पंजाब की राजनीति पर हावी होती जा रही है जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट

इस समय पंजाब की राजनीति दो प्रमुख केन्द्र बिंदुओं के आसपास घूम रही है। पहला केन्द्र बिंदु जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट है। इस मामले में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह क्या चाहते हैं और क्या करेंगे? यह सवाल बहुत जोर से उठ रहा है। कैप्टन के साथी मंत्री और कांग्रेसी नेता इस मामले पर कैप्टन से कुछ तीखा रुख अपनाकर जल्दबाज़ी से कार्यवाही करने पर क्यों ज़ोर दे रहे हैं? दूसरी तरफ अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और अकाली दल की इस मामले पर प्रतिक्रिया तथा रवैया भी चर्चा का विषय है, जबकि बरगाड़ी मोर्चा लगाकर बैठे गुटों और मुतवाज़ी जत्थेदारों की स्थिति, मोर्चे के असर के अलावा इस मामले पर आम आदमी पार्टी के दोनों गुटों का रवैया भी चर्चा का विषय हैं। पंजाब की राजनीति का दूसरा केन्द्र बिंदु ‘आप’ पंजाब की फूट का मामला है। सवाल पूछा जा रहा है कि क्या ‘आप’ पंजाब के नेता भगवंत मान द्वारा दिए दोनों गुटों की एकता के संकेत कोई अर्थ रखते हैं या नहीं? इस लड़ाई में खैहरा गुट का हाथ ऊपर जा रहा है या दिल्ली समर्थित गुट हावी होगा? जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट चाहे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने अपने साथियों के साथ विचार किए बिना ही जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाही करने और उसको विधानसभा की मेज पर रखने की बजाय बहिबलकलां और बरगाड़ी कांडों की जांच सी.बी.आई. को सौंप दिए जाने का ऐलान कर दिया था परन्तु पंजाब के लोगों के बढ़ते रोष के अलावा कैप्टन के अपने मंत्रिमंडल के साथियों तथा कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के बढ़ते दबाव के कारण पंजाब पुलिस को मामले संबंधी रिपोर्ट दर्ज करने के लिए मजबूर होना पड़ा और आज कैबिनेट बैठक में 24 से 28 अगस्त तक विधानसभा सत्र बुलाकर इसमें जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पेश किए जाने का फैसला भी लेना पड़ा। बादल दल की प्रतिक्रिया चाहे सत्र बुलाए जाने के मंत्रिमंडल के फैसले के बारे में अकाली दल बादल की कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी सामने नहीं आई, परन्तु सिर्फ एक दिन पहले ही गोवा के महान शहीद करनैल सिंह इसडू की याद में की गई अकाली कान्फ्रैंस में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल द्वारा जस्टिस रणजीत सिंह की रिपोर्ट को रद्द कर देना और जस्टिस रणजीत सिंह पर कांग्रेस पक्षीय होने के आरोप लगाने के बाद यह कहना कि यदि सरकार ने मामले पर सचमुच ही ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ करना है तो वह हाईकोर्ट के किसी सिटिंग जज से जांच करवा ले, हम भी उस जांच में शामिल होंगे, साफ प्रकट करता है कि अकाली दल जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट का राजनीतिक ढंग से कड़ा विरोध करेगा। सुखबीर सिंह बादल के लहज़े और भाषण से यह प्रभाव अवश्य बनता था कि वह इस मामले को लेकर काफी चिंतित हैं। विधानसभा में इस मामले को निपटने के लिए अकाली दल ने अपने विधायकों के साथ विचार-विमर्श शुरू भी कर दिया है। बाजवा और जाखड़ का स्टैंड चाहे राजनीतिक तौर पर कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिन्द्र सिंह बाजवा और पंजाब के कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ दोनों ही मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह के निकटतम माने जाते हैं, परन्तु दोनों का रवैया जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाही करने और अकालियों को घेरने के मामले में कैप्टन द्वारा धीरे चलकर अकालियों के विरुद्ध सीधी कार्रवाई करने से गुरेज़ करने के रवैये से काफी अलग है। जहां तृप्त राजिन्द्र सिंह बाजवा का मंत्रिमंडल की बैठक में जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट विधानसभा सत्र में रखे जाने का फैसला करवाने में मुख्य भूमिका और स्पष्ट स्टैंड सभी के सामने है, वहीं पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने भी पार्टी की ओर से इस रिपोर्ट को विधानसभा में समय रहते पेश करने के लिए काफी दबाव बनाया है। सुनील जाखड़ ने तो रिपोर्ट पेश होने से पहले ही अकाली दल की पोल खोल रैलियों पर तीखे हमले करते हुए कहा कि अकाली हमारी क्या पोल खेलेंगे अपितु अकालियों की पोल तो उस समय पंजाब के लोगों के सामने खुलेगी जब जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की जायेगी। क्यों करनी पड़ी जल्दबाज़ी? अब अचानक यह रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने का फैसला लेने के बाद जल्दबाज़ी के कारणों में कांग्रेस विधायक दल और मंत्रिमंडल और कांग्रेस पार्टी के दबाव के अलावा आम आदमी पार्टी के दोनों गुटों द्वारा जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पेश किये जाने के बारे में अपनाई जाने वाली रणनीति भी प्रभावशाली हुई है, क्योंकि यह प्रभाव बनने लगा था कि यदि कांग्रेस ने फैसला और देरी से किया तो खैहरा गुट इस मामले पर जो रणनीति बना रहा था, उससे वह बरगाड़ी मोर्चा हाईजैक भी कर सकता है। फिर उसके बाद की किसी भी कार्रवाई का श्रेय लेने की कोशिश भी खैहरा गुट कर सकता है। सुखपाल सिंह खैहरा इस मामले में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग तो कर ही चुका था, मान गुट भी यह रिपोर्ट पेश किये जाने के पक्ष में है।फिर बरगाड़ी मोर्चा लगाकर बैठे बादल विरोधी अकाली और मुतवाजी जत्थेदार भी अब और लम्बा समय इंतज़ार करने के मूड में नहीं थे और आसार बनने लगे थे कि वह बादल दल के साथ-साथ कैप्टन के विरुद्ध भी हमलावर होने के लिए मजबूर हो जायेंगे। फिर कैबिनेट मंत्री बाजवा और मुख्यमंत्री द्वारा इन कांडों के दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने के दिए आश्वासनों से पीछे हटने के दोष कांग्रेस के लिए 2019 के चुनावों के मद्देनज़र किसी तरह भी सही नहीं बैठते। यह चर्चा भी है कि सी.आई.डी. की रिपोर्टें थीं कि मामले में देरी से कैप्टन के न्याय करने और कार्यवाही करने वाले व्यक्ति की छवि को ठेस पहुंच रही थी और यह प्रभाव भी बन रहा था कि कैप्टन और बादलों में कोई ‘गुप्त’ समझौता है, जो कांग्रेस के लिए किसी तरह भी लाभदायक नहीं है, फिर रिपोर्ट पेश करने की तय समय सीमा भी तेज़ी से बीतती जा रही थी। 

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