आम आदमी को आज तक भी नहीं मिली आज़ादी 


तीन सालों में तीन सौ से अधिक किसानों ने आत्म-हत्याएं की हैं जिनमें उत्तराखण्ड में आत्महत्या करने वाले  किसान भी शामिल हैं। लेकिन किसान को खुशहाली की आज़ादी दिलाने के बजाय केन्द्र व राज्य की अधिकांश सरकारें सत्ता की कुर्सी बचाये रखने के लिए दलबदल की राजनीति को हवा देकर और प्रलोभन की राजनीति कराकर लोकतन्त्र के साथ ऐसा खिलवाड़ कर रही है। जो देश के लिए ही नहीं, समाज के लिए भी नासूर बनता जा रहा है। सबसे पहले उत्तराखण्ड से इसकी पहल उस समय हुई जब विधायकों की खरीद फरोख्त करके कांग्रेस की हरीश रावत सरकार को जबरन बर्खास्त किया गया। न्यायालय के सहारे कुर्सी बचाने में कामयाब हुए हरीश रावत ईवीएम मशीनों के जरिये मात खा गए। यही स्थिति मणिपुर,गोवा ,बिहार समेत अनेक राज्यों में हुई जहां येनकेन प्रकारेण सत्ता हासिल करने के लिए केन्द्र के सत्तारूढ़ दल ने हर वह हथकण्डा अपनाया जो लोकतन्त्र को कुचलने वाला था। एक तरफ  किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं दूसरी ओर सत्ता की घिनौनी राजनीति ने देश के सामने लोकतन्त्र की सुरक्षा को लेकर ही सवाल खड़े कर दिये हैं। गत वर्ष बुलन्दशहर जिले में अपनी निजी कार में यात्रा कर रहे एक परिवार को सड़क से अगवाकर बन्धक बनाकर बदमाशों ने परिजनों के सामने ही मां बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और अन्य परिजनों के हाथ पैर बांधकर बुरी तरह पिटाई की। लेकिन बार-बार फोन करने पर भी आमजन की रक्षा का दम्भ भरने वाली पुलिस तत्काल मौके पर नहीं पहुंची। ऐसी ही एक घटना उत्तर-प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई तो कश्मीर में तिरंगा जलाने और पाकिस्तानी झण्डा फहराने की घटनाएं देश की आज़ादी को मुंह चिढ़ा रही हैं। देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जो कभी एक के बदले दस सिर काटकर लाने की चुनौती अपनी चुनावी जनसभाओं में दे रहे थे वे प्रधानमन्त्री के कुर्सी पर बैठने के बाद ऐसा कुछ नहीं कर पाये जिस पर गर्व किया जा सके। अलबत्ता चीन व पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश जहां हमें आंखें दिखा रहे हैं वही वर्षों तक मित्र रहा नेपाल आज हमसे नाराज हुआ बैठा है। जिसका असर सीमाओं पर देखने को मिलता है। ऐसे में आम जन की आज़ादी पर भी प्रश्नचिन्ह लगने लगे हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति स्वयं को न तो सुरक्षित महसूस कर रहा है और न ही उसे अपनी आजादी का एहसास हो पा रहा है।
आम आदमी उस आज़ादी को आज भी ढूंढ ही रहा है। जिसके लिए अमर शहीद भगत सिंह, अशफाक उल्ला खां, राजगुरु, सुखदेव ,चन्द्रशेखर आज़ाद,मगंल पांडे,लक्ष्मी बाई,झलकारी बाई ,हरिद्वार में शहीद हुए 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स जैसे वीरों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। देश और तिरंगे के लिए लड़ मरे आजादी के इन सिपाहियों को याद करने की फुर्सत अब किसी को नहीं है। स्वतन्त्रता दिवस व गणतन्त्र दिवस को छोड़कर राष्ट्रभक्तों के बारे में चर्चा करने का समय भी किसी के पास नहीं है। जिन शहीदों की वजह से आज हम कहने को आज़ाद हैं, उन्हे सम्मान देने की जब बारी आती है तो हम चुप्पी साध जाते हैं। जो स्वतन्त्रता सेनानी जीवित बचे हैं, उन्हे अफसोस होता है आज की आजादी को देखकर। एक ऐसी आजादी जो अराजक तत्वों को मिली हुई है। एक ऐसी आजादी जो माफियाओं को मिली हुई है। एक ऐसी आज़ादी जो देश के गद्दारों,  भ्रष्टाचारियों, आतंकवादियों, अलगाववादियों, फिरकापरस्तियों, साम्प्रदायिकवादियों को मिली हुई है। चाहे देश में लागू कानून की खामी हो या राजनीति का अपराधीकरण व व्यवसायीकरण, इन्ही सबके के कारण देश बद से बदतर हालात से जूझ रहा है।  बढ़ती जनसंख्या, जाति के नाम पर बंटता समाज और बेरोजगारी के नाम पर आपराधिक गलियारों में भटकते युवाओं के कारण भारत आगे बढ़ने के बजाय पीछे जा रहा है। लेकिन इसकी चिन्ता किसी को नहीं है। देश के आम लोगों ने सोचा था कि अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होने पर देश के आम लोग आज़ादी की खुली सांस ले सकेंगे। देश को लूटने वाला कोई नहीं होगा और देश में दूध दही की नदियां बहेंगी। क्या देश के आम और भले लोगों की यह सोच कारगर हो पाई? इसका जवाब है , बिल्कुल भी नहीं,न देश में लूटने वालों की कमी है और न ही दूध-दही की नदियां बहे, ऐसी स्थिति बन पाई है। दरअसल आजादी मिलने के साथ ही हम होश के साथ जोश खो बैठे थे। अंग्रेजों से सौगात में मिली अंग्रेजियत आज तक भी हम नहीं छोड़ पाए हैं। 
भले लोगों से सरेआम घूस ली जा रही है। न्याय पाने के लिए घूसखोरी के दल दल से गुजरने की पीड़ा हर आम आदमी के चेहरे पर देखी जा सकती है। सुबह घर से निकलने पर घर का मुखिया शाम को सकुशल घर लौट आएगा, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। इसी तरह घर से बाहर निकलने पर किसी भी बहू बेटी की इज्जत सुरक्षित नहीं है। घर से बाहर निकलते ही महिलाओं से चेन स्नेचिंग की घटनाएं आम हो गई है। स्कूल जा रही छात्रा को कब गुण्डे उठा ले जाए ,कब कोई किसे गोली मार दे ,कहा नहीं जा सकता । सच यही है कि आज गुण्डे, हत्यारे, डाकू, चोर, ठग, माफिया, जेबकतरे तो आज़ाद हैं परन्तु आम आदमी को कदम-कदम पर गुलामियत झेलनी पड़ती है। आजादी के इन 70 वर्षों में देश ने भौतिक तरक्की तो बहुत की परन्तु चरित्र निर्माण न होने से देश भ्रष्टाचार,अनाचार,अत्याचार के दल-दल में फंसता चला गया। जिसकी बदौलत देश में एक तरफ  भ्रष्ट नेता और नौकरशाह रातों-रात गरीब से अमीर बनते चले गए और देश लगातार घाटे का शिकार होता चला गया।  एक बार विधायक या संसद बनते ही नेता कंगालपति से करोड़पति बन जाता है।  आज तक देश में किसी भी बड़े नेता को आय से अधिक सम्पत्ति के आरोप में सज़ा नहीं हो पाई और न ही किसी नेता से उनकी गलत रास्ते से अर्जित सम्पत्ति जब्त ही हो पाई है।  अच्छा यही है कि हम एक बार फिर उस आजादी की लड़ाई के लिए उठ खड़े हों और सत्ता का लालच छोड़कर देश के अन्नदाता किसान की जान बचाने व उसे खुशहाल बनाने की पहल करें,साथ ही चुनाव के समय किये गए वायदों को चुनावी जुमलेबाजी न बताकर गम्भीरता के साथ उन वायदों को पूरा करने का काम करें। तभी स्वतन्त्रता के वास्तविक मायने साकार हो सकते हैं।