बेहतर भविष्य के लिए महामारी से सबक लेना अच्छा विकल्प 

पिछले अढ़ाई वर्ष हमारे लिए ‘सामान्य से अलग’ रहे हैं, जहां मानवता को एक ‘विज्ञान कथा’ को सबसे करीब से जीने का अनुभव हुआ। सभी देशवासी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मजबूत नेतृत्व में सामूहिक रूप से दावा कर सकते हैं कि हमने कोविड-19 संकट के दौरान अति महत्वपूर्ण तथा पूरे जीवन-काल में एक बार मिलने वाला सबक सीखा। हमने सहनशीलता, दृढ़ संकल्प और सामर्थ्य का प्रदर्शन किया, जिसे दुनिया भर में देश को सम्मान मिला है और यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
भारत में ऐसा दावा वैक्सीन के सन्दर्भ में भी किया जा सकता है। चाहे भारत का वैक्सीन निर्माण कौशल हो, चाहे अनुसंधान एवं विकास में नवाचार परीक्षण हो, चाहे सार्वजनिक-निजी भागीदारी की संभावनाओं को विस्तार देना हो, चाहे टीकाकरण अभियान का डिजिटल होना हो, चाहे मिशन मोड में सरकारी विभागों के एक साथ आने की बात हो, माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक अरब लोगों के जीवन को बचाने के लिए निरन्तर संवाद करने और उन्हें समझाने के विभिन्न प्रयास किए गए। कई मोर्चों पर सफलता प्राप्त करने के लिए, हम दावा कर सकते हैं कि हमने दशकों के सबक को मात्र दो साल में सीख लिया। विशेष रूप से तेज़ी से बदलती स्थितियां में विकसित हो रहे विज्ञान, सामाजिक विरोध तथा कई देशों में वैक्सीन लेने के प्रति झिझक को देखते हुए यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।  
एक साल से भी कम समय में सार्स-कोव-2 जैसे नए वायरस के लिए सुरक्षित व प्रभावी वैक्सीन के विकास को आधुनिक विज्ञान के इतिहास में सबसे प्रभावशाली उपलब्धियों में से एक के रूप में जाना जाएगा। भारत के वैक्सीन इकोसिस्टम की भूमिका भी उस इतिहास में दर्ज की जाएगी। दुर्घटना जैसी असंख्य स्थानीय चुनौतियां और कच्चे माल की भारी कमी जैसी वैश्विक चुनौतियों के बावजूद खुराकों की संख्या की दृष्टि से दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ  इंडिया (एसआईआई) और अन्य भारतीय वैक्सीन-निर्माताओं ने 2 बिलियन से अधिक खुराकों का उत्पादन किया, जो मानवता के लगभग एक-तिहाई हिस्से के लिए पर्याप्त थी। यदि यह माना जाये कि एक खुराक एक व्यक्ति को प्रतिरक्षा प्रदान करती है। उत्पादन का यह पैमाना भारत की क्षमता का संकेतक है, जिसे देश ने दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है क्योंकि वैक्सीन उच्च-तकनीक केन्द्रित हो गई हैं और किसी भी उम्र में लेने पर कई अन्य बीमारियों के खिलाफ  जीवन भर के लिए सुरक्षा प्रदान करती हैं।
देश ने स्वास्थ्य तकनीकी समाधान प्रदान करने में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जिसके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के रूप में टीकाकरण अभियान के डिजिटल आधार ‘को-विन’ को देखा जा सकता है। जिस गति के साथ भारत ने ‘ई-विन’ को ‘को-विन’ के तहत अपनाया, वह अनुकरणीय है। ‘ई-विन’ स्मार्ट वैक्सीन आपूर्ति शृंखला प्रबंधन प्रणाली है, जिसका उपयोग सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में बच्चों व गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के लिए किया जाता है। भारत ने शुरुआत से ही डिजिटल वैक्सीन प्रमाण-पत्र जारी करना शुरू कर दिया था, खासकर ऐसे समय में जब कई विकसित देश वैक्सीन प्रमाण-पत्र को डिजिटल रूप में जारी करने के लिए संघर्ष कर रहे थे और इसे कागज़ पर भौतिक रूप में जारी कर रहे थे। चाहे किसी आपात स्थिति से मुकाबला करना हो या एक सुनियोजित कार्यक्रम हो, ‘को-विन’ वह अमूल्य प्लेटफार्म है जो अन्य सार्वभौमिक या आयु-विशिष्ट टीकाकरण कार्यक्रम के लिए उपयोगी साबित हो सकता है। यह एक ऐसी परिसम्पत्ति है, जिसे विभिन्न तरीकों के ज़रिये अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए भी अनुकूल बनाया जा सकता है।                   
जिन तीन क्षेत्रों में नए प्रयोग करते हुए देश ने एक लम्बी छलांग लगाई और व्यापक सीख हासिल की, वे हैं—टीके के अनुसंधान एवं विकास, दवाओं की नियामक प्रणाली और सरकार की मजबूत भागीदारी, जिसमें सरकार के विभिन्न विभाग कोविड-19 के खिलाफ  प्रतिक्रिया को सही दिशा देने के लिए निजी उद्यमों का साथ दिया। सबसे पहले सरकार ने यह पूरी तरह जानते हुए कि एक विकट महामारी के दौर में टीके की खोज की राह बेहद अनिश्चितता भरी हो सकती है, एक सुविचारित रणनीति तैयार की।
हमारी दवा नियामक प्रणाली, जिसे पारम्परिक रूप से धीमी गति से चलने वाला माना जाता है, ने विकसित बाज़ारों के विभिन्न वैश्विक नियामकों की तरह ही टीकों को मंजूरी देने के लिए त्वरित प्रक्रियाओं को अपनाना सीखा। रोगी की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए कुशल और दक्षता के ये सबक कोविड-19 जैसी या इसकी तुलना में कहीं ज्यादा भयानक दूसरी बीमारियों के खिलाफ  कारगर एवं जबरदस्त लड़ाई छेड़े जाने की स्थिति में नियामक प्रणाली के कामकाज को प्रभावी बनायेंगे।
ऐसे समय में जब कई विकसित देश टीका-विरोधी आंदोलन से जूझ रहे थे, भारतवासियों ने टीकाकरण अभियान में अपनी भारी भागीदारी के माध्यम से यह दिखाया कि हम एक ऐसा देश है जहां वैज्ञानिक चेतना हिचकिचाहट को दूर भगाती है। दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद यहां 96.7 प्रतिशत पात्र आबादी को टीके की पहली खुराक दी जा चुकी है, 89.2 प्रतिशत लोगों ने टीके की दोनों खुराकें ले ली हैं और 18.7 करोड़ से अधिक एहतियाती खुराक दी जा चुकी हैं। यह कोविड-19 टीकाकरण की जबरदस्त सफलता का एक स्पष्ट प्रमाण है। पात्र लाभार्थियों को उन्हें दी जाने वाली खुराकों को लेने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु देश भर में विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं।
मानव विकास रिपोर्ट-2022 के एक अनुमान के अनुसार अकेले 2021 में कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रमों ने वैश्विक स्तर पर लगभग 20 मिलियन मौतों को टाल दिया। सभी चुनौतियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में  सरकार के दृष्टिकोण के ज़रिए और सभी हितधारकों की व्यापक भागीदारी के बूते भारत ने सही अर्थों में कोविड महामारी के खिलाफ  प्रतिक्रिया को एक जन-आंदोलन में बदल दिया है।
-मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ  इंडिया।