श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की पावन शहादत

शहीदी दिवस पर विशेषर
नौवें पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की पावन शहादत दुनिया के धार्मिक इतिहास में स्वयं में विलक्षण है, शिरोमणि है। गुरु साहिब जी की शहादत दुखियों के दुख हरने का वह रास्ता है, जो यह दर्शाता है कि यदि ज़रूरत पड़े तो मानवता के लिए स्वयं को कुर्बान करने में कभी भी पीछे न हटें। आज जब समाज में मैं, मेरी और स्वै लालसाएं प्रबल हो चुकी हैं तो ऐसे में गुरु साहिब जी की शहादत समाज के लिए एक बड़ी प्रेरणा है। 
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की शहादत के ऐतिहासिक प्रसंग से पहले सिख धर्म में शहादत के संकल्प को समझना भी ज़रूरी है। प्रथम पातशाह श्री गुरु नानक देव जी ने जब सिख धर्म प्रकट किया तो सिखी महल की पहली ईंट कुर्बानी की ही रखी। उन्होंने अपनी पावन वाणी में इस प्रेम के खेल के लिए जान हथेली पर धरने की प्रेरणा की और कहा कि इस रास्ते पर चलने के लिए डर का कोई स्थान नहीं है। धर्म के प्रति कुर्बानी और शहादत का संकल्प उन्होंने ही रौशन किया, जिस पर चलते हुए पांचवें और नौवें पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी और श्री गुरु तेग बहादुर जी ने स्वयं शहीदियां देकर शहीदी परम्परा की शुरुआत की। उस समय से अब तक लाखों ही सिख राष्ट्रीय स्वाभिमान और आज़ादी, हक, सच के लिए लड़े और शहीद हुए हैं। शहीदी निडरता की निशानी है। शहीद शब्द का आधार गवाही है अर्थात् मकसद, लक्ष्य के लिए दृढ़ता से खड़े होकर मिसाल बनना। 
श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के ऐतिहासिक प्रसंग की बात करें तो जब कश्मीर से आए पंडितों के प्रतिनिधिमंडल ने आनंदपुर साहिब में आकर गुरु साहिब को औरंगजेब की हुकूमत द्वारा बलपूर्वक किए जा रहे धर्म-परिवर्तन और दुखों की लम्बी दास्तान सुनाई तो उन्होंने उत्तर दिया कि किसी पवित्र आत्मा की कुर्बानी से ही हुकूमत के अत्याचार रुक सकेंगे। इस समय वहां खड़े नौ वर्षीय बालक गोबिंद राय जी (श्री गुरु गोबिंद सिंह जी) ने सहज ही हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि गुरु पिता जी इस समय आपसे महान पुरुष और कौन हो सकता है। आप ने बाल गोबिंद राय जी को सीने से लगा लिया और उस समय कश्मीरी पंडितों को कह दिया कि वह बादशाह को जाकर कह दें, कि पहले उनके गुरु (श्री गुरु तेग बहादुर साहिब) को मुहम्मदी शर्रा में ले आओ, फिर स्वयं ही सभी मुसलमान बन जाएंगे। यह एक धर्मी क्षेत्र के पातशाह की दुनियावी बादशाह को चुनौती थी। इस तरह औरंगजेब ने गुरु साहिब की गिरफ्तारी का आदेश जारी कर दिया। आगरा में गिरफ्तार होने के बाद गुरु साहिब को दिल्ली लाया गया, तो सिख भाई दयाला जी, भाई मती दास जी और भाई सती दास जी भी आपके साथ थे। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब पर हुकूमती वार शुरू हुए। हुकूमत ने पहले तो मौखिक डरावे और लालच दिए कि वह मुसलमान बनना मान जाएं, परन्तु जब गुरु साहिब नहीं माने तो हुकूमती जुल्म-जब्र का दौर शुरू हो गया। गुरु जी के अनन्य और जान से भी प्यारे सेवकों भाई दयाला जी, भाई मती दास जी और भाई सती दास जी को गुरु साहिब की आंखों के सामने अलग-अलग तरीकों से यातनाएं देकर शहीद कर दिया। हुकूमत ने गुरु साहिब के सामने अत्याचार की हद कर दी थी। हुकूमत बौखला उठी, क्योंकि हार उसके सामने थी। गुरु साहिब जीत रहे थे, अंतत: जालिमों ने गुरु जी को भी शहीद कर दिया। 
गुरु साहिब की शहादत का आदर्श जहां मानव धर्म की सुरक्षा था वहीं समूह मानव जाति के विचार-विश्वास की स्वतंत्रता और उसकी आत्मा की आज़ादी वाले बुनियादी अधिकारों को बरकरार रखना भी था। यह समय के सबसे बड़े साम्राज्य मुगल सल्तनत की बेलगाम राजशक्ति के लिए एक बड़ी चुनौती तथा औरंगजेब द्वारा समूचे हिंदोस्तान को इस्लाम के झण्डे तले लाने के लिए बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन के लिए अपनाई हुई हिंसक नीति को एक महान चुनौती भी थी। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने जिस परोपकारी भावना, निडरता और दृढ़ता से उसकी राजधानी और शक्ति के केन्द्र दिल्ली जाकर यह क्रांतिकारी चुनौती दी, उसकी धार्मिक नीति की आलोचना की, वह सही अर्थों में एक युग पलटाने वाली घटना और अद्वितीय साका था। गुरु साहिब जी की शहादत हमारे लिए एक प्रेरणा है, इसलिए आओ गुरु साहिब जी के शहीदी दिवस पर उनके द्वारा धर्म की आज़ादी के लिए दी गई महान कुर्बानी को सिर झुकाते हुए गुरमत मार्ग के राही बनें, यही गुरु साहिब को सच्ची श्रद्धा और सम्मान है।
—अध्यक्ष शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक 
कमेटी श्री अमृतसर