हमारी ऊर्जा का रखवाला रुद्राक्ष

भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है । रुद्राक्ष शब्द संस्कृत भाषा से आया है । यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, जो रुद्र+आक्ष है । इसमें रुद्र भगवान शिव के अनेक नामों में से एक है और आक्ष का अर्थ आँख के आँसू । पुराणों में कहा गया है कि रुद्राक्ष भगवान शिव के आँख के आँसू से उत्पन्न हुआ है । कहा जाता है कि सती की मृत्यु पर भगवान शिव को बहुत दुख हुआ और उनके आँसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई । कुछ अन्य पुराणों में यह भी लिखा है कि रुद्राक्ष भगवान शिव के शरीर से गिरी पसीने की बूंदों से उत्पन्न हुआ है । कहा तो यहाँ तक जाता है कि रुद्राक्ष स्वयं भगवान शिव ही हैं तथा रुद्राक्ष के दाने भगवान शिव के प्रिय आभूषण हैं । हिन्दू धर्म के विभिन्न ग्रंथों में भी रुद्राक्ष का उल्लेख मिलता है । रुद्राक्ष की खासियत यह है कि इसमें एक अनोखा स्पंदन होता है जो आपके लिए आपकी ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएँ आपको परेशान नहीं कर पातीं । साधु-सन्यासी लगातार घूमते रहते हैं । ऐसे में बदली जगह और स्थितियों में उनको परेशानी हो सकती है । साधु-सन्ंयासियों का मानना है कि एक ही स्थान पर दोबारा नहीं जाना चाहिए इसलिए वे हमेशा रुद्राक्ष पहने रहते हैं । रुद्राक्ष के सम्बन्ध में एक बात और महत्वपूर्ण है । खुले में जंगल में रहने वाले साधु सन्यासी अनजाने स्त्रोत का पानी नहीं पीते क्योंकि अक्सर किसी जहरीली गैस या अन्य किसी वजह से वह पानी जहरीला भी हो सकता है । रुद्राक्ष की मदद से यह जाना जा सकता है कि वह पानी पीने लायक है कि नहीं । रुद्राक्ष को पानीके ऊपर पकड़कर रखने से अगर रुद्राक्ष खुद-ब-खुद घड़ी की दिशा में घूमने लगे तो इसका मतलब है कि वह पानी पीने लायक है । अगर पानी जहरीला हुआ तो रुद्राक्ष घड़ी की उलटी दिशा में घूमेगा ।
रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है तथा निर्भय होकर कहीं भी भ्रमण कर सकता है । इसे पहनने से दिल की धड़कन तथा रक्तचाप नियंत्रण में रहता है । यहाँ तक कहा जाता है कि रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति  को  देर से बुढ़ापा आता है । ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है । असली रत्न अत्यधिक महँगा होने के कारण हर व्यक्ति उसे धारण नहीं कर सकता है । चंद्र ग्रह जनित कोई भी रोग या कष्ट हो तो रुद्राक्ष धारण करने से बिल्कुल दूर हो जाता है । रुद्राक्ष सिद्धिदायक, पापनाशक, पुण्यवर्द्धक, रोग नाशक तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है । शिव पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप कराने वाला मुनष्य शिव रूप हो जाता है । रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर दस मुखी तक मिलता है । आजकल 15 से 21 मुखी रुद्राक्ष भी मिलने लगे हैं । यह दुर्लभ होने के साथ महँगे भी होते हैं । रुद्राक्ष  के प्रकार  के  नाम  की  पहचान रुद्राक्ष में होने वाली धार की संख्या से की जाती है । उदाहरण के लिए मात्र एक धार होने वाला रुद्राक्ष एक मुखी कहलाता है । दस धार वाला रुद्राक्ष दस मुखी कहलाता है । कहा जाता है कि नेपाल में एक से 21 मुखी तक के रुद्राक्ष भी मिलते हैं वहाँ 27 मुखी रुद्राक्ष भी पाया गया है ।
 वैसे यह बड़ा दुर्लभ होता है । असली रुद्राक्ष पहचान करके धारण करने से ही उसका फल प्राप्त होता है । रुद्राक्ष पहनने में वैसे तो किसी विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं है लेकिन जिस प्रकार दैवीय शक्तियों को हम पवित्र वातावरण में रखनेका प्रयास करते  हैं  उसी प्रकार रुद्राक्ष पहनकर शुचिता बरती जाए तो उत्तम फल प्राप्त होता है । अत: रुद्राक्ष को रात में उतारकर रख देना चाहिए और प्रात: स्नान से निवृत्त होकर मंत्र जाप करके धारण करना चाहिए । दैवीय शक्तियों में लिंग भेद नहीं होता है । रुद्राक्ष में चूँकि दैवीय शक्तियाँ विद्यमान होती हैं अत: स्त्रियाँ भी इसे धारण कर सकती हैं । गौरी शंकर रुद्राक्ष और गौरी गणेश रुद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं। इनमें से पहला सफल वैवाहिक जीवन के लिए और दूसरा सन्तान सुख के लिए है । 

- रेणु जैन