अच्छी सेहत के लिए ज़रूरी है रोना

रोने से तनाव कम हो जाता है। लोगों को रोने से एक खास प्रकार का सुकून मिलता है। मन का गम दूर हो जाता है। यही कारण है कि रोने के बाद व्यक्ति को अक्सर नींद आ जाती है। अक्सर बच्चे रोते-रोते सो जाते हैं। अनुसंधान बतलाता है कि रो कर गम दूर करने वाले व्यक्तियों को अल्सर, गठिया, अंदरूनी फोड़े, हर्निया आदि रोग नहीं होते। महिलाएं पुरुषों से अधिक रोती हैं।
पिछले बीस सालों से आंसुओं पर बहुत से अनुसंधान हुए हैं जिनसे कई चौंकाने वाले तथ्य भी प्राप्त हुए हैं। आंख की तीन परतें होती हैं। सबसे नीचे वाली परत पुतली के ऊपर आंसुओं को सममात्रा में छिड़काव करने का काम करती है। बीच वाली परत हमेशा गीली रहती है और वह आंखों को गीला, चमकीला, और मुलायम रखने का काम करती है।
सबसे ऊपर वाली तेलयुक्त परत आंखों को शुष्क होने से बचाती है। अन्दर वाली परत आंखों के बाहरी तल से जुड़ी होती है और बाहरी वाली परत आंखों को ढकने और कोने में विद्यमान ग्रंथियों में से रिसने वाले रसों से बचाती है। नीचे वाली परत जिसे आंसुओं की परत भी कहा जा सकता है, आंख की साकेट के ऊपर की लैकरीमल ग्रंथियों से जुड़ी होती है। आंख की पलकें एक मिनट में लगभग 16 बार झपकती हैं और ऐसा होने से हवा के कीटाणु आंख के अंदर चले जाते हैं। ये रोगाणु अश्रुद्रव्य में मिलकर छोटी-छोटी नलिकाओं का सहारा लेकर बाहर निकल जाते हैं। इस प्रक्रिया का मनुष्य को पता भी नहीं चलता।
कई ऐसे रोग हैं जो आंसुओं के आंखों में जम जाने से हो जाते हैं। जब आदमी अपने आंसुओं को रोक कर भीतर ही भीतर कड़वे घूंट पी लेता है तो उस आदमी को मानसिक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। आंसुओं का संबंध सभ्यता और संस्कृति पर भी निर्भर करता है। पुरुषों का रोना बुजदिली माना जाता है।  (स्वास्थ्य दर्पण)
-दुर्गा प्रसाद शुक्ल ‘आज़ाद’