स्वावलंबी छात्र

भारत को स्वराज प्राप्त करने में जिन महापुरुषों ने अमूल्य योगदान दिया है, उनमें गोपाल कृष्ण गोखले का नाम भी प्रमुख है। वे राष्ट्रीय कांग्रेस के नरम दलीय नेताओं में गिने जाते थे। गांधी जी उन्हें अपना गुरु मानते थे और उनका आदर करते थे। गोपाल कृष्ण गोखले के पिता श्री कृष्णराव गोखले निर्धन थे। इस कारण वे अपने बेटों-गोविंद तथा गोपाल की पढ़ाई का खर्च वहन नहीं कर सके। विवश होकर बड़े भाई को पढ़ाई छोड़ कर एक छोटी नौकरी करनी पड़ी। बड़े भाई गोविंद गोखले इस छोटी नौकरी से परिवार का पोषण भी करते और आठ रुपए माहवार गोपाल कृष्ण को भी भेजते थे। गोपाल कृष्ण एक स्वावलंबी छात्र थे। वे किसी की दया या सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे। इसलिए वे इन्हीं आठ रुपयों में भोजन, वस्त्र तथा शिक्षा का खर्च चलाते थे। बचत के लिए वे एक ही बार भोजन करते और अपने हाथ से रसोई बनाते थे। तेल की बचत के लिए वे नगरपालिका की रोशनी वाले खंभे के नीचे बैठ कर पढ़ते। इस प्रकार उन्होंने अपना विद्याध्ययन जारी रखा और एलफिंसटन कालेज से बी.ए. की परीक्षा अच्छी श्रेणी में पास की। उसके बाद उन्हें वज़ीफा मिल गया। तब उन्होंने भाई से खर्च लेना भी बंद कर दिया। बाद में कानून का अध्ययन करने के लिए गोपाल कृष्ण गोखले ने पैंतीस रुपए माहवार में अध्यापक की नौकरी कर ली ताकि वे स्वावलंबी रह सकें।

—धर्मपाल डोगरा, ‘मिंटू’