बहादुर मुस्कान

 

संध्या का समय था। मुस्कान आंगन के चबूतरे पर बैठी मोबाइल की मदद से अपना होमवर्क पूरा करने में लगी थी कि तभी बारी के रास्ते से एक बड़ा सा सियार आंगन में घुस आया। वह मुर्गे-मुर्गियों की तलाश में अंदर आया था। अचानक सामने एक बड़ा सा सियार देख मुस्कान घबरा कर चीख पड़ी-
‘मां...अ...अ...!’
आज तक केवल किताबों में, मोबाइल-टीवी के स्क्रीन पर ही उसने जंगली जानवरों, मसलन- सियार, हुंडार, शेर, चीता और भालू-बंदर को देखा था। आज साक्षात एक सियार को सामने पाकर पहले तो वह डर गई। पर डर कर वह भागी नहीं। डर के आगे जीत है, इस विज्ञापन को उसने टीवी पर बहुतों बार देखा था। अपने बाबा के मुख से सुनी मुटरा की कहानी भी उसे याद थी। मुटरा बचपन से ही बड़ा बहादुर और निडर बालक था। बाबा से सुना था मुटरा बचपन में धामन सांप की पूंछ पकड़ खूब घुमाता और सियार-सूअरों को वह दौड़ा-दौड़ा कर मारता था। 
आंगन में आकर सियार मुंह उठाए इधर-उधर ताकते फिर रहा था।
मौका गंवाए बिना मुस्कान ने मोबाइल को धीरे से चबूतरे पर रखा और बगल में पड़े एक डंडे को उठा लिया। फिर उस डंडे को लिए वह अचानक से सियार की ओर दौड़ पड़ी-‘ले मुर्गी-खा डंडा!’
अकस्मात हमले से सियार घबरा कर इधर से उधर भागने लगा और पीछे से डंडा लेकर मुस्कान उसे दौड़ाने लगी, उत्साह में वह यह भूल गयी थी कि सियार उसे पलट कर काट सकता है-नोंच भी सकता है, उसे तो बस मुटरा याद था, उसकी बहादुरी याद थी। डर के आगे जीत है, वह विज्ञापन याद थी।
उस समय मुस्कान की मां सुबह के लिए बारी में गंधारी साग तोड़ रही थी। उसने मुस्कान की चीख सुन ली थी, सो जल्दी-जल्दी साग तोड़ गोहाल और बारी तरफ का दरवाजा बंद कर घर आ गई। जैसे ही उसने आंगन में कदम रखा, डंडा लेकर सियार के पीछे दौड़ती-भागती मुस्कान को देख वह दंग रह गयी-‘अरे, मुस्कान...रूको..!’ उसे लगा सियार कहीं उसे हबक (काट) न दे। एक छिपकली देख डरने वाली लड़की में इतनी हिम्मत कहां से आ गई! मां चकित थी! उसका यह रूप देख।
उधर सियार को दौड़ा-दौड़ा कर उसने भगा दिया!
मुस्कान, बस-रूको और नहीं!’ मां ने फिर आवाज़ दी। 
मुस्कान रूक गई! उसका दौड़ना रूक गया। उसका जुनून रूक गया। सियार भाग कर नाली में जा छिपा। मुस्कान ने मां की ओर देखा।
उसी वक्त मैं काम से लौटा था। आंगन में कदम रखा तो नज़ारा कुछ ओर था। चारों तरफ सब कुछ बिखरा-बिखरा! मैंने समझा किसी ने किसी कुत्ते को आंगन में खूब दौड़ाया दिया है और दोनों मां बेटी उसी को घूर-घूरकर देख रही हैं लेकिन तभी मुस्कान के हाथ में डंडा देख कर मैं चौंका! आखिर माजरा क्या है। मुस्कान डंडा क्यों पकड़ी हुई है..!
‘यह सब क्या है-मुस्कान!’ मेरा सवाल उसी से था। जवाब उसकी मां ने दिया-‘मैं बारी में साग तोड़ रही थी और मुस्कान यहां आंगन के चबूतरे पर बैठी अपना होमवर्क पूरा कर रही थी, तभी बारी तरफ से गुहाल के रास्ते एक सियार आंगन में घुस आया था, उसी का किया-धरा है यह सब!’
‘क्या? सियार आंगन में घुस आया था और मुस्कान आंगन में अकेली थी...? मैं तो समझा किसी कुत्ते ने यह सब किया है!’
अकस्मात मुझे दो माह पहले की एक मासूम पर बीती मार्मिक घटना की याद आ गई। एक दोस्त ने वाट्सअप किया था। पढ़कर कई बार मुझे रोना आ गया था। बेटियां कहीं भी, किसी भी उम्र में सुरक्षित नहीं है। पेट से बचकर निकली तो बाहर जंगली जानवरों का खतरा, बड़ी हुई तो शहरी जानवरों का खतरा। लिखा था कि छ: माह की मासूम मनीषा घर के आंगन में खाट पर सोई थी। पिता राजमिस्त्री के काम पर गया था और मां गायों को गोहाल में पुयाल देने गई थी। इसी बीच बच्ची अचानक जोर से रोई तो मां दौड़ी आई। देखकर उसके होश उड़ गए। पीछे के बाहरी दरवाजे से आंगन में घुसा एक सियार बच्ची का सिर अपने मुंह में दबाए आंगन में खड़ा था। बच्ची की मां ने एक लाठी उठाई और सियार की ओर मारा। सियार बच्ची को मुंह में दबाए आंगन में दौड़ता रहा। मासूम चिल्लाती रही और मां का कलेजा फटता रहा। इसी बीच सियार बच्ची को लेकर दरवाजे से बाहर निकल गया। मां पीछे-पीछे चिल्लाती हुई भागी। तभी पड़ोस की एक और महिला लाठी-पत्थर लेकर आई। घर के पास ही दोनों महिलाओं ने मिलकर सियार को घेरा तो सियार वापस आंगन की ओर भागा। तब भी मासूम बच्ची सियार के जबड़े में दबी थी। झपटा मारकर बच्ची की मां सियार पर कूद पड़ी और सियार के पिछले दोनों पैर पकड़ कर उसको टांग दिया और धूनने लगी, तब कहीं जाकर बच्ची सियार के मुंह से छूटी। बच्ची को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। सिर और आंख में गहरे घाव उग आए थे...! 
मैं आगे बढ़कर मुस्कान के हाथ-पैर देखने लगा-‘कहीं तुम्हें तो चोट नहीं आई ?’
‘अच्छा...! फिर क्या हुआ..?’ मैं ही पूछा।
‘मुस्कान ने उसे दौड़ा-दौड़ा कर आंगन से भगा दी..!’ उसकी मां बोली।
‘अरे वाह! छिपकली देख चीखने वाली हमारी मुस्कान शेरनी बन गई! यह हिम्मत कहां से आई मुस्कान!’
‘मुटरा से...!’  मुस्कराते हुए मुस्कान ने कहा।
‘अच्छा और सियार अभी कहां है?’
‘शायद गोहाल-नाली में जा छिपा है!’ उसकी मां बोली।
‘जाकर गल्ली का दरवाजा खोल दो, सियार को मैं उधर से दौड़ाता हूं!’
‘बाबा, डंडा ले लो..!’ उसने वही डंडा अबकी बार मुझे पकड़ा दिया।
नाली से निकल कर गल्ली में आते ही सियार अंधाधुंध दौड़ पड़ा। उसके पीछे बच्चे चिल्लाये ‘सियार रे...सियार.रे.!’
पीछे से मुस्कान ने आवाज़ लगाई-‘हुर्रे-हुर्रे...!’
अब सियार के पीछे कुत्ते दौड़ रहे थे !
 (सुमन सागर)