रुपये के अवमूल्यन और महंगाई के विरुद्ध सरकारी पगों का असर

देश की मुद्रा रुपये के विगत कई दिनों से होते अवमूल्यन और इस कारण प्रभावित हुई मूल्य-वृद्धि का असर सरकार के कानों पर अब थोड़ा-थोड़ा दिखाई देने लगा है। विगत लगभग एक मास से तेल, पेट्रोल, डीज़ल और गैस के मूल्यों में प्रतिदिन होने वाली वृद्धि ने देश के समस्त कामकाज और कारोबारी क्षेत्रों को चिन्ता में डाल दिया था। इस कारण देश का जन-साधारण भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ था और परोक्ष रूप से देश के सकल घरेलू उत्पाद पर भी इसका असर दिखाई देने लगा था। रुपये का अवमूल्यन इस सीमा तक गिरा कि एक अमरीकी डालर के बदले रुपया रिकार्ड निचले स्तर 72 रुपये के आसपास जा पहुंचा। नि:संदेह रूप से रुपये के इस अवमूल्यन से देश में मंदी की आहट भी सुनाई देने लगी थी। रुपय। के इस अवमूल्यन से पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में निरन्तर वृद्धि ने घाव को नासूर बनने दिया, जिसकी पीड़ा देश में प्राय: प्रत्येक क्षेत्र में महसूस की जाने लगी थी। नि:संदेह इससे देश में वस्तुओं की मूल्य वृद्धि और महंगाई का प्रभाव देर-सवेर दिखाई देना ही था। विपक्ष ने तो हाय-तौबा मचानी ही थी, सत्ता पक्ष से जुड़े व्यवसायिक और कारोबारी क्षेत्रों में भी रोष एवं असंतोष के स्वर सुनाई देने लगे थे। नि:संदेह जन-साधारण की दिनचर्या और उनके घरेलू बजट पर भी इसका असर दिखाई देने लगा था। लोगों ने इसका विरोध करना भी शुरू कर दिया। इस स्थिति को लेकर सरकार पर विपक्षी दलों का दबाव भी बढ़ने लगा था। तथापि, अब वित्त मंत्री अरुण जेतली ने इस स्थिति में सुधार लाने हेतु पग उठाये जाने का संकेत दिया है, तो सूरज के बढ़ते ताप पर बादल के एक टुकड़े की छांव जैसा महसूस हुआ है। सरकार ने एक ओर जहां पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों पर अंकुश लागू करके थोड़ी बहुत राहत देने का संकेत दिया है, वहीं रुपये के अवमूल्यन के बेलगाम घोड़े के मुंह में लगाम लगाये जाने का आश्वासन भी दिया है। इस हेतु सरकार ने जिन उपायों की घोषणा की है, उनमें एक डालर और रुपये के बीच विनिमय को नियंत्रित करने का है अर्थात डालर की मुद्रा में आयात और डालर के निर्यात पर अंकुश लगाया जायेगा। इसके साथ ही विदेशी मुद्रा में वस्तु निर्यात को बढ़ावा देने के पग भी उठाए जाएंगे। सरकार इस बात को भी सुनिश्चित करेगी कि रुपये के अवमूल्यन का विपरीत असर ऋण-कर्ताओं पर न पड़े, ताकि बैंकों का आदान-प्रदान विपरीत प्रभावी न बने। सम्भवत: सरकार द्वारा उठाये गये पगों का ही यह असर है कि चालू वर्ष के प्रथम दिन से ही शुरू हुए रुपये के मूल्य अवसान पर रोक लगी है, और दूसरे दिन भी रुपये का मूल्य डालर के मुकाबले बढ़ा है। सरकार द्वारा निरन्तर दूसरे वर्ष भी सरकारी बैंकों को बुरे कज़र्े की दल-दल में आकण्ठ डूबने से बचाने के लिए दी गई भारी-भरकम राशि ने भी स्थितियों में और बिगाड़ आने से रोकने हेतु मदद की है। वित्त मंत्री द्वारा पेट्रोल-डीज़ल के धरातल पर राहत देने की जो घोषणा की गई है, नि:संदेह उसका असर भी दिखाई देगा। हालांकि विगत कई दिनों से पेट्रोल-डीज़ल के मूल्यों में हुई वृद्धि को पूर्व स्थिति पर लाना सम्भव नहीं हो सकेगा, परन्तु हम समझते हैं कि यदि ऐसा होता है, तो जन-साधारण की संतुष्टि के किसी अंग को छुआ अवश्य जा सकता है। देश के लोगों की सहनशीलता का आलम यह है कि वे बहुत जल्दी समस्याओं पर पार पा लेते हैं, और निदान ढूंढने हेतु किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। यही कारण है कि रुपये के इतने बड़े अवमूल्यन और पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में भारी वृद्धि के बावजूद लोगों के संयम का बांध कभी नहीं टूटा। केन्द्रीय वित्त मंत्री और रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने हालांकि देश के लोगों को आश्वासन दिया है कि वित्तीय धरातल की मौजूदा उथल-पुथल से घबराने की ज़रूरत नहीं, और कि इससे किसी बड़ी मुद्रा स्फीति का खतरा भी नहीं है, तथापि इससे जन-साधारण के घरेलू उपयोग और उपभोग की वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे और खासतौर पर खाद्यान्न पदार्थों की मूल्य वृद्धि को रोकने हेतु रिज़र्व बैंक के यत्न भी कम पड़ जाएंगे। यह भी तय है कि आयात को कम करने की सरकारी घोषणा भी सही असरंदाज़ हो सकती है, परन्तु देश के प्रशासनिक तंत्र का एक लंगड़ा पक्ष यह भी है कि सकारात्मक घोषणाओं पर क्रियान्वयन अथवा उनका असर कुछ देर से ही होता है। वर्तमान में भी, सरकार की घोषणाओं का मूल्य-वृद्धि पर अंकुश लगाने, मुद्रा-स्फीति का मार्ग अवरुद्ध करने और पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों पर रोक लगाकर रुपये को और टूटने से बचाने के लिए किये गये ताज़ा उपायों का किस सीमा तक असर होता है, यह अभी देखने वाली बात है, परन्तु सरकार यदि इन उपायों में विफल रहती है, तो बेशक जन-साधारण का एक हाथ महंगाई की चक्की में अवश्य पिसेगा, परन्तु इसका असर सत्तारूढ़ दल की चुनावी तरकीबों पर विपरीत रूप से पड़ने की भी प्रबल सम्भावना है।