सम्मानित नागरिक हैं ‘दिव्यांग’

अंग विहीन व्यक्ति को पहले अपंग या अपाहिज की संज्ञा दी जाती थी, जिससे उन्हें अपमान और लांछन का सा एहसास होता था। यह समाज के अंग विहीन व्यक्तियों के प्रति बदलते और सुधरते नज़रिये का ही संकेत है कि अब उन्हें ‘दिव्यांग’ की प्रतिष्ठापूर्ण संज्ञा दी जाने लगी है, ‘दिव्यांग’ शब्द से दिव्यता की अनुभूति होती है। वैसे प्रकृति ने हर व्यक्ति को दिव्य गुणों से नवाज़ा है और दिव्यांग भी इसका अपवाद नहीं है। हमारा मानना है कि सरकार और समाज को दिव्यांगों को जीवन सामान्य रूप से व्यतीत करने में मदद देने के लिए सार्वजनिक सुविधाएं उन अनुरूप ढालकर उपलब्ध करानी चाहिएं ताकि उन्हें शारीरिक और मानसिक कष्टों से न जूझना पड़े। आखिर दिव्यांग भी हमारे देश और समाज के सम्मानित नागरिक हैं।

—तुषार मंगला
महर्षि मारकंडेश्वर यूनिवर्सिटी
मुलाना (अम्बाला)