बसंत का आना.....

नहीं,  रामू काका आज मेरी तबीयत ठीक नहीं। बाबू असीम को यहां आए अभी थोड़ा ही अरसा हुआ था । वे सुबह-शाम अपने बंगले में टहल लेते थे । दफ्तर जाने का समय  हो जाने के बाबजूद वे अभी  उठे नहीं थे । रामू काका  ने उनके शरीर को  छूकर देखा तो शरीर एक दम गर्म लगा । रामू काका बोले, बाबू जी, आपको तो तेज बुखार है  और यहां पर कोई डाक्टर भी नहीं । मेरे बाबा जी ने मुझे कई नुस्खे बताए थे ।  उन्हें  ही अजमा कर देख लेते हैं ।  तभी रामू काका ने तुलसी के पत्ते, काली मिर्च मलट्ठी डाल कर थोड़ी चाय पीने को दी चाय पीकर असीम बाबू को थोड़ी-बहुत राहत मिली। मलेरिया बुखार था। अत: घर में रखी दवाई भी उसने  ले ली।  करीब 4-5 दिन के बाद असीम बाबू का बुखार उतर गया । असीम को अपने गांव से 400 किलोमीटर दूर उस छोटे से नीम  पहाड़ी इलाके में नौकरी मिली । उधर घर में उसके बूढ़े माता-पिता थे । वह अभी उन्हें अपने साथ भी नहीं रख सकता था। कई महीने तो इस नए स्थान पर उसका मन नहीं लगा। अपने मां-बाप को याद करते-करते वह कार्यालय में कार्य में व्यस्त रहता।  उसका समय ऐसे ही बीत जाता । असीम बाबू अन्तर्मुखी था । इसलिए अड़ोस-पड़ोस में वह किसी के पास न उठता-बैठता था। बस, रामू के साथ बतियाते प्रसन्नचित रहता ।  दीवाली पर दो सप्ताह की छुट्टियॉं लेकर असीम बाबू ने अपने गांव जाने का फैसला किया । गॉंव प्रस्थान करने से पूर्व  वह सोच में डूबा हुआ था । रामू ने उनकी विचार तंद्रा को भंग करते हुए पूछ ही लिया ‘बाबू जी, क्या बात है लोग अपने घर जाते खुश होते हैं व एक आप हैं जो किसी गहरी सोच में डूबे हुए हैं ।’ असीम बाबू क्यों बतलाता? उसने कहा,  रामू काका, ऐसी कोई बात  नहीं  ।तो फिर बाबू जी आप गुम-सुम क्यों हो? रामू काका मैं सोच रहा हूं मैं पहली बार अपने मां-बाप के पास जा रहा हूं तो उनके लिए क्या लेकर जाऊं ।  अरे बाबूजी ! सिर्फ  इतनी सी बात ? उन्हें आपसे बढ़ कर और क्यां चाहिए । औलाद ही मां-बाप की सबसे बड़ी सम्पत्ति होती है। खैर, फिर भी आप उनके लिए फल, मिठाई और वस्त्र नहीं लेते जाइए ।  रामू काका, फल अपने बंगले से ले जाता  हॅं । किंतु  वस्त्र  नहीं बाबू जी, रास्ते में शिमला जो पड़ता है । वहीं से वस्त्र  लीजिए ।  ...ठीक है । .. अच्छा । रामू काका, पीछे से अपना ख्याल रखना । ...हां, तुम भी अपने गांव जा आओ । ...बाबू जी, मैं वहां जाकर क्या करुंगा ? नंदू, मेरा बेटा बहुत ही मन्नंतों से लिया था । वह कुसंगति में फंस गया है । वह हमारे कहने में नहीं लम्बी व थकावट यात्रा के पश्चात् असीम अपने मां-बाप के पास गांव में पहुंचा। उनके चरण-स्पर्श किए । मां ने बेटे को छाती से लगाकर बहुत प्यार किया । दीपावली का दिन था । घर में प्रसन्नता का माहौल था। असीम घर की सजावट में व्यस्त था। लक्ष्मी मां की पूजा हेतु उसने सामग्री इकट्ठी की, तभी उनके पिता चरण दास ने असीम को बताया कि आज उनका मित्र अशोक परिवार सहित हमारे घर तुम्हारे विवाह संबंधी बातचीत करने आ रहा है । ‘असीम यह बात सुनकर हैरान रह गया।’ उसने कहा, पिता जी अभी मैं चार-पांच वर्ष विवाह नहीं करवाऊंगा। मैंने अभी और पढ़ाई करनी है’ । चरण दास कारण बताते बोले ‘बेटा! बहुत पढ़ लिया। अब तुम्हारी मां से भी घर का काम-काज नहीं होता। वह भी जल्दी बहू लाने के लिए तत्पर है । दोपहर को अशोक अपनी पत्नी एवं  बहन संग चरणदास के घर पंहुच गए। दोनों परिवारों में औपचारिक बातचीत हुई । चायपान-खान-पान के पश्चात्  असीम की विवाह संबंधी बातचीत शुरु हुई। पहली ही नज़र में अशोक के परिवार  को असीम पसंद आ गया। जब लड़की दिखलाने की तारीख को निश्चित किया जाने लगा तो असीम ने कहा, इसकी  कोई  आवश्यकता नहीं । 

-वीरेन्द्र शर्मा 
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