स़ूफी परम्परा का ध्वज-वाहक : राम दरबार, चंडीगढ़ 

भारतवर्ष दुनिया के उन देशों में सर्वप्रमुख है जहां विभिन्न धर्मों,आस्थाओं तथा विश्वासों के लोग रहते हैं तथा अपने-अपने रीति-रिवाजों तथा अपनी धार्मिक मान्यताओं व परम्पराओं का अनुसरण करते हैं। गोया हिंदू यदि मंदिर में भगवान की पूजा करता है तो मुसलमान मस्जिद को खुदा का घर समझकर वहां नमाज़ पढ़ने में पुण्य मिलने की कामना करता है। इसी प्रकार सिख समुदाय गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहब के समक्ष नतमस्तक होता है तो ईसाई समाज चर्च में प्रार्थना कर अपने प्रभु को याद करता है। गोया प्रत्येक धर्म का धर्मावलम्बी अपने-अपने धार्मिक स्थलों की सीमाओं में रहकर ही अपने ईश को याद करने या पुण्य अर्जित करने का प्रयास करता है। इसमें भी कोई शक नहीं कि सभी धर्मों से संबंधित धर्मग्रंथ अथवा महापुरुष मानव जाति को सद्मार्ग पर चलने तथा मानवता का कल्याण करने का संदेश देते हैं। यही वह परम्परा है जिसने गुरु नानक देव के शिष्यों में हिंदू व मुसलमान का भेद नहीं रखा। इसी परम्परा ने स्वामी रामानंदाचार्य को कबीर को अपना शिष्य बनाने से नहीं रोका। यही वह परम्परा थी जिसने रहीम-रसखान व मलिक मोहम्मद जायसी जैसे अनेक ऐसे मुस्लिम महाकवि प्रदान किए जिन्होंने सारा जीवन हिंदू धर्म के आराध्य देवी-देवताओं का गुणगान किया। इसी परम्परा ने शिरडी वाले साईं बाबा को इतना लोकप्रिय व स्वीकार्य बना दिया कि आज अनेक रूढ़ीवादी धर्धिकारियों को अपनी सत्ता पर खतरा मंडराता दिखाई देता है। इस प्रकार के और न जाने कितने उदाहरण ऐसे हैं जो स़ूफी परम्परा तथा सर्वधर्म सम्भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी स़ूफी परम्परा के ध्वजावाहक स्थानों में एक प्रमुख स्थान चंडीगढ़ स्थित राम दरबार भी है। पाकिस्तान के महान स़ूफी संत स्वर्गीय मोहम्मद शाह द्वारा राम दरबार में  फ़कीरी परम्परा की शुरुआत करते हुए अपने शागिर्दों माता राम बाई अम्मी हुज़ूर तथा बाबा सख़ी चंद को सर्वधर्म सम्भाव की इस महान परम्परा अर्त् स़ूफी मत को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। यह स्थान पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ स़ूफी परम्परा को आगे बढ़ा रहा है। राम दरबार स्थित माता रामबाई चेरिटेबल ट्रस्ट दरअसल इस समय वह काम कर रहा है जो देश की सरकारों तथा देश के ज़िम्मेदार लोगों को करना चाहिए। राम दरबार धार्मिक,सामाजिक,आर्थिक तथा जातीय आधार पर भेदभाव समाप्त करने,सबको एक साथ मिलकर बैठने,धार्मिक व जातिवादी वैमनस्य समाप्त कर सामूहिक रूप से अपने-अपने ईष्ट अथवा पीर-ओ-मुर्शिद का स्मरण करने की प्रेरणा देता है। आज राम दरबार की गद्दी पर बेशक अम्मी हुजूर व स़खी चंद जी मौजूद नहीं हैं परंतु उनके वारिस तथा इस स्थान के गद्दीनशीन शहज़ादा पप्पू सरकार अपनी कार्य-प्रणाली से राम दरबार की परम्पराओं को कायम रखने में अपनी ओर से कोई कसर ब़ाकी नहीं रखना चाहते हैं। राम दरबार देश के उन स्थानों में से एक प्रमुख है जहां सभी धर्मों के लोग न केवल आते हैं बल्कि अपनी-अपनी धार्मिक परम्पराओं का अनुसरण भीकरते हैं। राम दरबार के वारिस व गद्दीनशीन शहज़ादा पप्पू सरकार दरबार में अपने गुरुजनों माता रामबाई अम्मी हुज़ूर व बाबा सखी चंद जी महाराज की स्मृति में एक ऐसा विशाल म़कबरा तैयार करवा रहे हैं जो केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की एक ऐतिहासिक व आकर्षक इमारत साबित होगी। गत् दस वर्षों से सर्वधर्म सम्भाव के प्रतीक इस विशाल भवन का निर्ण चल रहा है। आशा है कि बीस जनवरी 2020 को इस विशाल भवन का विधिवत् मुहूर्त भी किया जाएगा। राम दरबार के इसी प्रांगण में प्रत्येक वर्ष अपने पूर्वज गुरुजनों के नाम पर एक सप्ताह का सर्वधर्म समागम एवं उर्स का आयोजन 14 जनवरी से 20 जनवरी के मध्य किया जाता है। इस साप्ताहिक कार्यक्रम में श्रीमद् भागवद का पाठ भी होता है और श्री गुरु ग्रंथ साहब का अखंड पाठ भी किया जाता है। यहां भजन-कीर्तन भी होता है और राम चरित मानस का अखंड पाठ भी होता है। यहां कव्वालियां भी होती हैं और नात तथा कसीदे आदि भी पढ़े जाते हैं। मेंहदी की रस्म व स़ूफी परम्परा का ध्वजारोहण भी होता है। गोया इस आयोजन में व इस स्थान पर आने वाला कोई भी व्यक्ति यहां हिंदू-मुस्लिम,सिख-ईसाई आदि की संकुचित भावनाओं से नहीं बल्कि मानवता की भावनाओं से आता है तथा इन आयोजनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है। राम दरबार चंडीगढ़ की इस पवित्र व महान गद्दी से फिल्म जगत के लोगों का बहुत गहरा नाता रहा है। आज भी इस स्थान पर फिल्म अभिनेता प्राण द्वारा अम्मी हुज़ूर को भेंट की गई फ़िएट कार मौजूद है। यह स्थान मुसीबतज़दा,परेशान व दु:खी लोगों को राहत पहुंचाने वाले स्थान के रूप में जाना जाता है। यहां के आशीर्द से अनेकानेक लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिला, सन्तान रत्न की प्राप्ति हुई तथा नौकरियां लगीं व कारोबार फूले-फले। यहां के गद्दीनशीन शहज़ादा पप्पू सरकार को केवल उनके गुरुजनों अर्थात् अम्मी हुज़ूर व स़खी चंद जी द्वारा ही अपना शिष्य नहीं बनाया गया बल्कि स्वयं महान स़ूफी संत मोहम्मद शाह जी ने भी शहज़ादा पप्पू सरकार को राम दरबार का असली वारिस व गद्दीनशीन घोषित किया। निश्चित रूप से आज पप्पू सरकार के आशीर्द व उनकी दुआओं में भी एक स़खी फ़कीर का रूप दिखाई देता है। 

—निर्मल रानी