प्रवासियों को ‘घर जाओ घर जाओ’ कहना इटली की उच्च अदालत के अनुसार है नस्लवाद

मिलान (इटली), 16 जुलाई (इन्द्रजीत सिंह लुगाणा) : नस्ली भेद-भाव पूरी दुनिया में प्रवास कर रहे प्रवासियों के लिए एक आम बात है और तो और अमरीका और कनाडा जैसे देशों में भी प्रवासियों से नस्ली भेद-भाव होता है जिसकी अनेकों उदाहरणें हैं परन्तु किसी भी न्यायपालिका ने इस को सीधे रूप में कबूलने में सावधानी ही प्रयोग की है। पूरे यूरोप में नस्लवाद हावी है जिसके कारण यूरोपियन देशों में बाहर से आ रहे विदेशियों को इस भेद-भाव के कारण कई तरह की नमोशी झेलनी पड़ रही है। इटली में भी नस्ली भेद-भाव के कारण अन्य देशों के नागरिकों के साथ-साथ भारतीय लोग भी नस्ली भेद-भाव का शिकार होते हैं। नस्ली भेद-भाव के कारण ही प्रवासियों को ‘गो बैक होम’ अर्थात् वापिस घर जाओ सुनने के साथ कई तरह की मानसिक पीड़ा के साथ शारीरिक पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। इटली की राजधानी रोम की एक उच्च अदालत ‘कोर्ट आफ कासेशन’ ने इस मामले पर एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा है कि प्रवासियों को ‘घर जाने’ के बारे में कहना नस्लवाद है जिसको रोकना चाहिए। उच्च अदालत ने कहा कि गैर-यूरोपियन लोगों को देश छोड़ने के लिए कहना कानून के अनुसार नस्ली भेद-भाव है चाहे ऐसे केसों में जातिगत झुकाव स्पष्ट तौर पर प्रयोग नहीं किये जाते। ‘कोर्ट आफ कासेशन’ में आए एक मामले में एक 40 वर्षीय व्यक्ति ने उसको मिली सज़ा में कमी की अपील की है जोकि किसी अन्य व्यक्ति को चोट मारने के कारण संबंधित व्यक्ति को मिली व इस लड़ाई को नस्ली हमले के तौर पर देखते हुए अदालत ने सज़ा में वृद्धि की।