वक्त की मांग

 

हर रोज़ की तरह आज भी अवंतिका की नींद बगैर किसी अलार्म के अपने निर्धारित समय पर खुल गई, लेकिन आज वह थोड़ी देर और बिस्तर पर यूं ही चुपचाप पड़ी रहना चाहती है क्योंकि आज रविवार छुट्टी का दिन है और पिछले चार दिनों से उसके गर्दन में दर्द है। अक्सर सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस का दर्द उठने पर अवंतिका के लिए कोई भी काम करना बेहद ही दूभर व कष्टप्रद हो जाता है। पति अखिलेश का ऑफिस, दोनों बच्चों का स्कूल एवं स्वयं का दफ्तर, इन सब के लिए अवंतिका को रोज़ सुबह जल्दी तो उठना ही पड़ता है साथ ही साथ घर का सारा काम भी करना पड़ता है, तब कहीं जाकर घर का हर सदस्य समय पर अपने कार्य स्थल पहुंच पाते है।
गृहणी हो या फिर कामकाजी महिला घर के काम से उसे कभी छुट्टी मिलती ही नहीं है। सप्ताह के सातों दिन और चौबीसों घंटे वह बस ड्यूटी पर यूं तैनात ही रहती है जैसे सीमा पर जवान, फिर चाहे सप्ताह का कोई भी दिन क्यों ना हो, क्या फर्क पड़ता है। रविवार के दिन तो ज्यादातर दफ्तर बंद ही होते हैं लेकिन उस दिन भी उन्हें न कोई आराम मिलता है और न ही घर के कामों से छुट्टी। अलबत्ता उस दिन तो उन्हें और अधिक काम करना पड़ता है।
छुट्टी वाले दिन घर का हर सदस्य रूटीन से हटकर अपना दिन बिताना चाहते हैं, सुबह देर तक सोना, मजेदार नाश्ता, कहीं बाहर घूमने जाना या फिर अपना कोई पसंदीदा काम करते हुए समय बिताना, लेकिन यह सब घर की महिला के हिस्से में नहीं आता।
नहीं चाहते हुए भी अवंतिका ने बिस्तर छोड़ दिया क्योंकि आज नाश्ते में अखिलेश की फरमाइश थी आलू के पराठे, बड़ी बेटी टीना को चाहिए था पास्ता और बेटे बंटी को हर बार की तरह पाव भाजी। इन सबके अलावा अवंतिका को घर की साफ-सफाई भी करनी थी, वाशिंग मशीन चलाना था, पूरे हफ्ते भर के कपड़े जो धोने थे क्योंकि वर्किंग डे में तो यह सारे काम हो नहीं पाते हैं।
गर्दन पर पेन रिलीफ  स्प्रे करने के पश्चात अवंतिका ने सोचा पहले गर्मागरम चाय पी लूं, नहीं तो एक बार काम में लगने के बाद तो सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती। यह सोच कर अवंतिका चाय लेकर बैठी ही थी कि उसका मोबाइल बजा। फोन कामवाली बाई शन्नो का था। अवंतिका के फोन उठाते ही शन्नो बोली-
‘दीदी आज मैं काम पर नहीं आ पाऊंगी, मेरी सासू मां की तबियत खराब है। उन्हें लेकर हॉस्पिटल जा रही हूं।’
शन्नो के ऐसा कहते ही अवंतिका फौरन उठकर नाश्ते की तैयारी में जुट गई और चाय टेबल पर ही रखा रह गया। अभी वह नाश्ते की तैयारी कर ही रही थी कि दोबारा मोबाइल बजने की आवाज़ अवंतिका के कानों पर पड़ी, परन्तु इस बार अखिलेश का मोबाइल बज रहा था। अवंतिका मोबाइल उठाने किचन से कमरे की तरफ  बढ़ी, वह कमरे तक पहुंची ही थी कि तब तक अखिलेश ने फोन उठा लिया। फोन पर बातें करते हुए अखिलेश की फटी आंखें और उसे मिमियाता देख अवंतिका को विषय की गंभीरता का अंदाजा लग गया।
बात समाप्त होते ही अवंतिका सवालिया निगाहों से अखिलेश की ओर देखने लगी तो वह लंबी सांसें लेता हुआ बोला-‘बिलासपुर वाली बुआ जी आ रही है। आज पूरा दिन हमारे साथ यहां रहेंगी, उनकी सहेली के बेटे की शादी है वहीं जा रहीं हैं, शाम की ट्रेन यहीं से पकड़ेंगी।’
इतना सुनते ही अवंतिका के पसीने छूट गए। वैसे तो बुआ यहां पहली बार आ रही थी लेकिन सभी रिश्तेदारों में यह बात जबर्दस्त तरीके से प्रचलित है कि बुआ पुराने ख्यालों, रीति रिवाज़ों को मानने वाली बहुत ही शक्त अनुशासन प्रिय है, उन्हें किसी प्रकार की लापरवाही या घर पर सामान का यहां वहां बिखराव बिल्कुल भी पसंद नहीं है। अवंतिका व उसका पूरा परिवार उनके इस स्वभाव से भलीभांति वाकिफ हैं।
(क्रमश:)