शी जिनपिंग की तीसरी पारी

इन दिनों विश्व भर में रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे विनाशक युद्ध के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भी बड़ी चर्चा हो रही है। इस समय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.सी.) की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा है। प्रत्येक पांच वर्ष बाद देश भर में कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से चुने गये कुछ हज़ार प्रतिनिधियों को बुलाया जाता है तथा विचार-चर्चा के नाम पर सत्तारूढ़ कुछ बड़े नेता उन्हें सम्बोधित करते हैं तथा कुछ दिनों की विचार-चर्चा के बाद देश से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण मामलों के संबंध में फैसले किये जाते हैं। इससे पूर्व पार्टी का 19वां अधिवेशन वर्ष 2017 में हुआ था। इस बार सबसे महत्त्वपूर्ण बात शी जिनपिंग को तीसरी बार पार्टी का महासचिव एवं राष्ट्रपति चुने जाने की घोषणा है। चीन में इस पद पर बैठा व्यक्ति ही प्रमुख सैनिक कमांडर माना जाता है। 
माओत्से तुंग को चीनी क्रांति का जनक माना जाता है। वर्ष 1976 में उनकी मृत्यु के बाद यह परम्परा बनी रही थी कि पार्टी का महासचिव निरन्तर केवल दो बार ही चुना जा सकता है। शी जिनपिंग ने महासचिव का पद वर्ष 2013 को सम्भाला था परन्तु विगत 10 वर्ष के काल में उन्होंने अपनी शक्तियों में भारी वृद्धि कर ली है। कुछ वर्ष पूर्व ही वहां ये स्थितियां बन गई थीं कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग पुन: पार्टी के महासचिव का पद सम्भाल कर तीसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे। विगत समय में वहां यह प्रभाव भी परिपक्व किया जाता रहा कि माओत्से तुंग के बाद शी जिनपिंग ही देश के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे हैं।
इस दिशा में वर्ष भर से वहां यत्न जारी रहे। शी जिनपिंग  की ओर से लिखित पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं, जिनमें उन्होंने परिवर्तित हुये समयानुसार चीन के आर्थिक ढांचे की व्याख्या की है। चीनी समाज का मार्ग दर्शन करने के लिए मार्क्सवाद की व्याख्या भी परिवर्तित दौर के अनुसार करने का यत्न किया गया है। पार्टी कांग्रेस में अपने लम्बे भाषण में उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद की भी चर्चा की है तथा देश में विकास की रूप-रेखा को घोषित करते हुये आगामी समय में इसकी सुरक्षा को लेकर भी अपने विचार पेश किये हैं। इसके साथ ही आत्म-निर्भरता, शिक्षा, विज्ञान एवं अनुसंधान के लिए वातावरण तैयार करने के लिए भी कहा है। आज चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनकर उभरा है। अपने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के बलबूते पर उसने न केवल अपने देश का विकास एवं सेनाओं का पूरी तरह से आधुनिकीकरण कर लिया है, अपितु एशिया एवं अफ्रीका के ज़रूरतमंद देशों को ऋण के रूप में भारी सहायता देकर वहां भांति-भांति की परियोजनाएं भी शुरू की गई हैं। इसीलिए आज अधिकतर गरीबी से प्रभावित एवं ज़रूरतमंद देश उसके ऋण एवं सहायता पर निर्भर हैं। पाकिस्तान भी इन देशों की कतार में खड़ा दिखाई दे रहा है। 10 वर्ष पूर्व जब शी जिनपिंग ने सत्ता सम्भाली थी तो उन्होंने भारत के साथ मैत्री का हाथ बढ़ाया था तथा यह भावना भी व्यक्त की थी कि दोनों देशों के बीच सीमांत मामले को व्यापार एवं अन्य प्रकार के आदान-प्रदान से नहीं जोड़ा जाना चाहिए परन्तु इसके बाद चीन की नीतियों में भारी परिर्वतन आता रहा है। देश एवं सत्ता पर पकड़ मजबूत होने के बाद शी जिनपिंग ने अपनी विस्तारवादी नीतियों को अधिमान देना शुरू कर दिया। चीन के दक्षिण सागर में समुद्र से सटे देशों के हिस्से एवं इस क्षेत्र में पड़ने वाले द्वीपों पर भी वह अपने दावे पेश करने में लगा हुआ है। इन दावों को उसकी ओर से क्रियात्मक रूप देने के यत्नों के दृष्टिगत आज दक्षिणी चीन सागर से सटे दर्जनों पड़ोसी देश उससे नाराज़ हो गये हैं। जापान उसका बड़ा विरोधी बना हुआ दिखाई देता है। भारत, भूटान एवं सिक्किम की सीमा के साथ सटे डोकलाम में भारत एवं चीन दोनों देशों की सेनाएं 70 दिनों तक एक-दूसरे के समक्ष खड़ी रही थीं। इसी प्रकार पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में लगभग दो वर्ष पूर्व जिस प्रकार दोनों देशों के सैनिकों में टकराव हुआ था, उससे भी दोनों देशों के संबंध अतीव खराब हो गये थे। इसका प्रभाव अब तक भी बना हुआ है। चीन ने सदैव अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानते हुये कई बयान दिये हैं। इसी प्रकार चीन की ओर से ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की योजना को लेकर भी दोनों देशों में भारी टकराव उत्पन्न होता रहा है। 
समूचे हालात को देखते हुये आगामी समय में शी जिनपिंग का तीसरी बार सत्ता पर काबिज़ होना भारत सहित विश्व के कई अन्य देशों के लिए उससे अधिक सचेत रहने का सन्देश ही कहा जा सकता है। चीन में कम्युनिस्ट शासन के समय एक ऐसा अवसर आया था जब ऐसा प्रतीत होता था कि यहां के कम्युनिस्ट शासकों की ओर से नई एवं बड़ी छूट प्रदान की जाएंगी परन्तु इस दौर के बाद चीन पर प्रशासनिक नियन्त्रण और भी मज़बूत कर दिया गया है। नि:सन्देह शी जिनपिंग की तीसरी पारी अन्तर्राष्ट्रीय धरातल पर ऐसे बड़े प्रभावों वाली होगी जिसे देखते हुये भिन्न-भिन्न बड़े देशों को भी अपनी नीतियों में परिवर्तन करने पड़ सकते हैं। 


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द