आईएमएफ की रिपोर्ट से परे है भारत की मुद्रा नीति
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) समय-समय पर अलग-अलग देशों की विनिमय दर व्यवस्थाओं का मूल्यांकन और वर्गीकरण करता रहता है और बताता है कि कोई देश अपनी मुद्रा को किस प्रकार प्रबंधित कर रहा है। हाल ही में आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में भारत को ‘क्रॉल जैसी व्यवस्था’ श्रेणी में रखा। इस टिप्पणी ने अर्थशास्त्रियों, निवेशकों और मीडिया में कई सवाल खड़े किए, मसलन क्या यह चिंता की बात है? क्या भारत की मुद्रा व्यवस्था बदल चुकी है? किसी ने इसे ‘सी’ लेवल बोल के ऐसा भ्रम फैलाया जैसे की आईएमएफ से मुद्रा को ‘सी’ ग्रेड में डाल दिया है। इस भ्रम को दूर करने और सच्चाई जानने के लिए जानते हैं क्रॉल जैसी व्यवस्था और स्टेबल पोजीशन में क्या अंतर है और भारत के लिए कौन-सी व्यवस्था बेहतर है?
लेकिन इन सभी प्रश्नों को समझने के लिए पहले यह समझना आवश्यक है कि आईएमएफ विनिमय दरों का वर्गीकरण कैसे करता है और क्रॉल वास्तव में होता क्या है। क्रॉल जैसी व्यवस्था एक ऐसी विनिमय दर प्रणाली है, जिसमें किसी देश की मुद्रा का मूल्य धीरे-धीरे नियमित और नियंत्रित गति से बदलता रहता है। यह बदलाव न तो पूरी तरह मुक्त बाजार के हवाले होता है, न ही सरकार इसे स्थिर रखती है, बल्कि केंद्रीय बैंक एक अनुमानित गति क्रॉल दर से मुद्रा को धीरे-धीरे अवमूल्यित या धीरे-धीरे मूल्यवृद्धि करने देता है। इस व्यवस्था का उद्देश्य है मुद्रा में अचानक उथल-पुथल रोकना, वैश्विक झटकों का प्रभाव कम करना, महंगाई और व्यापार संतुलन के अंतर की भरपाई करना, निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखना। सीधे शब्दों में क्रॉल व्यवस्था मुद्रा को ‘नियंत्रित लचीलेपन’ के साथ चलने देती है।
सरल शब्दों में समझना है तो जैसे छोटे बच्चे जब क्रॉल करते हैं, वैसा समझिये, जहां आप निगरानी भी बनाये रखते हैं और उसे चलने भी देते हैं, केवल आप यह ध्यान रखते हैं कि उसे कोई चोट ना लगे। चूँकि भारत में विनिमय दर ऐसे ही निगरानी में था, उसे आईएमएफ ने अब अपने यहां सही वर्गीकरण किया है। यह आईएमएफ के स्थिर व्यवस्था से कैसे अलग है, उसे आगे समझिये। आईएमएफ की परिभाषा में स्थिर व्यवस्था वह व्यवस्था है जिसमें मुद्रा को एक निश्चित दायरे या एक निश्चित रेट पर लंबे समय तक स्थिर रखा जाता है। यहां क्रॉल व्यवस्था की तुलना में लचीलापन कम होता है। क्रॉल व्यवस्थामें जहां मुद्रा नियमित और धीरे-धीरे बदलती रहती है वहीं स्थिर व्यवस्था में मुद्रा लम्बे समय तक एक ही स्तर पर स्थिर रहती है। क्रॉल व्यवस्था में लचीलापन अधिक होता है जबकि स्थिर व्यवस्था में लचीलापन बहुत कम। क्रॉल व्यवस्था में बाहरी झटकों को धीरे-धीरे बर्दाश्त करने क्षमता होती है जबकि स्थिर व्यवस्था में बाहरी झटका आए तो मुद्रा पर अचानक असर होता है। क्रॉल व्यवस्था निर्यात प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में मदद करता है वहीं स्थिर व्यवस्था में निर्यात महंगा होने का जोखिम रहता है। क्रॉल कम रिज़र्व वाले देशों के लिए बेहतर होता है जबकि स्थिर व्यवस्था में निरंतर बचाव हेतु अधिक विदेशी मुद्रा चाहिए होती है। क्रॉल आर्थिक बदलावों के प्रति अधिक उत्तरदायी होता है जबकि स्थिर व्यवस्था व्यापारिक माहौल स्थिर लेकिन कम प्रतिस्पर्धी होता है। सारांश में क्रॉल व्यवस्था एक गतिशील और लचीलापन मॉडल है जबकि स्थिर व्यवस्था स्थिरता के साथ अनुशासन का मॉडल है।
क्रॉल व्यवस्था बेहतर है जब महंगाई अधिक हो, बाहरी झटके अधिक हों, निर्यातोन्मुख अर्थव्यवस्था हो, बाज़ार अस्थिर हो और विदेशी मुद्रा भंडार सीमित हो और मुद्रा को धीरे-धीरे समायोजित करना हो। इसलिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस, बांग्लादेश आदि में क्रॉल व्यवस्था अधिक टिकाऊ मानी जाती है। वहीं स्थिर व्यवस्था बेहतर है जब देश छोटा हो और व्यापार मुख्यत: कुछ ही देशों से हो, विदेशी मुद्रा भंडार बहुत अधिक हो, मुद्रा में स्थिरता बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता हो, महंगाई को नियंत्रण में रखना कठिन हो, वित्तीय विश्वास निर्माण करना हो।
चूंकि भारत एक विशाल, विविध, जटिल और बाहरी झटकों से प्रभावित होने वाली अर्थव्यवस्था है। भारत निर्यातोन्मुख क्षेत्रों को बढ़ावा दे रहा है और धीमी हृस निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखती है। भारत वैश्विक तेल कीमतों और डॉलर इंडेक्स के प्रति संवेदनशील है और क्रॉल व्यवस्था इन झटकों का प्रभाव धीरे-धीरे बर्दाश्त कर लेती है। विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स रिज़र्व) मज़बूत तो है लेकिन अनंत नहीं है। भारत को महंगाई और ग्रोथ दोनों संतुलित रखनी होती है। अत: भारत के लिए क्रॉल व्यवस्था अधिक उपयुक्त है और यह नीति निर्धारण में लचीलापन भी देती है। रिज़र्व बैंक की लंबी अवधि की रणनीति प्रबंधित लचीलापन पर आधारित है। भारत न पूरी तरह फ्लोटिंग है, न पूरी तरह निश्वित आकलित है। भारत का वास्तविक मॉडल एक व्यवहारिक संतुलन है। इसलिए आईएमएफ का भारत को क्रॉल व्यवस्था कहना वास्तव में भारत के वर्तमान आर्थिक ढांचे के अनुकूल है। (एजेंसी)



