कि इंजन 140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार तक पहुंच सकता है, तो हम इस दावे की पुष्टि के लिए उनके साथ मिलकर इसका परीक्षण करते हैं। वास्तव में यह वैसा ही परीक्षण हो रहा था।
लेकिन यहीं पर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है कि क्या इतनी संवेदनशील सैन्य गतिविधियां चाहे वह किसी मशीन की परीक्षण के ही क्यों न हों, क्या उन्हें आम नागरिकों से भरे क्षेत्र में किया जाना चाहिए? तकनीकी तौर पर किसी हार्बर या बंदरगाह में भारतीय नौसेना, तटीय सुरक्षाबल आदि की मौजूदगी होती है और यह ज़रूरी भी है, क्योंकि यहां सुरक्षा की व्यापक ज़रूरत होती है। लेकिन क्या ऐसी जगहों पर यानी ऐसे बंदरगाहों पर जहां बड़े पैमाने पर आम लोग भी पानी के भीतर मौजूद रहते हों, जैसे कि गेटवे ऑफ इंडिया से एलिफेंटा केव के 12-14 किलोमीटर लम्बे समुद्री रास्ते में सुबह 9 बजे के बाद से रात 9 बजे तक होते हैं? इस दौरान यहां हजारों की संख्या में लोग मौजूद होते हैं। क्योंकि इस दौरान गेटवे ऑफ इंडिया से दर्जनों फेरीज यात्रियों को लेकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद एलिफेंटा केव की दहलीज तक जाती हैं और फिर वहीं से दर्शन करके लौटने वाले लोगों को वापिस गेटवे ऑफ इंडिया छोड़ती हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस पूरे समय यहां लॉजिस्टिक स्पोर्ट और आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए नौसेना और तटीय सुरक्षा बल की मौजूदगी जरूरी है। लेकिन क्या इस व्यस्त समय में कोई खतरनाक परीक्षण भी नौसेना द्वारा इस इलाके में किया जा सकता है? बात सिर्फ कानून की नहीं है, इसे एक सामान्य सुरक्षा पहलू के नज़र भी देखना चाहिए। अभी तक जो बात निकलकर सामने आयी है, उससे यही पता चलता है कि जिस स्पीड बोट के इंजन का नौसेना चालक दल उसके 140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार का परीक्षण कर रहा था, वास्तव में वही हादसे का कारण बनी।
माना जा रहा है कि इंजन फेल हो गया और चालक का स्पीड बोट पर नियंत्रण नहीं रहा, जिस कारण नौसेना की स्पीड बोट पर्यटकों से भरी बोट से टकरा गई। एक साल पहले भी एक हादसा हुआ था, जिसमें तीन पर्यटकों की मौत हो गई थी। लेकिन कहा जा सकता है कि यह सौभाग्य था कि अब के पहले कोई इतना भयानक हादसा नहीं हुआ था। अब इसे सबक के तौर पर लिया जाए और नौसेना की प्रशिक्षण व परीक्षण संबंधी गतिविधियों को या तो यहां से अलग सम्पन्न की जाएं या फिर इनके लिए हर दिन या सप्ताह के कुछ दिन का विशेष समय निर्धारित हो।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर