कोरोना काल में धान की रोपाई संबंधी अग्रिम प्रबंध

धान की पौध इसी माह में लगनी शुरू हो जाएगी। अधिकतम सीधी बिजाई भी इसी माह आरम्भ हो जाएगी। धान की रोपाई के लिए बिहार और अन्य पूर्वी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल आदि से खेत मज़दूर आते हैं। कोरोना वायरस को मुख्य रखते हुए इस वर्ष उनके कम संख्या में आने की संभावना है। चाहे गत वर्ष की तरह जब ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो गई थी, तो अन्य कार्यों में लगे श्रमिक धान लगाने आ गए थे। इस वर्ष भी उनकी धान लगाने के लिए आने की संभावना है परन्तु फिर भी किसान अभी से धान लगाने हेतु खेत मज़दूरों की कमी को लेकर सोच में पड़े हुए हैं। कुछ किसान सीधी बिजाई करने हेतु विचार कर रहे हैं परन्तु सीधी बिजाई के लिए किसानों को वैज्ञानिक जानकारी होना आवश्यक है। धान के विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञ डा. गुरदेव सिंह खुश के अनुसार पंजाब के किसानों को धान की सीधी बिजाई संबंधी योजनाबंदी करनी चाहिए, क्योंकि प्रदेश में खेत मज़दूरों की समस्या के भविष्य में गंभीर रूप धारण करने की संभावना है। बासमती चावलों के विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञ ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह (डायरैक्टर आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली) कहते हैं कि पानी और खेत मज़दूरों की कमी किसानों को सीधी बिजाई करने के लिए मजबूर करेगी। कई किसानों ने तो कद्दू करके धान लगाने की अपेक्षा सीधी बिजाई तकनीक अपना भी ली है। 
धान की सीधी बिजाई मई-जून में ही किये जाने की सिफारिश है। यदि बारिश न हुई हो और ज़मीन शुष्क हो तो रोणी करके बिजाई करनी चाहिए। पंजाब के किसान मशीन से भी शुष्क ज़मीन पर धान की बिजाई करते हैं और बाद में सिंचाई करते हैं परन्तु धान की बिजाई ज़ीरो टिल हालत में भी की जा सकती है। सीधी बिजाई के लिए खेत की तैयारी पहली जुतई उलटे हल से की जा सकती है। उसके बाद दो-तीन बार खेत पर हैरो या हल चलाया जाए। फिर खेत को समतल किया जाए। लेज़र कराहे से लेवल कराने से 10 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है। 
बासमती किस्में जो 18 से 22 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन दें, उनकी भी सीधी बिजाई की जा सकती है। इन किस्मों में पूसा बासमती-1509 और पूसा 1612 (खुश्बूदार) भी शामिल हैं। मशीन के साथ बिजाई करने के लिए 20 से 25 किलो बीज प्रति हैक्टेयर उपयोग करने की सिफारिश की गई है। कतार से कतार के बीच अंतर धान या बासमती की किस्म को मुख्य रख कर आम तौर पर 20 से 25 सैंटीमीटर होना चाहिए। बिजाई आम सीड ड्रिल से की जा सकती है। ज़ीरो टिल में हैपी सीडर का प्रयोग करके करनी पड़ेगी। बिजाई 2 से 3 सैंटीमीटर की गहराई पर की जानी चाहिए। 
बिजाई से पहले 40-45 दिन पानी देने का उचित प्रबंध करना बहुत ज़रूरी है। प्रत्येक चौथे-पांचवें दिन पानी देना चाहिए परन्तु बारिश, ज़मीन की किस्म, खुश्की और दरारों को मुख्य रख कर सिंचाई संबंधी फैसला लेने की आवश्यकता है। ट्रांसप्लांटिड फसल की तरह पानी खड़ा करके फ्लड्ड करने की आवश्यकता नहीं। स्टेट अवार्डी और पंजाब सरकार के साथ चावलों संबंधी कृषि करमण पुरस्कार प्राप्त करने वाले, आई.ए.आर.आई. से सम्मानित प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कलेका कहते हैं कि उनके द्वारा किये गए तजुर्बे और आज़माइशें ये दर्शातीं है कि यदि सही ढंग से मापा जाए तो सीधी बीजी हुई फसल का पानी की ज़रूरत ट्रांसप्लांटिड फसल से कोई अधिक कम नहीं। विशेषज्ञों के अनुसार भारी ज़मीनों में सीधी बिजाई अधिक सफल है। खादों के उप्रयोग संबंधी, विशेषज्ञ कहते हैं कि ज़मीन की जांच के आधार पर करना चाहिए और नाइट्रोजन का तीसरा भाग पूरी पोटाश, फासफोरस और ज़िंक बिजाई के समय ही डाल देने चाहिएं। दो-तिहाई नाइट्रोजन दो बार बराबर मात्रा में डाल देनी चाहिए। जहां गेहूं को पूरी फासफोरस डाली हो, वहां फासफोरस खाद डालने की आवश्यकता नहीं। 
सीधी बिजाई के क्षेत्र वाली फसल में बकाने (झंडा रोग) की बीमारी आने की संभावना नहीं, यदि आती भी है तो बहुत कम परन्तु सीधी बिजाई के समय खेतों में नदीनों की समस्या बड़ी गंभीर है। बीमारियों और नेमाटोड्ज़ का हमला भी सीधी बिजाई की फसल पर होता है। सीधी बिजाई वाले खेतों में आम तौर पर लोहे की कमी आ जाती है। विशेष करके कल्लरी ज़मीनों में पौधा पीला पड़ कर सूखना शुरू हो जाता है। इसलिए फैरस सल्फेट के चूने से मिला कर दो-तीन छिड़काव कर देने चाहिएं।