कनाडा की नई अंगड़ाई

कनाडा में नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने पद ग्रहण कर लिया है। जस्टिन ट्रूडो 9 वर्ष से अधिक समय तक लिबरल पार्टी की ओर से देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। देश में आम चुनाव सिर पर हैं, परन्तु अपने कार्यकाल के अंत में जस्टिन ट्रूडो जहां अनेक विवादों में घिरे दिखाई दिए, वहीं कनाडा की समस्याओं में भी वृद्धि होती गई। प्रत्येक तरफ से दबाव पड़ने और कुछ महीने पहले ट्रूडो ने बड़ी हिचकिचाहट के बाद पद छोड़ने का मन बना लिया था, क्योंकि यह बात स्पष्ट प्रतीत होने लगी थी कि यदि चुनावों के दौरान वह प्रधानमंत्री बने रहते हैं तो इससे लिबरल पार्टी का बड़ा राजनीतिक नुक्सान होने की सम्भावना थी और विपक्षी पार्टी ‘कंज़र्वेटिव पार्टी ऑफ कनाडा’ को इसका लाभ मिल सकता था। इस स्थिति के दृष्टिगत पार्टी के भीतर मतदान हुआ, जिसमें लगभग डेढ़ लाख पार्टी सदस्यों ने भाग लिया। इस बदलाव से कनाडा के राजनीतिक दृश्य में भी बड़ा बदलाव आने की सम्भावना बन गई है।
कनाडा को आज भारी आंतरिक और बाहरी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यहां बेरोज़गारी में वृद्धि हो रही है। महंगाई बेहद बढ़ी हुई है। घरों की कमी महसूस होने लगी है। इसके साथ ही अपराध का ग्राफ भी ऊपर की ओर जा रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प के अमरीका के राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी ओर से अपनाई आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव करते हुए देश में आयात होने वाली वस्तुओं पर भारी टैक्स लगाने की घोषणा की गई थी, जिसके तहत अमरीकी प्रशासन द्वारा कनाडा से आने वाली  वस्तुओं पर भी 25 प्रतिशत टैक्स लगाए जाने की घोषणा की गई थी। यहीं बस नहीं डोनाल्ड ट्रम्प ने तो कई बार यहां तक भी कह दिया है कि वह कनाडा को 51वां अमरीका राज्य बनाने के पक्ष में हैं। भारत के साथ भी कनाडा के जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल के दौरान रिश्ते ज्यादा बेहतर नहीं रहे। कुछ वर्षों से कनाडा में रह रहे गर्म विचारधारा वाले और भारत में वांछित हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद जस्टिन ट्रूडो द्वारा प्रत्यक्ष रूप में भारत सरकार को इसके लिए दोषी ठहराया गया था, जिस कारण दोनों देशों में संबंध बिगड़ गए थे और दोनों का आपसी व्यापार भी बेहद धीमा हो गया था। भारत से प्रत्येक वर्ष लाखों ही विद्यार्थी पढ़ने के लिए कनाडा जाते रहे हैं। उन पर भी ट्रूडो प्रशासन ने अनेक तरह की पाबंदियां लगा दी थीं। यहां तक दोनों के दूतावासों का काम भी बेहद धीमा हो गया था। दोनों देशों ने आपसी कड़वाहट  बढ़ने के कारण एक दूसरे के राजनयिकों को भी अपने-अपने देश वापस भेज दिया था। कनाडा भारत का बड़ा व्यापारिक सहयोगी देश भी रहा था। इसलिए ऐसे आदान-प्रदान पर भी भारी प्रभाव पड़ा था।
मार्क कार्नी ने पद की शपथ ग्रहण करने से पहले ही कह दिया था कि यदि वह प्रधानमंत्री बने तो भारत के साथ व्यापारिक संबंध पुन: बहाल कर दिए जाएंगे। कार्नी को राजनीति का ज्यादा अनुभव नहीं है, परन्तु वह बैंक ऑफ कनाडा के वर्ष 2008 से 2013 तक गवर्नर रहे हैं और बैंक ऑफ इंग्लैंड के भी वर्ष 2013 से 2020 तक गवर्नर रहे हैं। प्रशासनिक और आर्थिक सुधारों के लिए इस अनुभव का उन्हें ज़रूर लाभ मिल सकता है। वह कनाडा के साथ-साथ ब्रिटिश और आयरलैंड के भी नागरिक हैं। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कनाडा कभी भी अमरीका का हिस्सा नहीं बन सकता। यदि ट्रम्प ने हमारे सामान पर अनुचित टैक्स लगाया है तो ऐसा करके वह कनाडा के परिवारों, कर्मचारियों और व्यापारियों पर हमला कर रहे हैं, परन्तु इसमें वह सफल नहीं होंगे। समूचे हालात के दृष्टिगत आज कनाडा के समक्ष अनेकानेक चुनौतियां दरपेश हैं, जिनका नए प्रधानमंत्री को समाधान करना पड़ेगा। इसके साथ ही कार्नी ने यह भी कहा है कि वह यूरोपियन देशों और भारत के साथ अपना द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के लिए यत्न करेंगे। कनाडा के इस राजनीतिक बदलाव को भारत में इसलिए पूरी गम्भीरता से देखा जा रहा है, क्योंकि आज़ादी से पहले और देश की आज़ादी के बाद कनाडा से भारत के अनेक पक्षों से संबंध बने रहे हैं, जो अक्सर भावुक साझ में बदलते रहे हैं। नए बदलाव से एक बार फिर दोनों देशों के संबंधों में पहले जैसी मिठास आने की सम्भावना उजागर होती दिखाई देती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

#कनाडा की नई अंगड़ाई