वैश्विक पंजाबी कांफ्रैंसों का प्रबंधन एवं उपलब्धियां

हम चंडीगढ़ की दहलीज़ तथा पंजाब की सीमा साहिबज़ादा अजीत सिंह नगर में पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड में तीन दिवसीय वैश्विक पंजाबी कांफ्रैंस का जलवा देख कर विमुक्त हुए हैं। इसमें भारत के अलग-अलग राज्यों की पंजाबी साहित्य एवं संस्कृत को समर्पित संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने ज़ोरशोर से भाग लिया एवं बेझिझक होकर अपने विचार प्रकट किए। तीन दिन लगातार चले 9 सत्रों में साहित्य, संस्कृति, समाज, शिक्षा तथा सत्ता के विषयों पर गम्भीर चर्चा हुई। इसके अतिरिक्त रघबीर सिंह सिरजना, सुरेन्दर गिल, सिरी राम अर्श, रिपुदमन सिंह रूप तथा सुरजीत कौर बैंस तथा मेरे जैसे कलमकारों का सम्मान भी किया गया।
वैश्विक पंजाबी कांफ्रैंसों की नींव 1980 के ब्रिटेन में रहते रणजीत धीर, अवतार जंडियावली, शेर जंग जांगली तथा रविन्दर रवि ने उस वर्ष की ग्रीष्म ऋतु में 15 दिवसीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जश्न मना कर रखी थी। यह बात नोट करने वाली है कि वहां शमूलियत करने वाले सोहन सिंह जोश, संत सिंह सेखों, जसवंत सिंह कंवल, दलीप कौर टिवाना, सोहन सिंह मीशा, हरिभजन सिंह तथा हरभजन बाजवा जैसे फोटोग्राफर तथा अन्य दर्जन साहित्य रसियों ने तब ब्रिटेन की धरती पर पहली बार पांव रखा था। उस धरती पर जहां के शेकस्पीयर, टॉम्स हार्डी, मिल्टल तथा शैलेय की पाठ्य पुस्तकों वे स्वयं भी पढ़ते रहे थे तथा पढ़ाते भी रहे थे। खूबी यह कि 15 दिन लगातार चली इस कांफ्रैंस में हमनें ब्रिटिश साहित्यकारों के घर भी देखे, जिनमें उनके कार्य करने वाले मेज़-कुर्सियां एवं लिखने वाली कलमें भी वहीं की सरकार ने सम्भाल एवं सजा कर रखी हुई थीं। 
इस कांफ्रैंस के अलग-अलग सत्र केवल साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के आंगन में ही नहीं, अपितु गुरुद्वारों व मस्जिदों में भी आयोजित किए गए थे, जहां हम जैसे लोगों के रहने एवं खान-पीने का प्रबंध तथा अधिक आयु के लेखकों या महिला रचनाकारों को हाथ का सहारा देकर अपने बराबर चलाने का प्रबंध तक भी किया हुआ था। हर कोई हर किसी का अपना था। परिणामस्वरूप सूफियाना कलाम की चर्चा मानचैस्टर की बड़ी मस्जिद के आंगन में हुई थी। इसका आगाज़ लंबी दाड़ी वाले मौलानाओं ने सूफी विचारधारा के गुणगायन से किया। जब उन्होंने बाहर से आए मेहमानों को मंच सौंप कर विनती की कि हममें से भी कोई बोले तो संत सिंह सेखों ने स्वयं बोलने के स्थान पर हरिभजन सिंह का नाम लिया। क्या बोले, यह तो मुझे याद नहीं, परन्तु कैसे और किस अदा में बोले, उन्होंने मुल्ला-मौलानाओं के कहे पर सुहागा फेर दिया। ऐसा सुहागा कि सेखों के मुख से निकले शब्द मुझे कभी नहीं भूलेंगे। वे थे, ‘देखिया साडा हरिभजन सिंह?’
ब्रिटेन वाली कांफ्रैंस द्वारा इन कांफ्रैंसों की नींव रखने का परिणाम ही यह कांफ्रैंस कही जा सकती है, जिसे केन्द्रीय पंजाबी लेखक सभा की अध्यक्षता के अधीन सुशील एवं कमल दोसांझ जोड़ी ने शीर्ष पर पहुंचाया। उन्हें इस सभा की ओर से 2016 तथा 2019 में करवाई गईं कांफ्रैंसों का अनुभव था। ताज़ा कांफ्रैंस में विचार किए गए विषयों ने वक्ताओं का विवरण तो मीडिया में आ चुका है, फिर भी कुछ एक के नाम बताने बनते हैं। वे हैं गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के पंजाबी विभाग के डा. मनजिन्दर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार हमीर सिंह तथा अजीत प्रकाशन समूह के कार्यकारी सम्पादक सतनाम सिंह माणक, गौहर रज़ा, सेवामुक्त आई.ए.एस. अधिकारी अशोक गुप्ता तथा डा. जसविन्दर सिंह आदि।  
वैसे नामधारी सतगुरु उदय सिंह के संरक्षण में 7 मार्च, 2025 को आरंभ हुई इस कांफ्रैंस में देश हमारा कहां से कहां पहुंच गया के गम्भीर विषय समय वरियाम सिंह संधू, लखविन्दर जौहल, गुरभझन गिल, दर्शन बुट्टर, हरजीत अटवाल तथा दीप दविन्दर की शमूलियत से अनुमान लग सकता है कि प्रबंधकों का चयन एवं क्रम कैसा था। यहां वर्तमान भारत में महिलाओं के समक्ष चुनौतियां पर ही विचार-विमर्श नहीं किया गया, अपितु भाष, साहित्य एवं शिक्षा के मामले भी उजागर हुए, जिनमें श्रोताओं ने भी आगे बढ़ कर भाग लिया। अंतिम सत्र में डा. मनमोहन, गुरतेज सिंह गुराया, मक्खन कौहाड़ तथा सेवामुक्त आई.ए.एस. अधिकारी अशोक गुप्ता ने ‘संविधान, सत्ता एवं लोग’ जैसे गम्भीर विषय पर बोलते हुए कांफ्रैंस में भाग न ले सकने वालों का भी प्रतिनिधित्व किया। 7 मार्च को सूफियाना शाम तथा 8 मार्च की शाम को नाटककार आत्मजीत द्वारा डा. दीवान सिंह कालेपानी के जीवन पर आधारित ‘किस्तियां विच्च जहाज़’ नामक नाटक की पेशकारी भी प्रशंसा का स्रोत बनी। 
कुल मिला कर देखा जाए तो तीन दिवसीय कांफ्रैंस में पाकिस्तान के लेखकों की अनुपस्थिति अवश्य खटकती रही, जिसका मुख्य कारण उनका वीज़ा न लगना था। फिर भी ब्रिटेन, अमरीका तथा कनाडा की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधित्व ने उस ओर ध्यान नहीं जाने दिया। ऐसी कांफ्रैंसें हमें आवास तथा प्रवास के मामलों से ही नहीं जोड़तीं, अपितु इनकी उपलब्धियों से भी अवगत करवाती हैं। इनका प्रबंधन कठिन तो है, परन्तु इसके लाभ भी गहरे हैं। केन्द्रीय पंजाबी लेखक सभा (पंजीकृत) प्रशंसा की हकदार है। 
अंतिका
(हरिभजन सिंह)
अजे तक ओस थावें चल रहा है जश्न जीभां दा,
कदे लंघिया सी जित्थों काफला मेरे गुनाहां दा।
जिहड़ी एकांत विच्च मैं तूं मिले सां, ओह नहीं लभदी,
बड़ा है शोर उंझ तां दोस्ता साडे गवाहां दा।
ओह मैनूं कत्लगाह पहुंचाण खातर तुर के नाल आए,
है किन्ना आसरा, इतबार, मैनूं खैरखाहां दा।
जिनूं ओह देर तक विहंदे रहे बुझदे सिफर वांगूं, 
उन्हां की खैर लई बलदा सी दीवा खानकाहां दा।  

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