जान बचाने हेतु बुरी नहीं है थोड़ी-सी सख्ती

देश में कोरोना काल की सबसे भयावह तस्वीर हमारे सामने आने लगी है। पिछले 14 महीनों के कोरोना संक्रमण काल के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए देश में कोरोना संक्रमितों का एक दिन का आंकड़ा डेढ़ लाख को पार कर गया। कोरोना के पीक समय सितम्बर में भी एक दिन में अधिकतम 97 हज़ार 860 कोरोना संक्रमित सामने आए थे। कोरोना की दूसरी लहर की सूचना जब इंग्लैंड सहित योरुपीय देशों से आने लगी थी तो हम उत्साहित थे कि हमारे यहां दूसरी लहर नहीं आई। लम्बे लॉकडाउन और कोराना के कारण पटरी से उतरी आर्थिक गतिविधियों के ठप्प होने से लोग प्रभावित हो गये थे। रोज़गार पर संकट आ रहा था तो कारोबार सिमट रहा था। ऐसे में यह माना जाने लगा था कि आम जन इससे सबक लेगा। फिर सबसे बड़ा हथियार हमारा वैक्सीनेशन कार्यक्रम था और लगने लगा था कि ज्यों-ज्यों वैक्सीनेशन का दायरा बढ़ता जाएगा, कोरोना संक्रमण स्वत: ही अंतिम सांस ले लेगा। परन्तु परिणाम इससे इतर सामने आने लगे हैं जिससे केन्द्र व राज्यों की सरकारें चिंतित हो गई हैं। कोरोना का असर सबसे ज्यादा महाराष्ट्र सहित 10 राज्यों में देखा जा रहा है। 
हालांकि देश के 23 राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर आने की बात सरकार स्वयं मान रही है। देश में कोरोना से मौत के मामले भी बढ़ रहे हैं। हालांकि इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि देश में कोरोना वैक्सीनेशन में तेज़ी आई है और लोग वैक्सीनेशन को लेकर अवेयर भी होने लगे हैं। 
कोरोना के नए दौर को देखते हुए महाराष्ट्र में कई स्थानों पर लॉकडाउन लगाया गया है तो राजस्थान सहित देश की कई राज्य सरकारों ने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मोनीटरिंग कर रहे हैं तो राज्यों की सरकारें भी गंभीर हुई हैं। राजस्थान सरकार शुरू से ही गंभीर और सतर्क है। राजस्थान में 19 अप्रैल तक आंशिक लॉकडाउन भी लगाया गया। 
इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना को लेकर राज्यों की सरकारें सजग रही। कोरोना के बढ़ते संक्रमण और वैक्सीनेशन के बीच देश में करवाए गए एक सर्वें में सामने आया है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना नहीं होती तो शायद देश में प्रतिदिन दो से अढ़ाई लाख तक मामले सामने आते। हालांकि यह भी दावा किया गया है कि कोरोना की रोकथाम के लिए दवा के स्थान पर बचाव के उपाय अधिक कारगर साबित हो रहे हैं। सरकारों के अवेयरनेस कार्यक्रमों में भी बचाव को ही बेहतर उपाय बताया जा रहा है। सवाल यह है कि सरकारों के सख्त प्रावधानों के बावजूद कोरोना की रफ्तार में एकाएक तेजी किस कारण से आ रही है। आज दुनिया के देशों में कोरोना संक्रमण के एक दिनी मामलों में हम शीर्ष पर पहुंच गए हैं। यह गंभीर ंिचंता का कारण है। 
एक बात साफ  हो जानी चाहिए कि कोरोना से लड़ाई केवल और केवल लॉकडाउन से नहीं लड़ी जा सकती। लॉकडाउन को तो अंतिम विकल्प के रूप में ही देखा जाना चाहिए। लाकडाउन के कारण हम बहुत कुछ खो चुके हैं। थोड़ी सी सावधानी ही हमें इससे बचा सकती है। यही कारण है कि अब सरकार पांच सूत्री रणनीति लागू करने जा रही है। इसमें टैस्टिंग, टे्रसिंग और ट्रीटमैंट के साथ ही कोविड बचाव संबंधी सावधानियां और टीकाकरण में तेजी लाना शामिल है। 
सरकार की रणनीति अपनी जगह सही है पर नए संक्रमण को रोकने में सबसे ज्यादा जो बात कारगर हो सकती है, वह है आम नागरिकों द्वारा कोरोना प्रोटोकाल की सख्ती से पालना। सरकार को भी कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए सख्ती करनी ही होगी। एक सख्ती से काफी कुछ ठीक किया जा सकता है अन्यथा लोगों को घरों में बंद करना पड़ेगा। दो गज की दूरी, मास्क पहनना और बार-बार हाथ धोने की पालना करना ज़रुरी है।  इसमें किसी तरह की रियायत नहीं होनी चाहिए। पिछले एक साल के कोरोना काल का विश्लेषण किया जाए तो जिस जिस देश की सरकार ने कोरोना काल में सख्ती की है, उसे वहां की जनता ने सराहा है और कड़े फैसलों का समर्थन किया है। जहां ढीला रवैया रहा वहां राजनीतिक अस्थिरता भी देखने को मिली।
मानवता को बचाने के लिए यदि कोरोना संक्रमण काल के दौरान सार्वजनिक आयोजनों पर सख्ती से पाबंदी लगा दी जाए तो यह कारगर उपाय हो सकता है। आखिर किसी एक की नासमझी का खमियाज़ा अन्य लोगों को क्यों भुगतना पड़े।