धान की बुआई 10 जून से, पौध की बिजाई मुकम्मल

इस वर्ष पंजाब में धान की काश्त 10 जून से शुरू की जाएगी। पंजाब प्रीज़रवेशन आफ सब-सुआयल वाटर एक्ट-2009 के तहत धान लागने की तिथि पंजाब सरकार द्वारा नोटिफाई की जाती है।  धान की बुआई शुरू करने के लिए आम किसानों ने पौध लगा ली है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दूसरी किस्मों के मुकाबले अधिक पौध पूसा-44 किस्म के धान की बुआई की गई है। पंजाब के एक प्रसिद्ध बड़े बीज बिक्रेता भट्ठल बीज फार्म लुधियाना के अनुसार उनका पूसा-44 किस्म का पूरा बीज बिक गया है जबकि दूसरी किस्मों का बीज अभी शेष पड़ा है। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के रिजनल स्टेशन करनाल पर भी पूसा-44 किस्म का बीज खत्म हो गया। इस केन्द्र से अधिकतर पंजाब के किसानों ने ही पूसा-44 किस्म का बीज खरीदा है। पूसा-44 एक अधिक उत्पादन देने वाली किस्म है। यह किस्म 145-150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। गत वर्ष खरीफ सीज़न में पी.ए.यू. से सम्मानित किसान सलाहकार कमेटी के सदस्य प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया अमलोह ने पूसा-44, पी.आर.-121, पी.आर.-122, पी.आर.-123, पी.आर.-124, पी.आर.-126, पी.आर.-127 और पी.आर.-128 सभी किस्मों की काश्त की थी। सभी किस्मों से अधिक अधिक उत्पादन 7 एकड़ पर बोई पूसा-44 किस्म से ही मिला था जिसने 36 क्ंिवटल प्रति एकड़ की उत्पादकता दी थी। 
पंजाब में पूसा-44 किस्म बीज के सबसे अधिक चावल का उत्पादन प्राप्त करने के लिए केन्द्र से चावल के ‘कृषि करमन पुरस्कार’ से सम्मानित बिशनपुरा छन्ना (पटियाला) का प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका अपने 20 एकड़ फार्म पर गत 20 वर्ष से पूसा-44 किस्म की ही काश्त करता आ रहा है। इस वर्ष भी वह अपने कुल रकबे पर पूसा-44 किस्म की काश्त करेगा। वह कहता है कि पूसा-44 किस्म ने मुझे बड़ा लाभ दिया है। जड़िया और कालेका दोनों कहते हैं कि जो यह कहा जा रहा है कि पूसा-44 किस्म की पानी की खपत अधिक है और जिस कारण भू-जल का स्तर नीचे जा रहा है, वह सही नहीं है। उनके अनुसार कम समय में पकने वाली पी.आर.-126 किस्म को भू-जल की आवश्यकता अधिक है। इसी तरह पी.आर.-126 किस्म की बुआई करने से कुल पानी की खपत पूसा-44 किस्म के मुकाबले बढ़ जाती है। इंद्रजीत धर्मगढ़ (फतेहगढ़ साहिब)जो इस वर्ष 250 एकड़ रकबे में पूसा-44 किस्म का धान लगा रहा है, कहता है कि यह किस्म किसानों के लिए लाभकारी है क्योंकि शैलरों वाले इसे अधिक पसंद करते हैं। 
किसानों ने पूसा-44 किस्म के अतिरिक्त पी.आर.-127 किस्म की पौध लगाई है जो पकने में 134 दिन लेती है और इसका औसत उत्पादन 30 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। कलराठी ज़मीनों और घटिया पानी वाले क्षेत्रों के किसानों ने इस किस्म की पौध नहीं लगाई। अन्य किस्में जिनकी पौध लगाई है, उन में पी.आर.-126 किस्म शामिल है, जो पकने को 123 दिन लेती है और इसका औसत उत्पादन 20 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। परन्तु पंजाब फैडरेशन आफ पटियाला एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और पटियाला आढ़ती एसोसिएशन के अध्यक्ष देवी दयाल कहते हैं कि इस किस्म के चावलों की वसूली कम होने के अतिरिक्त इस किस्म के 8 से 10 प्रतिशत चावलों के दानों का कौंणा काला हो जाता है जो गुणवत्ता को प्रभावित करता है। किसानों ने पी.आर.-124 किस्म की पौध भी लगाई है जिसका औसत उत्पादन 30.5 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। पी.आर.-123 किस्म की पौध भी शामिल है जो पकने में 143 दिन लेती है और औसतन 29 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन देती है। पी.आर.-122 किस्म 147 दिनों में पकती है जिसका औसत उत्पादन 31.5 क्ंिवटल प्रति एकड़ है।  पी.आर.-121 किस्म पकने को 140 दिन लेती है और 30.5 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन देती है।पंजाब कृषि ‘वर्सिटी लुधियाना द्वारा विकसित 2 नई किस्में—पी.आर.-128 और पी.आर.-129 जो गत वर्ष ही किसानों को सिफारिश की गई हैं, कुछ किसानों ने थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लगाई हैं। ये दोनों किस्में पी.ए.यू. 201 (जो अस्तित्व में नहीं आईं) किस्म का संशोदन रूप है।  इनका क्रमश: उत्पादन 30.5 और 30 क्ंिवटल प्रति एकड़ है।