नागपुर के दंगे और औरंगज़ेब की कब्र
यह देश के लिए बेहद बुरी खबर है कि यहां साम्प्रदायिकता की आग जलने लगी है। माहौल बेहद गर्म हो गया है। इससे ज़हरीली ऩफरत फैलने लगी है। इसकी ताज़ा उदाहरण महाराष्ट्र के साम्प्रदायिक दंगे हैं। यहां भाजपा के नेतृत्व में नई-नई सरकार बनी है, जिसमें शिव सेना के एक गुट के साथ-साथ शरद पवार से अलग हुई नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का एक गुट भी शामिल है। भाजपा देश भर में पूरे उत्साह में है। इसने कुछ समय पहले हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र के चुनावों में भारी जीत दर्ज की है। देश के ज्यादातर राज्यों में इसकी तूती बोलने लगी है। नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं, अपितु उभरती अन्तर्राष्ट्रीय शख्सियत बन गए हैं। केन्द्र में उनके नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के पिछले दो कार्यकालों, अभिप्राय दस वर्षों के शासन की अच्छी और बड़ी उपलब्धियों से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
बड़े प्रोजैक्ट आरम्भ करने के साथ-साथ यह सरकार आम लोगों को भी सम्बोधित रही है परन्तु दूसरी तरफ देश के सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में जिस तरह के वृत्तांत का यह सृजन करने लगी है, वह देश के विकास, इसकी एकता और अखंडता के लिए ़खतरनाक है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में योगी आदित्यनाथ तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। नि:संदेह उनकी नीतियां विकासोन्मुखी हैं, परन्तु लगातार अपनी कार्रवाइयों और व्याखयानों से जिस तरह का माहौल वह इस राज्य में बना रहे हैं, वह बेहद ़खतरनाक है और यह भी कि इसका प्रभाव देश भर में पड़ रहा है। देश का लिखित संविधान सांझी और भ्रातृत्व भाव वाले नैतिक-मूल्यों को उजागर करता है। सभी धर्मों को पूरा सम्मान देता है, परन्तु आज वोट की राजनीति के लिए बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं को उछालने और बहुसंख्यकों की वोटों के आधार पर ही राज शक्ति प्राप्त करने की इच्छा ने पुराने पारम्परिक नैतिक-मूल्यों को पीछे धकेल दिया है। धार्मिक जुनून फैला कर दूसरों के प्रति ऩफरत पैदा करना स्वस्थ सोच की निशानी नहीं कही जा सकती। गड़े मुर्दों को उखाड़ कर या सैकड़ों वर्षों की घटनाओं को उछाल कर आज के युग की प्रतिनिधिता नहीं की जा सकती। सदियों का हिसाब लेने की इच्छा आपसी दुश्मनी को बढ़ाने में ही सहायक होगी।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में वरिष्ठ भाजपा नेताओं द्वारा जिस तरीके से चुनाव प्रचार किया गया था, वह भी साम्प्रदायिकता की रेखाओं को गहरा करने और समाज के अलग-अलग वर्गों को बांटने के लिए काफी था। इसी क्रम में औरंगज़ेब की कब्र की छेड़ी जा रही नई दास्तान है। औरंगज़ेब की कब्र महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। इस क्षेत्र में ही उसकी मौत हुई थी। 300 वर्ष पुरानी यह कब्र शान-ए-शौकत वाली नहीं है, जहां उसके पिता शाहजहां द्वारा अपनी बेगम मल्लिका मुमताज की याद में आगरा में ताजमहल बनाया गया था, वहीं औरंगज़ेब ने मरने से पहले यह इच्छा ज़ाहिर की थी कि उसकी कब्र बेहद साधारण और छोटी-सी होनी चाहिए। 300 वर्ष से यह उसी स्थिति में है। ब्रिटिश शासन के समय इसे संवारने का यत्न किया गया था। अब छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम को उछाल कर और औरंगज़ेब को एक कू्रर शासक बता कर उसकी कब्र को तोड़ने का एक राष्ट्रीय मामला बना कर पेश किया जा रहा है। बाबरी मस्जिद को गिराने वाले साम्प्रदायिक संगठनों को महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार आगे लाकर माहौल को खराब करने का यत्न कर रही है। एक शिवाजी तथा सम्भा जी से संबंधित फिल्म ‘छावा’ जिसमें सम्भा जी तथा औरंगज़ेब के बीच हुई लड़ाइयों तथा औरंगज़ेब के हाथों सम्भा जी की हुई मौत की वार्ता है, को लेकर नागपुर में इन साम्प्रदायिक संगठनों द्वारा जिस प्रकार जुलूस निकाल कर अल्पसंख्यक समुदाय को चुनौतियां दी गईं और औरंगज़ेब की कब्र को तोड़ने के नारे लगाए गए, उसने दोनों सम्प्रदायों में टकराव तथा तनाव पैदा कर दिया। इसी के परिणामस्वरूप ही दंगे भड़क गए। स्थिति को मुद्दा बना कर राजनीतिक लाभ लेने के लिए एक बार फिर ज़मीन तैयार की जा रही है।
शिव सेना (बाल ठाकरे) के नेता संजय राऊत जो राज्यसभा सदस्य भी हैं तथा जिनका संगठन हिन्दुत्व का दम भरता है, ने भी सृजित किए जा रहे ऐसे माहौल को देश के लिए खतरनाक बताया है। भारत के 75 वर्षों के संवैधानिक इतिहास के बारे में बात करते हुए संजय राऊत ने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे समझदार व्यक्ति ने खुल कर कहा था कि ‘देश का संविधान धर्म-निरपेक्ष ही रहेगा। मैं भारत को हिन्दू पाकिस्तान नहीं बनने दूंगा।’ संजय राऊत ने पैदा हुई पूरी स्थिति पर नज़र डालते हुए अपने समाचार पत्र ‘सामना’ जिसके वह कार्यकारी सम्पादक हैं, में लिखा है कि ‘मोदी-शाह का राज एक दिन जाएगा, पर जाते-जाते वे देश को टुकड़ों में बांट कर जाएंगे। विगत 10 वर्षों में भारत में हिन्दू तथा मुसलमानों दो अलग-अलग राष्ट्र बन गए हैं। यह माहौल विभाजन जैसा है। शिवाजी के इतिहास को बदलना, हिन्दू-मुसलमान के लिए अलग-अलग दुकानों की मांग करना, यह सब सोची-समझी मूर्खता है, जो भारत को हिन्दू-पाकिस्तान बनने की ओर धकेल रही है।’ यदि आज संजय राऊत जैसे शिव सेना के नेता ऐसा महसूस करने लगे हैं तो निश्चय ही देश में फैल रहे घृणा के माहौल की समझ आ सकती है। यदि भारत वासियों को सच्चे और सही अर्थ में हर तरह के विकास के मार्ग पर चलना है तो उन्हें ऐसा माहौल सृजित करने वालों के सामने डट कर खड़े होने की हिम्मत दिखानी पड़ेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द