विजय बरसे  झोंपड़पट्टी फुटबॉल के जन्म-दाता

2001 में शनिवार की दोपहर- विजय बरसे काम से जल्दी घर लौट रहे थे कि अचानक बारिश होने लगी। बरसे ने एक पेड़ के नीचे शरण ली और उन्होंने वह देखा जिसने उनकी ही नहीं बल्कि हजारों बच्चों की जिंदगी बदल दी। पास के स्लम से कुछ बच्चे टूटी हुई बाल्टी को इस तरह किक कर रहे थे जैसे फुटबॉल खेलने का प्रयास कर रहे हों। नागपुर के हिस्लॉप कॉलेज के मैदान पर भी बरसे इन्हीं लड़कों को अक्सर देखते थे। तब ये किसी की जेब काटने के बाद पैसे का बंटवारा कर रहे होते या बीड़ी शेयर कर रहे होते। बरसे बताते हैं, ‘मैंने इन लड़कों की खेल में दिलचस्पी को देखा और सोचा कि कम से कम जब तक यह फुटबॉल खेल रहे हैं तब तक किसी की जेब नहीं काटेंगे और न ही धूम्रपान करेंगे।’बरसे इन लड़कों के लिए मैच का आयोजन करना चाहते थे, लेकिन कॉलेज का कोई लड़का इनके साथ खेलना नहीं चाहता था। वह कहते हैं, ‘सामाजिक विभाजन बड़ी समस्या थी। तब मैंने अपने एक पत्रकार दोस्त से अखबार में लेख लिखने के लिए कहा कि मैं जिला झोपड़पट्टी फुटबॉल प्रतियोगिता शुरू करने जा रहा हूं जिसमें सिर्फ स्लम की टीमें ही भाग लेंगी।’ इस तरह से बिन साधन वाले बच्चों के लिए झोपड़पट्टी फुटबॉल या स्लम सॉकर (जैसा कि आज इसे जाना जाता है) के विचार ने जन्म लिया। बरसे के इस प्रयास ने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक नागराज मंजुले को इतना प्रेरित किया कि वह बरसे पर फिल्म बना रहे हैं। बरसे की भूमिका अमिताभ बच्चन करेंगे।नागपुर में भोकारा गांव के रहने वाले बरसे कहते हैं, ‘मैं स्पोर्ट्स टीचर हूं, लेकिन मैं फुटबॉल के विकास को प्रोत्साहित नहीं कर रहा हूं। मैं फुटबॉल के जरिये विकास को प्रोत्साहित कर रहा हूं।’ 2001 में बरसे नागपुर के हिस्लॉप कॉलेज में स्पोर्ट्स टीचर थे। ‘खेल मैदान बचाओ’ आन्दोलन के दौरान उन्होंने साइकिल रैलियों का आयोजन किया। उनमें हमेशा से ही सामाजिक कार्य व नेतृत्व के लिए जुनून था। शायद यह उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है, जो पुलिस कांस्टेबल थे और न्याय के लिए अपने सीनियर्स से भी टकरा जाते थे। उनकी मूल योजना पूरे जिले से 32 टीमें पहली प्रतियोगिता के लिए लेने की थी, लेकिन 128 टीमों ने पंजीकरण किया। इन टीमों ने पहले कभी प्रोफेशनल फुटबॉल नहीं खेली थी और उन्हें नियम भी नहीं मालूम थे। इसलिए केवल एक नियम ही रखा गया- अगर फुटबॉल मैदान से बाहर चली जाये या कोई शारीरिक चोट पहुंचाता है तो खिलाड़ी को पूरा मैच बाहर बैठना पड़ेगा। खिलाड़ियों के पास यूनिफार्म भी नहीं थी। इसलिए बरसे ने एक टीम को टी-शर्ट के साथ और दूसरी टीम को बिना टी-शर्ट के खिलाया। स्थानीय राजनेताओं ने विजयी टीम को सम्मानित किया और उनकी तस्वीर अखबारों में आयी। पराजित टीम को बरसे ने फुटबॉल गिफ्ट की। उनका तर्क? ‘कम से कम जब तक फुटबॉल फटेगी नहीं वह उससे खेलते रहेंगे। जीतने वाली टीम को तो खैर खेलते ही रहना था।’ इस प्रकार स्लम सॉकर प्रतियोगिताएं आरम्भ हुईं, जिनका आयोजन अब देश के सभी राज्यों में होता है।