रेवड़ी संस्कृति की बुनियाद पर टिका दिल्ली का चुनाव

भारत के राजनीतिक परिदृश्य में चुनावी रणनीतियां समय-समय पर बदलती रही हैं। हाल के वर्षों में रेवड़ी संस्कृति का मुद्दा चर्चा का केंद्र बन गया है, विशेष रूप से दिल्ली के चुनावी परिदृश्य में। रेवड़ी संस्कृति का तात्पर्य उन वादों और घोषणाओं से है जिन्हें राजनीतिक दल जनता को लुभाने के लिए मुफ्त सुविधाओं के रूप में पेश करते हैं। इन वादों में मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं की घोषणाएं शामिल होती हैं।
  दिल्ली की राजनीति में रेवड़ी संस्कृति आम आदमी पार्टी (आप) के उदय के साथ अधिक बढ़ी। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने मुफ्त बिजली और पानी की सुविधाओं, सरकारी स्कूलों और मोहल्ला क्लीनिकों के सुधार जैसे वादों को अपनी प्राथमिकता बनाया। इन नीतियों ने जनता के बीच एक मजबूत प्रभाव छोड़ा, खासकर मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के मतदाताओं पर। मुफ्त या सब्सिडी वाली सुविधाएं उन वर्गों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर होते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की मुफ्त उपलब्धता से समाज में समानता बढ़ती है और वंचितों को मुख्यधारा में लाने में मदद मिलती है। इस प्रकार की घोषणाएं जनता को यह एहसास कराती हैं कि सरकार उनकी भलाई के लिए काम कर रही है, जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है।
दिल्ली के चुनावी परिदृश्य में रेवड़ी संस्कृति ने निर्णायक भूमिका निभाई है। आम आदमी पार्टी ने इसे अपने मुख्य चुनावी एजेंडे के रूप में इस्तेमाल किया है। इस रेवड़ी संस्कृति का विरोध करने वाली विपक्षी पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी भी उसी रेवड़ी राजनीति को बढ़ावा दे रही हैं। सभी पार्टियां बिजली, पानी मुफ्त देने की बातें करती हैं। तरह-तरह के लोक लुभावन वादे से सजे चुनाव घोषणा पत्र लाकर जनता को लुभा रहे हैं।
 दिल्ली के चुनावी माहौल में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनीतिक दल महिला सुरक्षा, रोज़गार और महिला सशक्तिकरण जैसे बुनियादी मुद्दों पर गम्भीरता नहीं दिखा रहे। महिला सम्मान के नाम पर नकद प्रोत्साहन की योजनाएं घोषित की जाती हैं, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा, रोज़गार और नेतृत्व में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए ठोस नीतियों का अभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
यदि मुफ्त की योजनाओं के साथ-साथ मजबूत राजस्व मॉडल तैयार किया जाए तो यह रणनीति दीर्घकालिक सफलता की ओर ले जा सकती है। इसके अलावा, सरकारों को जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने और दीर्घकालिक विकास योजनाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
 रेवड़ी संस्कृति चुनावी राजनीति का अहम हिस्सा बन चुकी है। यह जनता के तत्काल हितों को पूरा करने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक विकास और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक सकरात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है। दिल्ली चुनाव ने यह दिखाया है कि लोकलुभावन घोषणाएं चुनावी जीत दिला सकती हैं, लेकिन जनता के समग्र कल्याण और आत्मनिर्भरता के लिए ठोस नीतियों की आवश्यकता है, लोक लुभावन वादे या मुफ्त की रेवड़ियों की नहीं। जनता मुप्त के रेवड़ी के चक्कर में सही नेताओं का चुनाव नहीं कर पाती है, जिसका खमियाजा पांच वर्षों तक भुगतना पड़ता है। रेवड़ी संस्कृति आम जनता को पंगु बना रही है। (युवराज)
 

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