चुनावी प्रचार के आर्थिक पैंतरे

देश के आम चुनाव अगले वर्ष के पूर्वार्द्ध में होने जा रहे हैं। मोदी जी की पहली शासन पारी में एक बरस से भी कम समय रह गया है। स्पष्ट है कि अब भाजपा गठबंधन मोदी के नेतृत्व में अपने लिए एक और शासन पारी की तलाश में है। कहा जा रहा है कि देश के अच्छे दिनों की नींव इस शासन पारी में रख दी गई है। अब आदमी के अच्छे दिन, रोटी, कपड़े और मकान की इच्छा, हर हाथ रोज़गार और समावेशी विकास सब सपने अगली पारी को पूरे हो जाएंगे। यह भी कहा जा रहा है कि मोदी जी के सब अभियान ‘मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया’ ‘स्टार्ट अप इंडिया’, ‘स्वच्छ भारत’ सन् 2022 तक अपना फल दिखाना शुरू कर देंगे। तब तक भारत एक स्वत: स्फू र्त अर्थ-व्यवस्था बन जाएगा और इसकी गणना विश्व के बाहुबलि देशों में होने लगेगी। अभी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने ताज़ा बयान में कहा है ‘हम सरकार धनाढ्यों और सामन्तो के बल नहीं बनाएंगे, बल्कि देश का आम आदमी हमें अपनी मत शक्ति से विजयश्री दिलाएगा।’ इसके भले के लिए इस सरकार ने इन पांच बरसों में काम किया है।स्पष्ट है कि अपनी शासनावधि के इस पारी के आखिरी चुनाव प्रचार वर्ष में मोदी सरकार अपनी छवि सम्पन्न हितैषी नहीं बल्कि आम जन-हितैषी बनाना चाहती है। अपनी चौथे बजट से वित्त मंत्री अरुण जेतली ने इसे किसान केन्द्रित बजट बनाने का दावा किया था। उनका यह दावा इस घोषणा पर आधारित है कि उन्होंने किसानों की फसलों की खरीद कीमत लागत से डेढ़ गुणा घोषित कर दी। इस प्रकार अपने भाषणों  में जिनकी शुरुआत पंजाब की मलोट रैली से हो चुकी है कि मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने स्वामीनाथन कमेटी के सबसे बड़े परामर्श अर्थात् किसानों को उनकी फसल का मेहनत का उचित मूल्य देना स्वीकार कर लिया है। अभी मोदी सरकार ने अपनी खरीफ के लिए निम्नतम समर्थन कीमतों की घोषणा करते हुए धान और गेहूं के लिए दो सौ रुपए प्रति क्विंटल  की वृद्धि की है। जबकि मनमोहन सरकार ने अपने चुनाव पूर्व अंतिम वर्ष में अधिक से अधिक 155 रुपए प्रति क्विंटल  की वृद्धि की थी। सरकार का कहना है कि उन्होंने किसानों के आर्थिक भले के लिए अपने ऊपर तैंतीस हज़ार करोड़ रुपए का आर्थिक बोझ डाल लिया है। इससे चाहे सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ जाएगा, लेकिन किसानों का भला हो जाएगा। इस कृषि प्रधान देश में किसान एक बहुत बड़ा वोट बैंक है। अगर उन्हें लुभा लिया जाए, तो भाजपा आसानी से एक और विजय प्राप्त कर लेगी। इसीलिए मोदी जी भी जगह-जगह अपनी चुनावी रैलियों में अपनी सरकार द्वारा किसानों की फसल की एम.एस.पी. में बड़ी वृद्धि करना अपना एक ऐसा कर्म बता रहे हैं, जो किसानों की आय को चार वर्ष में दुगना कर देगा। लेकिन मोदी की किसानों की फसल खरीद कीमत वृद्धि को विपक्ष का गठबंधन, 172 किसान संगठन अथवा पंजाब सरकार ने एक प्रभावशाली कल्याण कदम मानने से इन्कार कर दिया है। बल्कि किसान संगठनों ने तो इसे एक छल करार देते हुए कहा कि डेढ़ गुणा कीमत देने के लिए जिस आधार लागत को गिना गया है, उसमें किसान के कुछ ज़रूरी खर्च तो गिने ही नहीं गए। किसान की ज़मीन और इसके या परिवार के श्रम का निहित मूल्य जिसे सी-2 लागत कहा जाता है, उसे गिना ही नहीं गया। बल्कि अन्य लागत भी दो बरस पहले ही मंडी कीमत पर गिनी जा रही हैं, जबकि इस बीच इस सबकी कीमतें बढ़ गई हैं। इस प्रकार किसानों की औसत आय में वृद्धि लगभग बारह प्रतिशत हुई है, पचास प्रतिशत नहीं, जैसी घोषणा है। इसके अतिरिक्त, किसान नेताओं, विपक्ष और कृषि विचारकों का कहना है कि स्वामीनाथन कमेटी की सब सिफारिशों को समूचे रूप से लागू किये बिना, फसल कीमतों की यह वृद्धि उनके काम की नहीं। जब तक कृषि लागत घटती रही और उसके मूलभूत ढांचे में सुधार के साथ किसान की भूमि की प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में वृद्धि नहीं होती, तब तक उसके लिए कृषि घाटे का सौदा रहेगी और उसे अपनी मौलिक ज़रूरतें पूरी करने अथवा कृषि कर्मचारी रखने के लिए और कज़र् उठाना पड़ेगा। कज़र् का यह दुष्चक्र किसान को आत्म-हत्या के लिए मजबूर करता है। इसके लिए सरकारों द्वारा कज़र् माफी उसकी बड़ी ज़रूरत बन गई है। चाहे पंजाब सहित कई राज्यों की सरकारों ने कज़र् माफी की घोषणा की है। पंजाब की घोषणा दो लाख रुपए तक की कज़र् माफी की थी, और इससे साढ़े दस लाख किसानों को लाभ मिलना। लेकिन अभी तक चंद हज़ार किसानों को ही यह लाभ मिल सका है, लेकिन इससे सहकारी बैंकों का ढांचा भरहरा गया है। अभी केन्द्र न तो राज्यों को इस कज़र् माफी के लिए मदद देने को तैयार है, और न ही किसानों के लिए कोई अखिल भारतीय कज़र् माफी योजना बनानी चाहता है। इसलिए किसान कल्याण की इन एकांगी योजनाओं के इस चुनावी आर्थिक पैंतरे से न केन्द्र को और न ही राज्य सरकारों को कज़र् माफी की इस घोषणाओं से कोई इच्छित लाभ हो रहा है। अपनी बेहतर ज़िन्दगी के लिए किसान इससे कहीं अधिक अपनी सरकारों से मांग रहे हैं, जो उन्हें अभी मिलता नज़र नहीं आता।