‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ क्यों कहलाए राम ?

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को रामनवमी का त्यौहार भारतवर्ष में अपार श्रद्धा, भक्ति व उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में उत्सवों का विशेष आयोजन होता है, जिनमें भाग लेने के लिए देशभर से हज़ारों भक्तगण अयोध्या पहुंच सरयू नदी के पवित्र जल से स्नान कर पंचकोसी की परिक्रमा करते हैं। समूची अयोध्या नगरी इस दिन पूरी तरह राममय नजर आती है और हर तरफ भजन-कीर्तनों तथा अखण्ड रामायण के पाठ की गूंज सुनाई पड़ती है। देशभर  में अन्य स्थानों पर भी जगह-जगह इस दिन श्रद्धापूर्वक हवन, व्रत, उपवास, यज्ञ, दान-पुण्य आदि विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। विभिन्न हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि श्रीराम का जन्म नवरात्र के अवसर पर नवदुर्गा के पाठ के समापन के पश्चात् हुआ था। इसीलिए उनके शरीर में मां दुर्गा की नवम् शक्ति जागृत थी। मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या के महाराजा दशरथ की पटरानी महारानी कौशल्या ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जन्म दिया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, ‘भगवान श्रीराम चन्द्रमा के समान अति सुंदर, समुद्र के समान गंभीर और पृथ्वी के समान अत्यंत धैर्यवान थे। वह इतने शील सम्पन्न थे कि दुखों के आवेश में जीने के बावजूद कभी किसी को कटु वचन नहीं बोलते थे। वह अपने माता-पिता, गुरुजनों, भाइयों, सेवकों, प्रजाजनों अर्थात् हर किसी के प्रति अपने स्नेहपूर्ण दायित्वों का निर्वाह करते। माता-पिता के प्रति कर्त्तव्य-पालन एवं आज्ञा-पालन की भावना तो उनमें कूट-कूटकर भरी थी। उनकी कठोर से कठोर आज्ञा के पालन के लिए भी वह हर समय तत्पर रहते।’
श्रीराम का चरित्र बेहद उदार प्रवृत्ति का था। उन्होंने अहिल्या का उद्धार किया, जिसे उसके पति ने देवराज इन्द्र द्वारा छलपूर्वक उसका शीलभंग किए जाने के कारण पतित घोषित कर पत्थर की मूर्ति बना दिया था। जिस अहिल्या को निर्दोष होते हुए भी किसी ने नहीं अपनाया, उसे भगवान श्रीराम ने अपनी छत्रछाया प्रदान की। लोगों को गंगा नदी पार कराने वाले एक मामूली से नाविक केवट की अपने प्रति अपार श्रद्धा व भक्ति से प्रभावित होकर भगवान श्रीराम ने उसे अपने छोटे भाई का दर्जा दिया और उसे मोक्ष प्रदान किया। अपनी परम भक्त भीलनी के झूठे बेर खाकर शबरी का कल्याण किया। महारानी केकैयी द्वारा महाराजा दशरथ से राम को 14 वर्ष का वनवास और भरत को राजगद्दी सौंपने का वर मांगे जाने पर  दशरथ अजीब धर्म संकट में फंस गए। जब श्री राम को इस बात का पता चला तो उन्होंने खुशी-खुशी 14 वर्ष का वनवास भोगने तथा छोटे भाई भरत को राजगद्दी सौंपने की तैयारी कर ली।  रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटे जाने की घटना हुई। उसी घटना के कारण वहां खर-दूषण सहित 14000 राक्षस राम-लक्ष्मण के हाथों मारे गए। यहीं से श्री राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में लंका का राजा रावण माता सीता का अपहरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया। इसी दौरान उनकी भेंट अनन्य भक्त हनुमान से हुई, जिन्होंने राम-लक्ष्मण को वानरराज बाली के छोटे भाई सुग्रीव से मिलाया, जो उस समय बाली के भय से यहां-वहां छिपता फिर रहा था। श्री राम ने बाली का वध करके सुग्रीव तथा बाली के पुत्र अंगद को किष्किंधा का शासन सौंपा और उसके बाद सुग्रीव की वानरसेना के नेतृत्व में लंका पर आक्रमण कर देवताओं पर भी विजय पाने वाले महाप्रतापी, महाबली, महापंडित तथा भगवान शिव के महा उपासक लंका नरेश राक्षसराज रावण का वध करके सीता जी को उसके बंधन से मुक्त कराया। उन्होंने लंका पर खुद अपना अधिकार न जमाकर लंका का शासन रावण के छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया तथा वनवास की अवधि समाप्त होने पर लक्ष्मण, सीता जी व हनुमान सहित अयोध्या लौट आए। मर्यादा-पुरुषोत्तम श्री राम में सभी के प्रति प्रेम की अगाध भावना कूट-कूट कर भरी थी। उनकी प्रजा-वात्सल्यता, न्यायप्रियता और सत्यता के कारण ही उनके शासन को आज भी ‘आदर्श’ शासन की संज्ञा दी जाती है। आज भी अच्छे शासन को ‘राम राज्य’ कहकर परिभाषित किया जाता है। ‘रामराज्य’ यानी सुख, शांति एवं न्याय का राजय। रामनवमी का पर्व वास्तव में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की गुरु सेवा, माता-पिता की सेवा व आज्ञापालन, जात-पात के भेदभाव को मिटाने, क्षमाशीलता, भ्रातृप्रेम, पत्नीव्रता, न्यायप्रियता आदि विभिन्न महान् आदर्शों एवं गुणों को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है।