और मज़बूत होते संबंध
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय संक्षिप्त भारत यात्रा बेहद महत्त्वपूर्ण रही है। इससे पहले पुतिन दिसम्बर, 2021 में भारत आए थे। उसके बाद 2 फरवरी, 2022 में रूस और यूक्रेन में युद्ध शुरू हो गया। यह विनाशकारी युद्ध अभी भी जारी है। दोनों देशों के प्रमुखों की वार्षिक भेंट होती है, जिसमें अहम आपसी और अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर विचार-विमर्श होता है। विगत वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मास्को गए थे। इस बार 23वीं वार्षिक भेंट के लिए पुतिन का भारत आना विशेष महत्त्व रखता है।
इस समय रूस को भी अनेक तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यूरोपियन यूनियन के अनेकों ही देश रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन की सहायता कर रहे हैं। चाहे यूक्रेन अभी तक अमरीका और यूरोपियन संघ के सैन्य गठबंधन नाटो का सदस्य तो नहीं बन सका परन्तु यदि यूक्रेन इतनी लम्बी अवधि तक रूस जैसी महाशक्ति से अभी तक लड़ाई लड़ रहा है तो यह नाटो देशों और अमरीका की सहायता से ही सम्भव हो सका है। भारत के लिए भी यह स्थिति बेहद कठिन और तलवार की धार पर चलने जैसी है।
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो सोवियत यूनियन जिसमें मुख्य भागीदार रूस ही था, ने प्रत्येक मामले पर भारत के साथ खड़े होने को प्राथमिकता दी। ज़रूरतमंद भारत के लिए अनेक अवसर उपलब्ध करवाए और कश्मीर जैसे मुद्दे पर पाकिस्तान के विरुद्ध भारत का डट कर साथ दिया था। उस समय अमरीका इसलिए पाकिस्तान के पक्ष में था क्योंकि पाकिस्तान को प्रत्येक तरह की बड़ी सहायता की ज़रूरत थी। इसकी पूर्ति के लिए यह एक तरह से अमरीका की झोली में ही गिर चुका था। इस मामले पर पिछले 78 वर्षों में भारत और पाकिस्तान के आपसी युद्ध में सोवियत यूनियन ने हमेशा भारत के पक्ष में खड़े होने को प्राथमिकता दी है। यहां तक कि वर्ष 1962 में कम्यूनिस्ट देश चीन तथा भारत के बीच हुए युद्ध में भी रूस ने अपने कम्युनिस्ट साथी देश का साथ देने की बजाए एक तरह से निष्पक्ष होने का प्रमाण ही दिया था। यहीं बस नहीं, उसने भारत के मूलभूत ढांचे को स्थापित और मज़बूत करने के लिए अनेक उद्योग यहां लगाएं। इसके साथ-साथ प्रत्येक तरह का सैन्य सामान भी सोवियत यूनियन भारत को देता रहा। इस समय में उसने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं, परन्तु साथ-साथ वह इस क्षेत्र में भी भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो की भी सहायता करता रहा। आज तक भी भारत अपने सैन्य हथियारों के पुर्जों के लिए बड़ी सीमा तक रूस की ओर ही देखता रहा है। चाहे सोवियत यूनियन बिखर गया परन्तु उसका बड़ा प्रतिनिधि प्रान्त रूस ही था, जिसके नेताओं ने भारत की ओर दोस्ती और सहयोग की पहली नीति को ही जारी रखा।
व्लादिमीर पुतिन लगभग 25 वर्ष से रूस का शासन चला रहे हैं। उन्होंने भी भारत के प्रति अपनाई पहली नीति पर ही पहरा दिया और हर कठिन समय में भारत की सहायता के लिए सहायक हुए। नि:संदेह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बने वर्तमान कड़े टकराव वाले दौर में भारत के लिए यूरोपियन देशों और अमरीका के साथ-साथ रूस से भी अपने सुखद संबंधों को बनाए रखना इसकी विदेश नीति की बड़ी सफलता मानी जा सकती है। भारत और रूस दोनों देशों के प्रमुखों की बारी-बारी वार्षिक बैठक होती है, जिसकी निरन्तरता बनी रही है।
आज अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इसलिए भारत से नाराज़ हैं, क्योंकि भारत ने अपनी ऊर्जा पूर्ति के लिए विगत वर्षों में रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदा है। इस कारण ट्रम्प प्रशासन ने भारत से अपने देश अमरीका को निर्यात होने वाली वस्तुओं पर भारी टैक्स लगाने की घोषणा की है और वह आज भी प्रतिदिन भारत को अनेक तरह की धमकियां दे रहा है परन्तु इसके बावजूद भारत ने रूस के सहयोग और मित्रता के प्रति अपनी स्पष्ट नीति पर लगातार पहरा दिया है। भारत को रूस के साथ आपसी व्यापार में असंतुलन बेहद खटकता रहा है। इसलिए पुतिन ने अपनी यात्रा के दौरान किए बड़े समझौतों में इस व्यापारिक असंतुलन को योजनाबद्ध ढंग से कम करने का यत्न ज़रूर किया है। दोनों देशों ने आपसी व्यापार का 2030 तक 100 अरब डॉलर अर्थात 9000 अरब रुपये का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें सुरक्षा,ऊर्जा और आपसी व्यापार की धाराओं पर विस्तारपूर्वक विचार किया गया है।
नि:संदेह ऐसा आपसी मेल-मिलाप दोनों देशों में विगत 78 वर्षों से चली आ रही सांझ को और भी मज़बूत करने में सहायक होगा। इसलिए रूस के राष्ट्रपति का यह संक्षिप्त दौरा ऐतिहासिक बना दिखाई देता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

