आतंकियों की चपेट में पाकिस्तान

बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) द्वारा पाकिस्तान में क्वेटा से पेशावर जाने वाली जाफर एक्सप्रेस रेल अपहरण के बाद तय हो गया हैं कि पाकिस्तान अब अपने ही देश के आतंकवादी संगठनों की चपेट में आता जा रहा है। पाकिस्तान की यह दुर्गति ‘बीज बो, बबूल के’ आम कहां से होएं’ कहावत को चरितार्थ करने वाली है। पाकिस्तान की यह दशा आतंकवादियों को पालने-पोसने का परिणाम है। ये संगठन जिस तेज़ी से पाक में हमलावर बने हुए हैं, उसके चलते ऊंट अब पहाड़ के नीचे आता जा रहा है। बलूचों के हमले के बाद तहरीक-ए-पाकिस्तान (टीटीपी) ने मोर्चा खोलते हुए कहा है कि पाक सेना एक कैंसर है, इसे नहीं छोड़ेंगे। टीटीपी की गतिविधियां पाक-अफगान के सीमाई क्षेत्र में जारी है। 2007 में जन्मा टीटीपी 13 आतंकी समूहों का एकीकृत संगठन है। 2014 में इसी ने पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला करके 126 छात्रों को मार डाला था। टीटीपी के अलावा इस्लामिक स्टेट खुरासान (आईएसके) भी वर्तमान में मज़बूत हो गया है। ये तीनों संगठन परस्पर संगठित होकर पाक के लिए सिरदर्द बन गए है। इसी का नतीजा है कि वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2025 की रिपोर्ट के अनुसार पाक इस साल दूसरा सबसे अधिक आतंक प्रभावित देश बन चुका है। 
बीएलए ब्रिटेन व अमरीका द्वारा प्रतिबंधित बड़ा अलगाववादी संगठन है। बलूचिस्तान क्षेत्र के पाक के कब्जे के आने के बाद से ही आज़ादी के लिए संघर्षरत है। जबकि अंग्रेजों ने इसे स्वतंत्र देश मान लिया था लेकिन पीओके के साथ पाक ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया था। 14 अगस्त, 1947 को जब पाकिस्तान भारत से अलग होकर एक नए देश के रूप में अस्तित्व में आया था, तब बलूचिस्तान पाक के मानचित्र में शामिल नहीं था। ब्रिटिश शासन ने बलूचिस्तान को कुछ कबाइली क्षेत्रों और कुछ स्वतंत्र रियासतों में बांट दिया था। इस स्थिति में कबाइली सरदार अकबर बुग्ती ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लिया। इस फैसले के साथ मकरान, खारान और लसबेला रियासतों ने तो पाक में विलय होने की सहमती दे दी, लेकिन इस क्षेत्र की सबसे बड़ी रियासत कलात ने स्वतंत्र सूबा के रूप में बने रहने का निर्णय लिया। नतीजतन 1948 में कलात पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। लेकिन शाही परिवार के प्रिंस करीम ने आजादी के लिए सशस्त्र विद्रोह कर दिया। इससे निपटने के लिए 1948 में बलूचिस्तान में पाक ने पहला सैन्य अभियान चलाकर सशस्त्र खिलाफत को अपदस्थ किया। किंतु आगे भी बलूचिस्तान में विद्रोह फूटते रहे, जिसके फलस्वरूप 1970 में बलूचिस्तान को स्वतंत्र प्रांत का दर्जा दे दिया गया। यहां निर्वाचित सरकार भी बनी। जिसे 1973 में बर्खास्त कर दिया गया। तभी से यह क्षेत्र स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा है। बीएलए बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग करने वाला सबसे पुराना सशस्त्र अलगाववादी संगठन है। यह संगठन पहली बार 1970 में अस्तित्व में आया था। इसने जुल्फिकार अली भुट्टो के कार्यकाल में बलूचिस्तान प्रांत में सशस्त्र विद्रोह का शंखनाद कर दिया था। परंतु सैनिक तानाशाह जियाउल हक द्वारा सत्ता हथियाने के बाद बलूच नेताओं के साथ बातचीत हुई, जिसके परिणामस्वरूप संघर्ष विराम की स्थिति बन गई थी। नतीजतन बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोह खत्म हो गया था और बीएलए का भी कोई वजूद नहीं रह गया था। किंतु कारगिल युद्ध के बाद सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली। इसके बाद मुशर्रफ के संकेत पर साल 2000 में बलूचिस्तान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नवाबमिरी की हत्या कर दी गई और मुशर्रफ ने कुटिल चतुराई बरतते हुए पाक सेना से इस मामले में आरोपी के रूप में बलूच नेता खेरबक्ष मिरी को गिरफ्तार करा दिया। इसके बाद फिनिक्स पक्षी की तरह बीएलए फिर उठ खड़ी हुई। इसके बाद से ही जगह-जगह हमले शुरू हो गए। साल 2020 में एकाएक बीएलए की ताकत बढ़ गई और बलूचिस्तान के सरकारी प्रतिष्ठानों तथा सुरक्षाबलों पर हमलों की संख्या बढ़ती चली गई।
बीएलए बलूचिस्तान में चीन के प्रभाव को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं करता है। उसका मानना है कि चीन बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा को हड़पने का काम कर रहा है। इसी नजरिए से ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने के साथ एक बड़ा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी बना रहा है। दरअसल भारत-पाक के बंटवारें के समय बलूचिस्तान को बलूचों की इच्छा के बिना बंदूक की जोर पर पाकिस्तान में कब्ज़ा कर लिया था। जबकि वे स्वयं को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखना चाहते थे। अत:एव पाक की स्वतंत्रता के समय से ही बलूचों का संघर्ष पाक सरकार और सेना से निरंतर बना हुआ हैं। बीएलए जब साल 2000 में वजूद में आया था तब इसके लड़ाकों की संख्या 6000 से भी ज्यादा थी। जिसमें करीब 150 आत्मघाती दस्ते शामिल थे। सरदार अकबर खान बुगती एक समय बलूचिस्तान के सर्वमान्य नेता रहे हैं। इसीलिए वे बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री भी रहे थे। 26 अगस्त, 2006 को पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने उनकी हत्या कर दी थी। तभी से यह संगठन पाक सेना से लोहा ले रहा है। जाफर एक्सप्रेस पर भी हमला इसलिए बोला गया, क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा पाक सैनिक यात्रा करते हैं। 
गिलगित और बलूचिस्तान पर पाक ने 17 मार्च 1947 को सेना के बूते अवैध कब्जा कर लिया था, तभी से यहां राजनीतिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक आवाज उठाने वाले लोगों पर दमन और अत्याचार आज तक जारी है। अब इस लड़ाई में टीटीपी और आईएसके भी पाक पर हमलावर के रूप में पेश आ रहे हैं।  पाक की कुल भूमि का 40 प्रतिशत हिस्सा यहीं है लेकिन इसका विकास नहीं हुआ है। करीब 1.30 करोड़ की आबादी वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूच है। यहां हिंदु, सिख और ईसाई भी रहते हैं। इनमें आपस में खूब भाईचारा है।

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