निर्वाचन आयोग का अपना काडर होना चाहिए

भारत का निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और इसका मुख्य काम जैसा कि नाम से स्पष्ट है, देश में चुनाव की निष्पक्ष व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी निभाना। संसद, विधानसभा चुनाव के लिए एकदम सही मतदाता सूची होनी चाहिए। प्रश्न है कि क्या इसके पास इतना सामर्थ्य है कि यह कर सके। यह केवल आंशिक रूप से सक्षम है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य के लिए जन संसाधन न होने से ही इसे आलोचना, विरोध और अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एस.आई.आर. का मुख्य उद्देश्य मतदाताओं की सूची तैयार करना तथा उसमें संशोधन करना है। इसे करने के लिए इसके पास अपने कर्मचारी नहीं होते बल्कि किराये पर लिए जाते हैं जो सरकार के विभिन्न विभागों से आते हैं। यही कारण है कि चुनाव के समय वोटरों को जो मतपत्र मिलता है, उसमें अनेक में विसंगतियां होती हैं। अधिकतर को तो ढूंढने पर भी अपना नाम नहीं मिलता और वे वोट ही नहीं डाल पाते। 
ये कर्मचारी सरकार के किसी भी पद पर हो सकते हैं, शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या अन्य जिन्हें चुनाव कार्य के लिए नियुक्त किया जाता है। क्या वे कर्मचारी अपने विभाग में अतिरिक्त थे, यदि हां तो वे देश पर आर्थिक बोझ थे और उनकी नियुक्ति नहीं होनी थी, यदि नहीं तो फिर उनकी अनुपस्थिति में कौन उनका काम करता होगा, कोई नहीं। उनका काम अगर लोगों से संबंधित है तो नुकसान जनता का होगा। इस व्यवस्था से प्रभावित लोगों की संख्या और समय पर उनके काम न होने से देश को कितना नुकसान होता है, उसका अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है। इसका दूसरा पहलू यह है कि बीएलओ या चुनाव के समय ड्यूटी पर लगाये गए अन्य विभागों से आए कर्मचारी चुनाव कार्य को न जानने, समझने के कारण अयोग्य पाए जाने पर मानसिक तनाव और अंत में बीमारी का शिकार होकर अस्पताल पहुंच जाते हैं या निराश होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं। ऊपर से इन पर दबाव डाला जाता है कि निश्चित अवधि में काम पूरा नहीं हुआ तो कार्रवाई होगी।
चुनाव वीरों का काडर बनाएं : इस पर बात करने से पहले यह जानना दिलचस्प होगा कि हमारे चुनाव आयुक्तों, विशेषकर टी.एन. शेषन ने अपने कार्यकाल में इस बात के लिए बहुत यत्न किए थे कि चुनाव कर्मचारियों का एक अलग काडर होना चाहिए। 2010 में गोपालस्वामी समिति ने सिफारिश भी की और 22-23 में इंडियन इलेक्टोरल सर्विस बनाए जाने पर गंभीरता से विचार भी हुआ लेकिन उनकी बात कुछ न कुछ दलील देकर अनसुनी कर दी गई जिसका परिणाम है कि आज निर्वाचन आयोग की ईमानदारी पर सवाल उठने लगे हैं।
उल्लेखनीय है कि जब संविधान लागू हुआ था तो चुनाव कम होते थे और मतदाता भी कम थे, तो चुनाव कराने के लिए कुछ समय के लिए दूसरे विभागों से ले लिए जाते थे। उन कर्मचारियों का अपने काम से अनुपस्थित रहना ज़्यादा अखरता नहीं था और जनता सब्र से काम लेती थी। उस समय स्थायी काडर बनाना और लाखों लोगों को चुनाव न होने के कारण खाली बिठाकर वेतन तथा अन्य सुविधाएं देना महंगा पड़ता। राजनीतिक विरोध भी था कि स्थायी कर्मचारी होने पर राज्य सरकार और स्थानीय नेताओं का प्रभाव या दखल होना संभव नहीं था। हालांकि सत्ताधारी दल स्थानीय प्रशासन पर दबाव तो डालता ही है। वर्तमान स्थिति में वोटरों की संख्या बहुत बढ़ी है और सही व्यवस्था न होने से न जाने कितने लोग अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं। इसी तरह बहुत-से ऐसे लोग मतदाता सूची में शामिल हो जाते हैं जिन्हें राजनीतिक दल अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए किसी न किसी तरह शामिल कर लेते हैं। इस श्रेणी में वे सभी हैं जो इस देश के नागरिक ही नहीं हैं या फिर घुसपैठिए हैं जिनकी चर्चा संसद से सड़क तक होती रहती है। ऐसे लोगों की पहचान करना ही एस.आई.आर. का उद्देश्य है।
संसद में चर्चा : संसद में चुनाव सुधारों पर चर्चा होनी चाहिए और पक्ष या विपक्ष का पहला एजेंडा यह हो कि निर्वाचन आयोग का अपना काडर हो और इसके लिए अग्निवीर की तज़र् पर चुनाव वीर का काडर बने। पांच वर्ष के लिए नियुक्ति हो। स्थायी नौकरी का न प्रलोभन और न वायदा, न कोई पेंशन या अवधि पूरी होने पर कोई गुज़ारा भत्ता, न कोई अन्य सुविधा, बस प्रशिक्षण पाओ, योग्य बनो, अपनी ड्यूटी करो और पांच वर्ष बाद अपने अनुभव के आधार पर जो समझ में आए, वह काम करो। यदि आयोग चाहे तो पांच वर्ष बाद स्थायी नियुक्ति का प्रस्ताव दे सकता है जिसे मानने या स्वीकार न करने का अधिकार चुनाव वीर का हो। इन्हें नियुक्त करने के लिए पहले से ही स्थापित स्टाफ सिलेक्शन कमिश्न, यूनिवर्सिटी एम्प्लॉयमेंट ब्यूरो, विभिन्न मंत्रालयों और संस्थानों में कार्यरत विभाग जो अपने यहां सुनियोजित तरीके से नौकरी देते हैं, रोज़गार कार्यालयों में पंजीकृत युवा और इसी प्रकार अनेक तरीकों से जैसे रेलवे द्वारा अखिल भारतीय परीक्षाओं के आयोजन जैसी योजना, उद्देश्य यही कि सही उम्मीदवारों के चयन के लिए कोई अतिरिक्त व्यय न हो और निर्वाचन आयोग को ईमानदार, कर्मठ और कुशल युवा मिल सकें जो किसी राजनीतिक पार्टी से न हों।
नियुक्ति होने पर एक वर्ष का प्रशिक्षण जिसमें थ्योरी पढ़ाना, प्रैक्टिकल कराना और जब चुनाव हों तो शैडो ड्यूटी मतलब किसी की निगरानी में काम करना। उसके बाद चार साल एक प्रोफेशनल की तरह बिना केंद्र, राज्य सरकार या फिर चुनाव आयोग के ही दखल के चुनाव संबंधी सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने की ज़िम्मेदारी। 40 से 50 हज़ार तक मासिक वेतन और यह संभावना कि अखिल भारतीय स्तर पर गठित भारतीय निर्वाचन सेवा में कोई पद प्राप्त हो सकता है अन्यथा पांच वर्ष की नौकरी तो है ही जिसके पूरा होने पर 20-25 लाख की सेवा निधि, चुनाव प्रोफेशनल का सर्टिफिकेट। फिर चाहे अपना व्यवसाय करें या फिर किसी संस्थान में नौकरी। इस विशेष योग्यता के साथ कि आप एक प्रशिक्षित और अनुभवी युवा हैं। सरकार को शुरू में इसके लिए 15-20 हज़ार करोड़ का बजट रखना होगा जो बाद में घट कर बहुत कम रह जाएगा। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या अन्य किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा या रुचि के खिलाफ काम करने की बाध्यता नहीं होगी। यह काडर बनने से न केवल निष्पक्ष चुनाव कराना संभव होगा बल्कि सीआईए, एनआरसी, जनगणना कार्य जैसे उपयोगी कार्य समयबद्ध तरीके से होंगे और न ही कोई आरोप लग सकेगा कि किसी के साथ पक्षपात हुआ या सरकार ने किसी तरह का हस्तक्षेप किया। इसके अलावा जो गलत तरीके से वोटर बना है, यहां अवैध रूप से रह रहा है, उसकी पहचान कर सरकार को उचित कार्रवाई के लिए सौंपना आसान होगा। 

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