क्या वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल होंगे ?

उत्तर प्रदेश में पीलीभीत से भाजपा के सांसद वरुण गांधी केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की अनेक योजनाओं की पहले भी कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से आलोचना करते रहे हैं। चाहे किसान आंदोलन का मामला रहा हो, चाहे अग्निवीर जैसी सेना भर्ती योजना का मसला रहा हो या फिर महंगाई और रोज़गार जैसे मामले रहे हों। लेकिन हाल में वरुण गांधी ने केंद्र सरकार की आलोचना के लिए जो नया मुद्दा उठाया है, वह शायद अब तक के दूसरे मुद्दों से कहीं ज्यादा संवेदनशील है। पहली बार वरुण गांधी जोर-शोर से बिना भाजपा का नाम लिए साम्प्रदायिक राजनीति का मुद्दा उठाया। पिछले दिनों उनका एक वीडियो काफी वायरल हुआ, जिसमें वह कह रहे हैं, ‘मैं न तो कांग्रेस के खिलाफ  हूं और न ही पंडित नेहरू के। मैं उस राजनीति के खिलाफ  हूं जिसमें भाई को काटो, भाई को बांटो यानी हिंदू-मुस्लिम की नीति अपनाई जाती है। आज जो लोग धर्म और जाति के नाम पर वोट मांग रहे हैं, वह दरअसल देश को तोड़ने की राजनीति कर रहे हैं जबकि इस समय देश को जोड़ने की राजनीति की ज़रूरत है।’
वरुण गांधी के इस वायरल वीडियो का लब्बोलुआब यह है कि वह राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को अप्रत्यक्ष रूप से न सिर्फ  समर्थन दे रहे हैं बल्कि इसे महत्वपूर्ण मान रहे हैं। जब वह कहते हैं कि जो लोग धर्म और जाति के नाम पर वोट मांग रहे हैं, उनसे हमें रोज़गार और शिक्षा को लेकर सवाल पूछने चाहिए, तब वह कहीं न कहीं भाजपा और केंद्र की मौजूदा सरकार पर यह आरोप लगाते हुए लगते हैं कि सरकार रोज़गार और शिक्षा की जगह हिंदू-मुस्लिम की राजनीति कर रही है। जबकि राहुल गांधी भारत को तोड़ने नहीं बल्कि उसे सही मायनो में जोड़ने की बात कर रहे हैं। राजनीतिक समीक्षक और सियासी गलियारे में अपनी पैनी नज़र रखने वाले लोग कह रहे हैं कि वरुण गांधी ऐसे मुद्दे उठाकर भाजपा में अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? तो इस पर भी राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि शायद इसलिए कि वरुण गांधी ने भाजपा में अपनी अनदेखी को महसूस कर कांग्रेस में जाने का मन बना लिया है। 
दरअसल वरुण गांधी ने इस मुद्दे को और राजनीतिक विमर्श के संबंध में अपने आंकलन को जिस तरह से पेश किया है, जानकारों ने उसकी सामयिकता पर सवाल उठाये हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि वरुण गांधी जिस तरह भाजपा के खिलाफ  माहौल बना रहे हैं, उससे लगता है कि वह साल 2024 का चुनाव कमल की बजाय, हाथ के साथ मिलकर लड़ने की योजना बना रहे हैं।  वरुण गांधी का कांग्रेस में जाने का अनुमान इसलिए भी लगाया जा रहा है, क्योंकि अतीत में ऐसा माना जा रहा था कि वह सपा, आरएलडी और कांग्रेस के गठबंधन में शामिल होंगे। तब उन्होंने इसे स्थगित कर दिया था, लेकिन अब लगता है कि वरुण गांधी इसमें और देर नहीं करना चाहते। हाल ही में जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान पत्रकारों ने इस संबंध में राहुल गांधी से सवाल पूछे तो उन्होंने इन सवालों का गोलमोल जवाब दिया। गोलमोल बयानों में कुछ संकेतक तो छिपे ही होते हैं। जब उनसे पत्रकारों ने पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश की यात्रा के दौरान वरुण गांधी उनके साथ इस भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा होंगे? तो राहुल गांधी ने मुस्कुराते हुए कहा कि उनका स्वागत है।
लेकिन कुछ भी हो, जिस तरह से वरुण गांधी रह रहकर भारत जोड़ो यात्रा की तारीफ  कर रहे हैं, उसे लोगों को जोड़ने वाला बता रहे हैं, उससे लगता है कि वरुण गांधी जल्द से जल्द भाजपा को छोड़ना चाहते हैं। हालांकि जिस तरह से भाजपा उनके इन बयानों पर प्रतिक्रिया नहीं दे रही, बल्कि चुपी साधकर इस सबकी अनदेखी कर रही है, उससे लगता है कि भाजपा खुद वरुण गांधी को उकसा रही है कि वह भाजपा छोड़कर चले जाएं।  गौरतलब है कि वरुण गांधी साल 2004 में भाजपा में शामिल हुए थे। साल 2013 में उन्हें मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया था। वह भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के भी सदस्य हैं। साल 2014 में भाजपा ने उन्हें कांग्रेस के प्रभाव वाली लोकसभा सीट सुल्तानपुर से चुनाव जितवाया था। हालांकि उसके पहले उनकी मां मेनका गांधी भी इसी सीट से जीत चुकी थीं। अगली बार यानी 2019 के आम चुनाव में एक आंतरिक सर्वेक्षण से लोकसभा क्षेत्र में वरुण गांधी की कारगुज़ारी संतोषजनक न होने के कारण उनकी लोकसभा सीट बदल दी गई थी। उन्हें पीलीभीत से चुनाव लड़वाया गया और वह विजयी रहे।
भले वरुण गांधी और उनकी मां गांधी-नेहरू परिवार की उस पारम्परिक विरासत कथा का हिस्सा न माने जाते हों, जिसके नाम पर राहुल गांधी की अकसर आलोचना होती है और कांग्रेस पर परिवारवाद को मजबूत करने का आरोप लगता है, लेकिन मेनका और वरुण के पीछे यह जो गांधी शब्द चिपका है, उसके अपने कुछ मनोवैज्ञानिक फायदे व नुकसान तो हैं ही। शायद यही वजह है कि भाजपा हमेशा से मेनका गांधी और वरुण गांधी को अतिरिक्त महत्व देती रही है, लेकिन कुछ समय से जिस तरह से भाजपा के अंदर मेनका और वरुण दोनों की पूछ घटी है, उससे यही अनुमान लगता है कि भाजपा को अब वरुण गांधी जैसे नेताओं की ज़रूरत नहीं है। एक तरह से भाजपा वरुण जैसे नेताओं को अपनी रिज़र्व टीम में ही रख सकती है। तात्कालिक रूप से वरुण और मेनका के घटे इसी महत्व के कारण लगातार भाजपा वरुण गांधी और उनकी मां की अनदेखी कर रही है।  ऐसे में सियासी गलियारे में यह चर्चा ज़ोर-शोर से होना स्वभाविक है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव वरुण गांधी भाजपा की ओर से नहीं लड़ेंगे। हालांकि अगर वह भाजपा में रहते हैं तो उनके ऐतिहासिक 20 साल भाजपा के साथ पूरे हो जाएंगे। लेकिन वरुण भाजपा में रहेंगे या उससे दूर जाएंगे, इसकी तस्वीर आने वाले दिनों में साफ  हो जाएंगी, क्योंकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश में पहुंच चुकी है। अब पूरे देश की नज़र राहुल के साथ-साथ वरुण गांधी की इस यात्रा को लेकर की जाने वाली प्रतिक्रिया में होगी।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर