जलियांवाला बाग में शहीद ऊधम सिंह की छबील का अस्तित्व बनी पहेली

अमृतसर, 10 मार्च (सुरिन्द्र कोछड़) : राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक स्मारक की हैसियत रखने वाले विश्व प्रसिद्ध जलियांवाला बाग स्मारक में औसतन प्रतिदिन 80 हज़ार के लगभग सैलानी तथा स्थानीय लोग पहुंच रहे हैं। जिनको बाग में 13 अप्रैल, 1919 को खूनी आप्रेशन वाले दिन शहीद ऊधम सिंह द्वारा लगाई छबील वाले स्थान बारे किसी प्रकार की कोई जानकारी न होने के कारण वह उक्त स्थान को अनदेखा करके आगे निकल जाते हैं। इसी प्रकार बाग में मौजूद एक पुलिस अधिकारी की मां की समाधि को लेकर भी पर्यटकों में भ्रम बना हुआ है।वर्णनीय है कि जलियांवाला बाग स्मारक के अंदर विरासती मार्ग द्वारा दाखिल होने पर तंग गली में से निकलते ही सबसे पहले वह स्थान मौजूद है जहां 13 अप्रैल 1919 को वैसाखी वाले दिन जुलूस में शामिल लोगों को पानी पिलाने के लिए छबील लगाई गई थी। जब हत्यारा ब्रिगेडियर जनरल रिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर (आर.ई.एच. डायर) अपनी सेना के साथ बाग में दाखिल हुआ था तो उस समय इसी छबील के स्थान पर स. ऊधम सिंह तथा उसके साथी लोगों में पानी बांट रहे थे। डायर की सेना द्वारा उक्त छबील को वहां से खदेड़ने के उपरान्त निर्दोष लोगों पर गोलियां चलाने की कार्रवाई शुरू की गई। इस तथ्य की पुष्टि करते शहीद ऊधम सिंह भगत सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन के पंजाब अध्यक्ष इंजीनियर सुखचैन सिंह लायलपुरी ने बताया कि जलियांवाला बाग को स्मारक के रूप में निर्मित किए जाने के बाद छबील वाले स्थान पर खूबसूरत फव्वारा लगा दिया गया। उन्होंने कहा कि इस बारे में जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट के पदाधिकारियों तथा अन्यों को जानकारी न होने के कारण उक्त यादगार को अनदेखा किया जा रहा है।
इसी प्रकार बाग की दक्षिणी तरफ मौजूद अंग्रेजी राज्य के समय के पंजाब पुलिस के पहले इंस्पैक्टर जनरल स. संत प्रकाश सिंह की मां की समाधि को पर्यटक तथा स्थानीय लोग जलियांवाला बाग के शहीदों के साथ संबंधित स्थान समझ कर नतमस्तक हो रहे हैं। इस स्मारक पर अंग्रेज़ी सेना द्वारा निहत्थे लोगों पर चलाई गई गोलियों के निशान तो मौजूद हैं, परन्तु स्मारक के साथ संबंधित इतिहास बारे कोई जानकारी दर्ज नहीं की गई है। जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट को इतिहास के जानकारों द्वारा उक्त दोनों स्मारकों के साथ संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि करवाकर प्रमाणिक जानकारी यहां दर्ज करवानी चाहिए, ताकि यह स्थान अनदेखे न रहें तथा लोग इनके सही इतिहास से परिचित हो सकें।जल्लेवाल से बना जलियांवाला बाग : वर्णनीय है कि वर्ष 1919 से पहले जलियांवाला बाग कोई खूबसूरत तथा सनमानजनक बाग नहीं था, अपितु 229 मीटर लम्बा तथा 183 मीटर चौड़ा यह एक बेतरतीब जैसी भूमि का टुकड़ा चौधरी गुलाब राय निवासी गांव माहिलपुर, ज़िला होशियारपुर के पुत्र स. हिम्मत सिंह जल्ला की जायदाद थी। स. हिम्मत सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह के वकील राजा जसवंत सिंह नाभा का कर्मचारी था तथा वर्ष 1812 में से महाराजा रणजीत सिंह ने उसको अपना वजीर बना लिया। स. हिम्मत सिंह जल्ला के नाम से इस स्थान का नाम जलियांवाला बाग प्रसिद्ध हो गया।